नागपुर : जीवन में कुछ पाओ, ना पाओ परमात्मा का स्मरण करो. परिवार, प्रियजन जैसा सब कुछ छूट जायेंगे, परमात्मा ही काम आयेंगे. अंत भला तो सब भला. आपका बचपन कृष्ण जैसे नटखट हो, चलना, फिरना, हंसता मुस्कुराता रहें. जवानी में आपका जीवन मर्यादा पुरुषोत्तम राम जैसा हो. राम जैसे महापुरुष ने जीवन में मर्यादा रखी उनमें विनम्रता, सज्जनता और सफलता थी. चिता जलाने से पहले चेतना जगा लेना यह उदबोधन व्याख्यान वाचस्पति दिगंबर जैनाचार्य गुप्तिनंदीजी गुरुदेव ने विश्व शांति अमृत ऋषभोत्सव के अंतर्गत श्री. धर्मराजश्री तपोभूमि दिगंबर जैन ट्रस्ट और धर्मतीर्थ विकास समिति द्वारा आयोजित ऑनलाइन धर्मसभा में दिया.
व्यक्ति आवश्यकता से दुखी नहीं तो आकांक्षा से दुखी हैं- आचार्यश्री शशांकसागरजी
आचार्यश्री शशांकसागरजी गुरुदेव ने धर्मसभा में कहा हमें चिंता उसी की हैं, जो चीज हमें प्राप्त नहीं होती हैं. व्यक्ति तीन चीजों उलझा हुआ हैं, पैसा कमाने में, परिवार को पालने में, पर्याय को संभालने में. व्यक्ति पैसा कमाने में, परिवार को संभालने में लगा हुआ हैं. पैसा कितना भी कमा लो साथ जानेवाला नहीं हैं. हमें जितना मिलता हैं उसमें प्रसन्नता नहीं हैं. हमें और की आकांक्षा हैं. आवश्यकता तो हमें थोड़े में हो सकती हैं लेकिन आकांक्षा की पूर्ति नहीं हो रही हैं यही कारण हमारे जीवन में प्रसन्नता नहीं हैं. व्यक्ति आवश्यकता से दुखी नहीं हैं तो आकांक्षा से दुखी हैं. आवश्यकता किसी की भी पूरी हो जाती हैं, आकांक्षा तो सिकंदर की पूरी नहीं हो पाती हैं. व्यक्ति को अपने दुख में दुख नहीं हैं, सामनेवाले के सुख से दुखी हैं.
अपने आपका दुख नहीं हैं जो दुख हैं, पीड़ा हैं दूसरे से हैं. व्यक्ति आवश्यकताओं से परेशान नहीं हैं, व्यक्ति आकांक्षाओं से परेशान हैं. व्यक्ति जितना दूसरे को जोड़ने में लगा हैं, उतना छोड़ने में नहीं. पहले मकान कच्चे थे और संबंध अच्छे थे. पैसा भी इतना मत कमाना प्रेम की दीवार टूट जाये. पैसा इतना कम मत कमाना देव-शास्त्र-गुरु की भक्ति छूट जाये. सात वार तो आते हैं और आठवां वार परिवार हैं. जो चारो तरफ से पार करे वह परिवार हैं. जो चारो तरफ से घेरे हैं उस परिवार संभलने में लगे हैं. परिवार मात्र तेरह दिन तक हमारे साथ हैं, फिर किसी का नहीं.
तीन दिन मुहल्लेवाले रोयेंगे, चार दिन तक संबंधवाले रोयेंगे, सात दिन तक बेटा रोयेंगा, ग्यारह दिन तक पत्नी रोयेंगी, तेरहवें दिन मुहल्लेवाले, सगे संबंधी सभी मिलकर तेरहवीं मनायेंगे इसलिये परिवार में मुलाकात तेरह दिन की हैं. जीवन उसका बुरा नहीं जो पैदा होता हैं, जीवन उसका बुरा हैं पैदा हुआ, जीवन पाना मुश्किल हैं. आप ऐसे काल में पैदा हुए हैं संतों के दर्शन हो रहे हैं, गुरु के जीवन से अपने जीवन को समझने का प्रयास करना इसलिये परिवार में मत लगे रहो. प्रातःकाल उठकर आदमी को चार काम रोज करना चाहिए. प्रातःकाल में मेरी भावना रोज पढ़ना चाहिए, दोपहर में बारह भावना पढ़ना चाहिए. शाम को वैराग्य भावना पढ़ना चाहिए और रात को नींद आने से पहले समाधि भावना पढ़ लेना, आपका जीवन कल्याण के रास्ते पर पड़ जायेगा. चार गति से छूटता हैं तो चार भावना का चिंतन जरुर करना, मोक्ष जाना हैं तो ना फीमेल, ना ईमेल, ना जीमेल से जुडो, मेलजोल करना हैं तो गुरु से करो, जीवन का कल्याण हो जायेगा.
जिंदगी में कुछ समझने जैसा, कुछ करने जैसा हैं अपनी आत्मा को समझने जैसा हैं. धर्मसभा का संचालन कंठकोकिला गणिनी आर्यिका आस्थाश्री माताजी ने किया. धर्मतीर्थ विकास समिति के प्रवक्ता नितिन नखाते ने बताया रविवार 23 मई को सुबह 7:20 बजे शांतिधारा, सुबह 9 बजे श्रुत केवली वैज्ञानिक धर्माचार्य कनकनंदीजी गुरुदेव का उदबोधन होगा. दोपहर 2 बजे आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी गुरुदेव के शिष्य क्षुल्लक सुधर्मगुप्तजी का 21 मई को समाधि मरण हुआ था उनकी विनयांजलि सभा होगी. शाम 7:30 बजे से परमानंद यात्रा, चालीसा, भक्तामर पाठ, महाशांतिधारा का उच्चारण एवं रहस्योद्घाटन, 48 ऋद्धि-विद्या-सिद्धि मंत्रानुष्ठान, महामृत्युंजय जाप, आरती होगी