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उमरखेड: एक तरफ सरकार आदर्श आचार संहिता का कड़ाई से पालन कराने के लिए लाखों-करोड़ों रुपया खर्च कर रही है तो दूसरी ओर स्थानीय स्कूलों के शिक्षक बच्चों को पढ़ाना-लिखाना छोड़कर चुनाव-प्रचार में जुटे हुए हैं. अपने-अपने नेताओं के लिए वोट जुटाने और संस्था के संचालकों की नजर में चढ़े रहने के लिए शिक्षक-वर्ग चुनाव में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं. संस्था के संचालक भी इस मौके को भुनाने में लगे हैं. यहां अब यह सवाल उठाया जाने लगा है कि शिक्षकों का इस तरह खुलेआम चुनावी राजनीति में भाग लेना क्या आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन नहीं है ? अगर उल्लंघन है तो उड़नदस्ते की नजर अब तक इन शिक्षकों पर क्यों नहीं पड़ी ?