नागपुर: प्रत्येक वर्ष जाते साल को अलविदा करने और नए साल का स्वागत करने के लिए नागपुर शहर और जिले में अनेक आयोजन होते हैं. होटलों एवं अन्य सार्वजानिक स्थानों में इस तरह के आयोजन के लिए स्थानीय प्रशासन से अनुमति लेने का नियम है. अधिकृत रूप से इस तरह का आयोजन करने की चाह रखने वाले बाकायदा मनोरंजन कर भरकर प्रशासन से अनुमति प्राप्त करते हैं. इस वर्ष स्थानीय प्रशासन अनुमति देने के लिए दस प्रतिशत ज्यादा राशि की मांग कर रहे हैं और दस प्रतिशत ज्यादा चुकाने वालों को बिना यह जांचे-परखे कि आयोजक नियमतः आयोजन कर रहा है या नहीं, बस धड़ल्ले से अनुमति दी जा रही है. मनोरंजन कर विभाग के कुछ कर्मचारियों की इस करतूत से समूचा ज़िलाधिकारी कार्यालय परिसर शमर्सार हो ही रहा है, राजस्व विभाग को चूना भी लग रहा है.
वर्ष में ऐसे 10-12 अवसर आते है, जिसकी आड़ में जिलाधिकारी कार्यालय की नाक के नीचे मनोरंजन करविभाग के कई कर्मचारी व अधिकारी अवैध कमाई करते रहे हैं, साथ ही सरकारी राजस्व की आय को भारी नुकसान पहुँचाते रहे हैं.
मनोरंजन कर विभाग में जो भी आयोजक अपने कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए विभाग की अनुमति लेने विभाग के संपर्क में आता है उसे विभाग अनुमति देने में काफी आनाकानी करता है। फिर आयोजक के “टारगेट क्राउड” का 25 से 50 % टिकट पर मनोरंजन कर भरने की सलाह दी जाती है। इसके बाद जितने टिकटों का कर भरा गया है, उसका 10% टिकट सहित मुंह मांगी कीमत वसूली जाती है। यह फार्मूला नए आयोजकों के ऊपर खुलकर इस्तेमाल किया जाता है।
बताया जाता है कि शहर में दो दर्जन से अधिक विभाग द्वारा तैयार किये दलाल हैं, जो नववर्ष,विशेष शो आदि के लिए मनोरंजन कर, पुलिस विभाग और राजस्व विभाग की अनुमति बड़ी आसानी से दिलाने में सक्रिय भूमिका अदा करते हैं। इन दलालों के ग्राहकों को उक्त तीनों विभाग का भरपूर संरक्षण रहता है। यह भी साफ है कि अनुमति लेने वाले आयोजक, दलालों की सलाह और शह पर, इन विभागों के नियम-कानून को धता बताते हुए अपने इरादों को पूरा करते हैं। इन तीनों विभागों में सीधे संपर्क कर नियमानुसार अनुमति लेने अगर कोई जाता है तो उसे इतने कड़क क़ानूनी पेंचों की जानकारियां दी जाती हैं कि आयोजकअपना इरादा बदल देते हैं। फिर उक्त विभागों में गैरकानूनी काम करनेवाले और विभागों के दलाल आयोजकों को शह देकर सरकारी राजस्व को चूना लगाकर खुद की जेब गर्म करते हुए आयोजकों का मार्ग आसान कर देते हैं।
नववर्ष की पूर्व संध्या पर 30-40 प्रतिशत आयोजक ही मनोरंजन कर विभाग की अनुमति लेते हैं। इनसे विभाग अवैध रूप से 2 से 10हज़ार रूपए रकम के साथ मंजूरी लिए गए कर विभाग की मुहर युक्त 10% टिकट लेते हैं। ऐसे में मनोरंजन कर विभाग के कर्मी सिर्फ नववर्ष की पूर्व संध्या पर मंजूरी लेने वाले आयोजकों से 3 से 5 लाख रूपए तो कमाते ही हैं, साथ ही 400-500 टिकट भी विभिन्न आयोजकों से इकट्ठा कर लेते हैं। अब सवाल यह उठता है कि उक्त जमा किए जानेवाले टिकटों को कर्मचारी आधे दाम में बेच देते हैं या जिलाधिकारी कार्यालय में ऊपर से लेकर नीचे तक ओहदे के अनुसार उसे बांट देते हैं। खैर जो भी किया जा रहा हो, मनोरंजन कर विभाग इस मामले में डंके की चोट पर कहता है कि “गन्दा है,लेकिन धंधा है”। क्या इसी दिन को वर्तमान सरकार ने “अच्छे दिन“ की संज्ञा दी है।
मनोरंजन कर विभाग में कर्मचारियों की कमी
विभाग के अनुसार वर्षों से मंजूर पदों और कार्यक्षेत्र की बढ़ोतरी के अनुपात के मुकाबले कर्मचारियों की संख्या कम है। जिसकी वजह से विभाग की सम्पूर्ण जिम्मेदारियों का वहन करने में काफी अड़चने आती हैं। यह भी सत्य है कि बिना विभाग के मंजूरी के कई कार्यक्रम होते रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे। लेकिन इन पर निगरानी रखने के लिए विभाग के पास उचित व्यवस्था न के बराबर है। शिकायतें मिलने के बाद इक्के-दुक्के मामलों पर ही कार्रवाई की जाती है.