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बुलढाणा के ग्रामीण टेंभूरणा गाव की चोकोली की होली पर्यावरण को बचाने का संदेश देती गाव की होली
बुलढाणा(खामगाव ).
होली को महाराष्ट्र मे सिमगा तो दषीन मे कामदहन कहा जाता हे. बंगाल मे दोलायात्रा बोल जाता हे. हुताशनी भी होली का नाम बताया जाता हे. गाव , शहर , या योग्य स्थान पार फाल्गुन पुनम को शाम. के समय होली जलाई जाती हे. ग्रामीण गाव मे आदिकतर होली गाव के प्राचीन मंदीर के सामने जलाई जाती हे. आज भी ग्रामीण ईलाको को मे गाय के गोबर से बनी चाकोली की होली अपनी अलग पहचान बरकरार राखती हे. बुलढाणा जिले के टेंभूरणा गाव मे आज भी गाय के गोबर से बनी चकोल्या , चांदोबा,
नारीयल , यह चीजे गाव के विशेष कर छोटे बचें महाशिवरात्री के दिन से चोकोली बनाना शुरू कर देते हे. और होली के दिन शाम तयार किये गये ईस सामुग्री को होली मे अर्पण किये जाते हे . आज सिर्फ गोल्बल वार्मिंग की बाते होती हे.उसके दूष परिणाम पर चर्चा होती हे., लॆकीन प्रदूषण मुक्त , बिना वृश तोड , पारंपारिक होली यह आज भी ग्रामवासीयो मानाते हे.वह अपने आप मे काबीले तारीफ कहे जा सकती हे.
जीस तरह से प्रदूषण से आज निसर्ग को काफी हानी होती हे. होली मे निसर्ग की संपती को न जलातेय. जो होली आज भी टेंभूरणा गाव मे मानाते हे. वह निचित एक अपने आप मे अभिनव उदारन कहा जा सकता हे.
अभिनव संदेश देय होली: होली को रंगो का उत्सव कहा जाता हे. लेकिन ग्रामीण ईलाको की यह होली निसर्ग को बचाने का संदेश देती हे. यह कहना गलत नही होगा.