Published On : Wed, Jun 18th, 2014

रामटेक विधानसभा चुनाव : देशमुख-केदार की लड़ाई में होगा सेना का फायदा

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कांग्रेस
स्थानीय इच्छुकों को नहीं देती टिकट, बाहरी उम्मीदवारों से त्रस्त कांग्रेसी 

ashish-1नागपुर टुडे 

विधानसभा चुनाव को लेकर रामटेक विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं के साथ ही स्थानीय नेताओं में भी रुचि कम, मायूसी ज्यादा नज़र आ रही है. यहां हर इलाके में अलग-अलग समीकरण दिखाई पड़ रहे हैं. वजह साफ है. यहां पिछले 15 साल से शिवसेना का कब्ज़ा है और उसे हराने के लिए आज तक किसी भी पार्टी का कोई मजबूत उम्मीदवार ठीक से खड़ा नहीं हो पाया है. जो भी खड़ा हुआ वह चुनाव तक टिका और चुनाव ख़त्म होते ही क्षेत्र की राजनीति से गायब हो गया. अगर आगामी विधानसभा चुनाव में राजनीतिक परिस्थितियां बदलीं तो चित्र भी बदल सकता है. वरना शिवसेना के स्थापित उम्मीदवार को घर बैठाना टेढ़ी खीर साबित होगा.

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कमजोर उम्मीदवार और फूट बनी कारण 

पिछले विधानसभा चुनाव के पूर्व रामटेक विधानसभा क्षेत्र से मौदा क्षेत्र का 75 % भाग काट कर कोराडी-कामठी विधानसभा क्षेत्र से जोड़ दिया गया था और सावनेर विधानसभा के अभिन्न अंग पारसिवनी तहसील को रामटेक विधानसभा क्षेत्र से जोड़ दिया गया था. राजनीतिक बंटवारे में यह सीट कांग्रेस और शिवसेना के हिस्से में है. कमजोर कांग्रेसी उम्मीदवार या कांग्रेस में फूट होने की वजह से शिवसेना उम्मीदवार अधिवक्ता आशीष जैस्वाल लगातार 3 बार चुनाव जीतकर विधायक बने. कमजोर विपक्षी उम्मीदवार और पार्टी के भीतर बराबरी का उम्मीदवार न होने से विधायक जैस्वाल का सुर भी बदल गया. समय आने पर विपक्ष का साथ देने का भी आरोप लगा. इन्होंने रामटेक के मतदाताओं की कमजोर नस को पकड़ा ही नहीं, उसे दबाकर भी रखा. आगामी विधानसभा चुनाव में भी निस्संदेह शिवसेना प्रत्याशी जैस्वाल ही होंगे. इस दफा उन्हें हाल ही में जीतकर आए शिवसेना सांसद कृपाल तुमाने का भी भरसक साथ मिलेगा ही.

कांग्रेस से उम्मीदवार तय नहीं 

जो भी हो, रामटेक इन दिनों शिवसेना का मजबूत गढ़ बना हुआ है. इस गढ़ को ध्वस्त करने के लिए कांग्रेस के पास स्थानीय जानदार उम्मीदवार का अभाव है. अगर कांग्रेस पार्टी ने स्थानीय और नए युवा चेहरे को मौका देने की मंशा रखी तो गज्जू यादव पहले और आखिरी विकल्प हैं.

अगर पार्टी क्षेत्र के बाहरी उम्मीदवार को लादना चाहेगी तो पूर्व मंत्री पुत्र डॉक्टर अमोल देशमुख पर विचार हो सकता है. देशमुख इन दिनों अपनी राजनीतिक इच्छा को सार्वजानिक कर रामटेक क्षेत्र खासकर पारसिवनी क्षेत्र में सक्रिय हैं. रामटेक के पूर्व कांग्रेसी सांसद मुकुल वासनिक के कार्यक्रमों में नज़र आ रहे हैं.

क्या मेघे के लिए मुलक करेंगे त्याग?

राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि मेघे परिवार का भाजपा में प्रवेश होने के बाद विधानसभा चुनाव में अगर भाजपा ने पश्चिम नागपुर से मेघे पुत्रों में से किसी एक को टिकट दिया तो ये देखना दिलजस्प होगा की क्या मुलक जो पश्चिम नागपुर में पिछले २ सालों से सक्रिय हैं और पश्चिम से ही चुनाव लड़ने के इक्छुक है, वो त्याग कर कांग्रेस की टिकट पर रामटेक से चुनाव  लड़ेंगे.

फ़िलहाल वे पश्चिम नागपुर से कांग्रेस की टिकट पर अगला चुनाव लड़ने को आतुर बताए जाते हैं. उधर, कामठी -कोराडी विधानसभा क्षेत्र के कार्यकर्ता इस क्षेत्र से मुलक को चुनाव लड़वाने के लिए प्रयासरत हैं, लेकिन मुलक कामठी-कोराडी से चुनाव लड़ने की हिम्मत जुटा नहीं पा रहे है. ऐसी सूरत में पश्चिम नागपुर से कांग्रेस टिकट शहर कांग्रेस अध्यक्ष विकास ठाकरे को मिल सकती है.

देशमुख परिवार को राजनीति से बाहर करने की योजना 

अब तक बनी रणनीति के अनुसार सावनेर के विधायक सुनील केदार सावनेर से निर्दलीय चुनाव लड़ सकते हैं. अगर रामटेक से कांग्रेस ने अमोल को उम्मीदवारी दी तो केदार गुट इस चुनाव में शिवसेना उम्मीदवार जैस्वाल के समर्थन में खुलकर काम कर सकता है. केदार के करीबी माने जानेवाले रेड्डी इस बार फिर मैदान में निर्दलीय उतरकर कांग्रेस के परंपरागत आदिवासी वोट बैंक को अपने पक्ष में मोड़कर कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकते हैं. साथ में सावनेर में केदार के खिलाफ देशमुख के बड़े भाजपाई पुत्र आशीष देशमुख मैदान में होंगे. चुनाव में आशीष को चारों खाने चित करने के लिए केदार षड्यंत्र रच रहे हैं. यानी अगर देशमुख चिरंजीव दो अलग-अलग पार्टियों से चुनाव लड़ते हैं तो दोनों को घर बैठाने की योजना पर काम चल रहा है. फिर सावनेर से निर्दलीय केदार विधायक बनने के बाद भाजपा या शिवसेना में प्रवेश कर सकते है.

 

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