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गन्ने और केले का उत्पादन चंद्रपुर जिले में नहीं हो सकता ऐसा कई बार कहा जाता है। गन्ने कि खेती बारामती और केला जलगाव खान्देश में उत्पादित होता है ऐसी धारना बहुतो में है। लेकिन चिमुर तालुके के सावरगाव ने इस बात को गलत साबित कर दिया है। चिंतामन नाकाडे और विकास नाकाडे इन दोनों भाइयों ने मिलकर १० एकड़ खेत में गन्ने और ३ एकड़ में केले कि शानदार फसल तैयार कि है। आधुनिक पद्धति कि मदत से इन्होने ये काम कर दिखाया है।
चिमुर से ४ किलोमीटर दूर सावरगाव में चिमुर-कांपा मार्ग पर नाकाडे भाइयों कि १५ से २० एकड़ खेती कि ज़मीन है। पानी कि कमी होने के बावजूद उन्होंने २ एकड़ इलाके में पिछले ३ सालों से गन्ने का उत्पादन शुरू किया है। शुरुवात में ३-४ एकड़ में गन्ने कि फसल ली गयी थी। और अधिक परिश्रम के साथ नए तंत्रज्ञान कि मदत से इस साल १० एकड़ में गन्ने कि फसल लगाई गयी, जिससे इन्हे हर साल ६० से ७० टन उत्पादन प्राप्त हो रहा है। इन्होने ३ साल के भीतर लाखों रुपयों का उत्पादन किया है। पशिम महाराष्ट्र में ही गन्ने कि खेती हो सकती है और सफल उत्पादन किया जा सकता है इस धारना को गलत साबित करके एक उत्तम उदाहरण नाकाडे बंधुओं ने पेश किया है। इनका ये प्रयास बाकी किसानो के लिए आदर्श उदाहरण है।
गन्ने के बाद अब नाकाडे बंधूओ ने केले कि खेती करने का निर्णय लेते हुए केले कि फसल भी तैयार कर ली है। चिमुर तालुका में सिंचाई कि सुविधाओ का अभाव और पानी कि कमी के बावजूद नाकडे भाइयों ने अपनी ज़िद, लगन और मेहनत से ये कारनामा कर दिखाया है। नाकाडे परिवार ने अपने खेत में दो बोअरवेल खोदकर कम पानी में भी उत्पादन किया है और कर रहे है।
गौरतलब है कि तीन साल पहले चिमुर में युवाशक्ति संघटना द्वारा किसान मार्गदर्शन सम्मलेन का आयोजन किया गया था, जिसमे नितिन गडकरी ने कहा था कि विदर्भ में भी गन्ने और कई फसले उगाई जा सकती है। किसानो में आशावादी विचार जागा और आधुनिक तकनीक कि मदत से आज किसान इसको हकीकत में साकार कर रहे है।
कृषि विभाग कि उदासिनता :-
एक किसान पिछले तीन सालों से इतने बड़े पैमाने पे गन्ने कि खेती इलाके में कर रहा है लेकिन चिमुर तालुका कृषि विभाग व पंचायत समिति चिमुर के कृषि विभाग का इस किसान के आधुनिक कृषि पद्धति कि ओर ध्यान नहीं है। विभाग कि ओर से इन्हे किसी भी प्रकार का मार्गदर्शन, उपाययोजना या जानकारी नहीं दी जा रही है।
नाकडे परिवार कि माने तो उन्हें सरकार के कृषि विभाग कि ओर से कोई मार्गदर्शन नहीं मिलता और सिर्फ और सिर्फ अपनी ज़िद कि बदौलत उन्होंने गन्ने और केले के उत्पादन का सपना साकार किया है।