उमरखेड़
उमरखेड़ शहर और तालुका में निजी शिक्षा संस्था संचालकों ने स्कूल फीस में अनाप-शनाप वृद्धि कर ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि गरीब और सामान्य अभिभावकों के लिए अपने बच्चों को इन स्कूलों में पढ़ाना बस के बाहर की बात हो गई है. स्कूल की गुणवत्ता के नाम पर यह फीस वृद्धि की गई है. शिक्षा के इस बाजारीकरण की तरफ न तो जनप्रतिनिधियों का कोई ध्यान है और न ही सामाजिक आंदोलन में सक्रिय संस्थाएं तथा लोग इस तरफ ध्यान देने को तैयार हैं.
विद्यार्थियों का झुकाव मराठी माध्यमों की स्कूलों की तरफ कम होता जा रहा है और 80 प्रतिशत विद्यार्थी अंग्रेजी पढ़ना चाहते हैं. संस्था संचालकों के बीच स्पर्धा शुरू हो चुकी है. स्कूल भी अपनी डिमांड बनाए रखने के लिए कई तरह की जुगत भिड़ाते रहते हैं. सरकारी जिला परिषद, पंचायत समिति तथा नगर परिषद स्कूलों में पढ़ने की मानसिकता ही खत्म होती जा रही है.
नर्सरी से कक्षा 10 वीं तक इमारत निधि की रसीद दी जाती है. स्कूल प्रवेश के लिए फीस में तीन हजार से लेकर तो 30 हजार तक की बढ़ोतरी की गई है. पिछले साल हुई अतिवृष्टि और फसलों के बरबाद होने के चलते किसान वैसे ही कर्जबाजारी हो चुका है. ऐसे में स्कूल की फीस उसके लिए एक अलग सिरदर्द बनती जा रही है. शिक्षा के इस बाजारीकरण पर रोक लगाने के लिए कोर्ट में जनहित याचिका के माध्यम से जाना जरूरी हो गया है. किसी न किसी संस्था को यह कदम उठाना ही होगा.