जिला परिषद् में भाजपा-सेना का सत्ता बरक़रार,दिग्गज कांग्रेसी नेताओं से लबरेज जिले में फुट कायम
नागपुर टुडे
नागपुर जिले में कांग्रेस-एनसीपी के दिग्गज नेताओं के बावजूद सुनहरा अवसर होने के बावजूद जिला परिषद् के अध्यक्ष-उपाध्यक्ष का चुनाव हार गए. इस हार ने कांग्रेस-एनसीपी के कार्यकर्ताओं सह मतदातओं का ऐन विधानसभा चुनाव के पूर्व हौसला पस्त कर दिया है. वही भाजपा-सेना के मध्य घनघोर टकराव के बावजूद सत्ता बरकरार रख विधानसभा चुनाव में अधिकतम सीटें जीतने की उम्मीद कायम रखी है. भाजपा के निशा सावरकर अध्यक्ष तो शिवसेना के शरद डोनेकर उपाध्यक्ष निर्वाचित हुए. दोनों को ३२-३२ वोट हासिल हुए. अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस के उम्मीदवार और उपाध्यक्ष पद के लिए एनसीपी उम्मीदवार को क्रमशः २६-२६ मत मिले.
आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र महाराष्ट्र की प्रभावी राजनैतिक दल कांग्रेस-एनसीपी ओर भाजपा-सेना के मध्य भीषण राजनैतिक उठा-पठक चल रही है. आलम तो यह है कि कब किस मुद्दे को लेकर अलग-अलग लड़ने का निर्णय ले लिया जाये, यह कहना फ़िलहाल मुश्किल है. इसी बीच नागपुर जिला परिषद् के अगले कार्यकाल के लिए आज चुनाव हुए. चुनाव पूर्व भाजपा-सेना जितने सक्रीय थे,उतने ही निष्क्रिय कांग्रेस-एनसीपी नेता मंडली को देखा-महसूस किया गया.
कांग्रेस के स्वयंभू नेताओं में पालकमंत्री नितिन राउत, राज्यमंत्री राजेन्द्र मुलक, कांग्रेस महासचिव मुकुल वासनिक, फायरबांड सुनील केदार, जुगाडू नाना गावंडे सह एनसीपी नेता अनिल देशमुख व रमेश बंग का समावेश है. लेकिन किसी ने भी जिला परिषद् की सत्ता हथियाने की हिमाकत तक नहीं की. उम्मीद की जा रही थी की उठा-पठक में माहिर केदार आज कोई नया राजनैतिक करतब दिखायेंगे लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. राउत की तबियत ख़राब होने के कारण अपने क्षेत्र में भी घूम नहीं पा रहे. मुलक अपनी उम्मीदवारी को लेकर चिंतित है, वासनिक चुनाव हरने के बाद अपने लोकसभा क्षेत्र के पार्टी गतिविधियों से दुरी बनाये हुए है, गावंडे अपने-पराये इच्छुको को टिकट दिलवाने-कटवाने के क्रम में भारी व्यस्त है. ले-दे के केदार नज़र आ रहे थे, इनकी समझ यही रही कि अगर जिलापरिषद में सत्ता लाने में सफल भी हो जाते है तो पार्टी उन्हें तवज्जों देने के बजाय गावंडे-वासनिक को देगी. केदार का दूसरा नुकसान यह होगा कि उन्हें अपने नए विरोधियों से अपने विस चुनाव में सामना करने पड़ेगा. एनसीपी नेता देशमुख-बंग को अपने विस क्षेत्र से ज्यादा कोई भी मामले में रूचि नहीं रहती, इसलिए स्थानीय चुनावों में हिस्सा नहीं लेते है. दूसरी ओर भाजपा के विधायक चंद्रशेखर बावनकुले सह सेना नेता विधायक आशीष जैस्वाल व सांसद कृपाल तुमाने सत्ता कायम रखने के लिए सक्रिय रहे, जिन्हें सफलता भी मिली.
पिछले कार्यकाल में कांग्रेस को दूर रखने के लिए भाजपा-सेना-एनसीपी ने मिलकर जिलापरिषद की सत्ता हासिल की थी. इस दफे कांग्रेस के नेताओं द्वारा आक्षेप लेने पर शायद युति गठबंधन के साथ नज़र नहीं आई.
इस चुनाव से युति गठबंधन को आगामी चुनाव के लिए उर्जा मिली तो अघाड़ी गठबंधन के कार्यकर्ताओं सह मतदातओं में निराशा देखते ही बनती है.
द्वारा:-राजीव रंजन कुशवाहा