पूर्व जिला परिषद सभापति चरण वाघमारे का कारनामा
भंडारा। जनसेवा की शपथ लेने वाले ही जब सरकारी तिजोरी को चूना लगाने लगें तो उसे क्या कहा जाए और भरोसा किस पर किया जाए ? भंडारा जिला परिषद के पूर्व सभापति चरण वाघमारे ने खुद के घर को किराये का बताकर किराये के नाम पर 1 लाख 39 हजार 790 रुपयों की वसूली की. मजे की बात यह कि वाघमारे ने
मकान-मालिक और किसी को नहीं, बल्कि अपनी पत्नी को ही बताया.
किराया देने का प्रावधान
चरण वाघमारे 2010 से 2013 तक जिला परिषद की अर्थ व निर्माणकार्य समिति के सभापति थे. जिला परिषद के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और विषय समितियों के सभापतियों को निवास स्थान उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी जिला परिषद की होती है, लेकिन जिला परिषद के पास अध्यक्ष के अलावा और किसी के निवास की कोई व्यवस्था नहीं है. इसलिए जिला परिषद के पदाधिकारियों को घर-भाड़ा देने का प्रावधान किया गया है. अधिकांश पदाधिकारियों के ग्रामीण इलाकों से होने के कारण अपेक्षा की जाती है कि वे शहर में किराये का मकान लेकर रहें. लेकिन मजे की बात यह है कि कोई भी पदाधिकारी शहर में किराये का मकान लेकर नहीं रहता. हां, सभी किराया जरूर नियमित रूप से वसूलते रहते हैं.
स्टैंप पेपर पर किया करारनामा
चरण वाघमारे ने भी यही किया. जून-जुलाई 2010 से जनवरी 2013 की अवधि में वाघमारे ने सभापति रहने के दौरान अपनी पत्नी श्रीमती विजयश्री वाघमारे के रजनीनगर, खात रोड, भंडारा स्थित मकान साढ़े 4 हजार रुपए प्रति माह किराये पर लेने का दिखाया. इतना ही नहीं, घरमालिक विजयश्री चरण वाघमारे ने मुख्य कार्यकारी अधिकारी के नाम 50 रुपए के स्टैंप पेपर पर किराया-करारनामास भी किया था.
एक लाख चालीस हजार रुपया किराया वसूला
इस तरह अर्थ व निर्माणकार्य समिति के सभापति चरण वाघमारे ने जुलाई 2010 में 5661 रुपए, 8 मार्च 2011 को 27,000 रुपए, 31 मार्च 2011 को 4500 रुपए, 22 सितंबर 2011 को 27,000 रुपए, 31 मार्च 2012 को 27,000 रुपए, 26 सितंबर 2012 को 27,000 रुपए और 11 फरवरी 2013 को 21,629 रुपए मिलाकर कुल 1,39,790 रुपए जिला परिषद से वसूल किए. जिला परिषद के यह किराया चरण वाघमारे की पत्नी विजयश्री को दिया. इस पर किसी के आपत्ति उठाने का कोई कारण नहीं है, मगर सवाल यह है कि अपने ही घर को किराये का बताकर उसका किराया वसूल करना उचित है या नहीं ?