नागपुर : जिन भक्ति दुर्गति से बचाती हैं यह उदबोधन श्रावक संस्कार उन्नायक दिगंबर जैनाचार्य गुप्तिनंदीजी गुरुदेव ने विश्व शांति अमृत ऋषभोत्सव के अंतर्गत श्री. धर्मराजश्री तपोभूमि दिगंबर जैन ट्रस्ट और धर्मतीर्थ विकास समिति द्वारा आयोजित धर्मसभा में दिया.
गुरुदेव ने धर्मसभा में कहा साधु बने तो मोह माया छूटे, वैरागी बने तो तन छूटे, संसार छूटे तो मोह माया के बंधन छूटे. जिन भक्ति दुर्गति से बचाती हैं, और पुण्य को भरनेवाली हैं, मुक्ति देनेवाली हैं. जिन भक्ति उसमें नहीं आयेगी आसक्ति. जो करेगा जिन भक्ति उसे मिलेगी हर संसार से मुक्ति, जो करेगा जिन भक्ति एक दिन अवश्य पायेगा मुक्ति. मुक्ति पाने के लिए पहला कर्तव्य हैं देवपूजा. उसके बाद गुरु उपासना. कोरोना महावीर अवसर लेकर आयी हैं. असीम आकांक्षा, लालसा, पाप ने कोरोना को पैदा किया हैं.
आचार्य के प्रसाद से विद्यारूपी मंत्र की सिद्धि समाप्त होती हैं- आचार्यश्री विमदसागरजी
मयूरपिच्छिधारी आचार्यश्री विमदसागरजी गुरुदेव ने धर्मसभा में कहा दुख के समय, संकट के समय प्रत्येक आत्मा के लिए धर्म स्मृति पटल पर आता हैं. वही व्यक्ति परमात्मा को याद करता हैं, जाप करता हैं, वही व्यक्ति भगवान के चरणों में दीपक लगाता हैं उसके लिए अनंत कार्य शांति करता हैं. जो पाप हमने किये हैं वह पाप जिनेन्द्र भगवान के भक्ति से क्षय हो जाते हैं. पंचम काल में साक्षात तीर्थंकर भगवान नहीं हैं, साक्षात गणधर स्वामी नहीं हैं, हमारे लिए ऋद्धि सिद्धि धारी मुनियों के दर्शन दुर्लभ हैं. हमें दिगंबर मुनियों का दर्शन दुर्लभ नहीं हैं. भगवान महावीर स्वामी के चरण हमारे पास नहीं हैं लेकिन महावीर स्वामी का आचरण हमारे पास हैं. महावीर स्वामी का प्रतिबिंब हमारे पास हैं, जिनेन्द्र भगवान की भक्ति से क्षय होता हैं. बहुत सारा कचरा हैं, जैसा पानी आता हैं पानी के मूल से कचरा चला जाता हैं. जिनेन्द्र भगवान का नाम लेने से पाप नष्ट होते हैं. तपस्या के प्रगट होते ही समस्या नष्ट होती हैं. पर्युषण के आते ही सारा प्रदूषण समाप्त होता हैं. आचार्य के प्रसाद से विद्यारूपी मंत्र की सिद्धि होती हैं. आचार्य के बिना तीन काल में मंत्र सिद्धि संभव नहीं हैं. देव शास्त्र गुरु का श्रद्धान नियामक हैं. जो स्वयं नहीं समझ सका वह दूसरे के समझाने से क्या समझेगा. जो समझ गया वह पार हो जाता हैं, कोई छोटा होकर भी बडा काम करता हैं, कोई बडा होकर भी बड़ा काम करता हैं. कोई छोटा होकर भक्ति में लगा हैं, कोई बड़ा होकर मुक्ति में लगा हैं. कोई छोटा होकर अपने में लगा हैं और कोई बड़ा होकर बड़ा हैं. कोई छोटा होकर वीतरागी हैं, कोई बड़ा होकर रागी हैं. जो हमारे पास हैं वह आचार्य का प्रसाद हैं, जो श्रावक के पास हैं किसी न किसी गुरु का आशीर्वाद है, जिनके पास मोक्षमार्ग की आंखे हैं, सत्य की आंखे हैं, संयम की आंखे हैं, धर्म की आंखे हैं वह व्यक्ति सत्य का रास्ता बताता हैं. भगवान की भक्ति से, पूर्व संचित पाप क्षय होते हैं. आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी गुरुदेव का सभी जगह एकत्रित बैठकर धर्म प्रभावना में महत्वपूर्ण योगदान हैं. गुरुदेव का कार्य सराहनीय और प्रशंसनीय हैं. हम यदि धर्म नहीं करेंगे तो हमारे बच्चे धर्म भूल जायेंगे. आज लोग वर्चुअल माध्यम से साधु संतों की वाणी सुन रहे हैं. जो साधुओं का धर्म ज्ञान, उपदेश मिल रहा हैं वह हमारे लिए जीवन में रत्नत्रय कार्य बनेगा. धर्म से जुड़ेंगे तो देव शास्त्र गुरु को भूलेंगे नहीं. हमारे जब मुक्ति नहीं मिले तब तक भावना भाना हमें जैन कुल में जन्म मिले ऐसी भावना भाना. जब तक मैं भगवान नहीं बन जाऊ तब तक भगवान के दर्शन मिलते रहे. धर्मसभा का संचालन स्वरकोकिला गणिनी आर्यिका आस्थाश्री माताजी ने किया. धर्मतीर्थ विकास समिति के प्रवक्ता नितिन नखाते ने बताया शनिवार 29 मई को सुबह 7:20 बजे शांतिधारा, सुबह 9 बजे आर्षकीर्ति मुनिराज का उदबोधन होगा. शाम 7:30 बजे परमानंद यात्रा, चालीसा, भक्तामर पाठ, महाशांतिधारा का उच्चारण एवं रहस्योद्घाटन, 48 ऋद्धि-विद्या-सिद्धि मंत्रानुष्ठान, महामृत्युंजय जाप, आरती होगी.