Published On : Tue, May 25th, 2021

घर घर में आपस में प्रेम होना चाहिए- आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी

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घर घर में आपस में प्रेम होना चाहिए. आचार्यश्री सुवीरसागरजी भगवान महावीर के योद्धा हैं, जैन धर्म के प्रचारक हैं यह उदबोधन प्रज्ञायोगी दिगंबर जैनाचार्य गुप्तिनंदीजी गुरुदेव ने विश्व शांति अमृत ऋषभोत्सव के अंतर्गत श्री. धर्मराजश्री तपोभूमि दिगंबर जैन ट्रस्ट और धर्मतीर्थ विकास समिति द्वारा आयोजित ऑनलाइन धर्मसभा में दिया.

देव शास्त्र गुरु की भक्ति करते उन्हें सम्यग दर्शन की प्राप्ति होती हैं- आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी

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नागपुर : देव शास्त्र गुरु की करते हैं उन्हें सम्यग दर्शन की प्राप्ति होती हैं. जो देव शास्त्र गुरु के प्रति होना सर्वप्रथम हमारा कर्तव्य हैं. सम्यग दर्शन से हमारा मोक्ष मार्ग सुरु होता हैं. जो एक बार सम्यग दर्शन प्राप्त कर लेता हैं निश्चित ही वह भव्य जीव होता हैं. उस भव्य जीव में रत्नत्रय को प्राप्त करने की शक्ति होती हैं. इस संसार में हमने सम्यग दर्शन को प्राप्त कर लिया तो हमारा संसार बहुत कम थोड़ा रहता हैं इसलिये देव शास्त्र गुरु की भक्ति हमारे लिए अनिवार्य हैं. श्रावक के लिए देव शास्त्र गुरु की भक्ति अमृत का काम करती हैं. देव शास्त्र गुरु की भक्ति कल्याण के लिए मोक्ष का कारण बन बनती हैं. जैन धर्म में वस्त्रधारी के लिए मोक्ष नहीं हैं. जब तक निर्ग्रंथ नहीं बनेगा तब तक मोक्ष की प्राप्ति नहीं होगी. आरंभ परिग्रह का त्याग कर सच्चा दिगंबर साधु उसके लिए बनना पड़ेगा, ऐसे जीव के लिए परंपरा से मोक्ष कहा गया हैं. आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी गुरुदेव ने भक्तों को निरंतर अनुष्ठान लगा के रखा हैं, भगवान के भक्ति से जोडकर रखा हैं. कोरोना महामारी काल में आचार्य भगवंत के कृपा दृष्टि से घर घर में लोग धर्म ध्यान कर रहे हैं. विधान कर रहे हैं, पूजा कर रहे हैं, भगवान का अभिषेक कर रहे हैं. भगवान की भक्ति नित्य प्रतिदिन करना चाहिए. भक्ति से पुण्य बंध होता हैं, शुभ कर्म होता हैं. भगवान की भक्ति से हमारे अशुभ कर्मो का नाश होता हैं. अंतर्मुहूर्त में जीव केवल ज्ञान को भी प्राप्त कर सकता हैं. जिनेन्द्र भगवान की भक्ति से वज्रलेप सा क्षय होता हैं. गुरुओं के आशीर्वाद और माँ जिनवाणी के कृपा से हम स्वस्थ भी हैं और मस्त भी हैं, आत्म कल्याण के लिए पथ पर हम लगे हुए हैं. घर से धर्म ध्यान कर रहे हैं, अपने कर्तव्य का पालन कर रहे हैं. जिनेन्द्र भगवान केवलज्ञानी हैं ऐसे केवलज्ञानी की आराधना केवलज्ञान को प्राप्त कराने में एक निमित्त बनती हैं. साधुओं की संगति सबसे अच्छी संगति हैं. भगवान के दर्शन करने से पुण्यार्जन होता हैं. गुरु उपदेश देते हैं, स्वाध्याय कराते हैं, अच्छे बुरे का ज्ञान कराते हैं, मोक्ष मार्ग प्रशस्त करते हैं. बड़ा अनुष्ठान कर के जीवन का कल्याण कर रहे हैं, जीवन धन्य कर रहे हैं, भावों का महत्व अधिक हैं, भावों से ही कर्मो की निर्जरा अधिक होती हैं. भावों को जोड़ने के लिए अष्टद्रव्य से पूजा करे. भगवान हमारा कल्याण करने के लिए निमित्त हैं. सम्यग दर्शन प्राप्त करना हमारे आत्मा का गुण हैं. संसार में हर किसी के लिए पुण्य की आवश्यकता हैं, सुख कर्म की आवश्यकता हैं. आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी गुरुदेव की करुणा भक्तों के प्रति तीव्र करुणा हैं. धर्मसभा का संचालन स्वरकोकिला गणिनी आर्यिका आस्थाश्री माताजी ने किया. धर्मतीर्थ विकास समिति के प्रवक्ता नितिन नखाते ने बताया बुधवार 26 मई को सुबह 7:20 बजे शांतिधारा, सुबह 9 बजे क्षुल्लक डॉ. योगभूषणजी का उदबोधन होगा. शाम 7:30 बजे से परमानंद यात्रा, चालीसा, भक्तामर पाठ, महाशांतिधारा का उच्चारण एवं रहस्योद्घाटन, 48 ऋद्धि-विद्या-सिद्धि मंत्रानुष्ठान, महामृत्युंजय जाप, आरती होगी.

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