Published On : Thu, Feb 24th, 2022
By Nagpur Today Nagpur News

कोयला की कमी से गहराता जा रहा है देश में बिजली का संकट

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नागपुर– महाराष्ट्र राज्य के 7 बिजली केंद्र सहित देश की 71 सरकारी विद्युत परियोजनाओं में कोयला की कमी की वज़ह से बिजली उत्पादन में वृद्धि के वजाय गिरावटें आने के आसार नजर आ रहे हैं। कोयले की भारी कमी से जूझ रहा है महाराष्ट्र के थर्मल प्लांट में सिर्फ चार दिनो का कोयला बचा है। कोयले के साथ आर्थिक संकट से भी जूझ रही है महाराष्ट्र की बिजली कंपनी,यह कड़वा सत्य हैं.

बिजली कंपनी पर कोल इंडिया का 73 हज़ार करोड़ का बकाया
पता चला है कि कोल इंडिया लिमिटेड का महाराष्ट्र राज्य की बिजली कंपनियों पर रुपए 73 हजार करोड़ बकाया है। सूत्रों की मानें तो वर्तमान में कोल इंडिया की अनुसांगिक सहायक सभी कोयला कंपनियों मे कोयले की कमी की वजह से राज्य में बिजली का संकट गहराता जा रहा है। राज्य में बिजली के निर्माण के लिए महाराष्ट्र स्टेट पावर जनरेशन कंपनी लिमिटेड (महाजनको) के पास कोयले का 1,91,475 मैट्रिक टन स्टॉक ही बचा है, जबकि रोजाना कोयले को खपत 1,49,000 मैट्रिक टन है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि महाराष्ट्र के 7 सरकारी पावर प्लांटों में डेढ़ से चार दिनों का ही कोयला का स्टॉक बचा है। हालांकि थोड़ा सा कोयला मिलने वाला है,लेकिन वह ऊंट के मुंह को जीरा है।

महाजनको के राज्य में 7 पावर प्लांट हैं। कोराडी के 2,400 मेगावॉट के प्लांट में सबसे कम 20,364 मैट्रिक टन यानी 0.67 दिन का ही कोयला बचा है। चंद्रपुर के 2,920 मेगावॉट के प्लांट में सबसे अधिक 86,264 मैट्रिक टन यानी 1.64 दिन का स्टॉक बचा है। जानकारों के मुताबिक, अधिक बारिश होने के कारण कोयले की खदानों में पानी भर जाने से आपूर्ति बाधित हुई है।

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बिजली की मांग कम, फिर भी बढ़ी समस्या
पिछले साल की अपेक्षा इस वर्ष बिजली की खपत कम हुई है। कोयले की सप्लाई प्रभावित होने से मांग कम होने के बावजूद राज्य में बिजली संकट गहराता जा रहा है। आकड़ों के मुताबिक, 10 अक्टूबर 2020 में बिजली की खपत 20,505 मेगावॉट थी, वहीं इस वर्ष 10 अक्टूबर को करीब 19,000 मेगावॉट बिजली की खपत हुई है।

नवरात्रि त्योहार सीजन से पहले-पहले देश में कोयला संकट बढता जा रहा है।अगर देश में कोयले का संकट गहराया तो फिर घरों की बिजली भी खुल हो सकती है। दरअसल देश के 71 बिजली संयंत्रों के पास चार पांच दिनों का कोयला भंडार बचा है।कोयला खदानों से दूर स्थित बिजली संयंत्रों को ना-नपिटहेड कहते हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक,इन बिजली उत्पादन केन्द्रों में कोयला का सरकार खत्म हो रहा है और आने वाले चार पांच दिनों में वह सरकार भी समाप्त हो सकता है।उधर केन्द्रीय विधुत प्राधिकरण (CEA) की ओर से बिजली संयंत्रों के लिए कोयला भंडार पर ताजा रिपोर्ट से यह पता चला है कि 25 ऐसे बिजली संयंत्रों में अक्टूंवर में 7 दिन से भी कम कोयला बचा है।71 तापीय विद्युत केंद्रों चार पांच दिनों का ईंधन स्टाक शेष है।

कोयला खदानों से जुड़े संयंत्रों की ज़रुरतों को पूरा करना होगा। हालांकि इसी साल खान एवं खनिज (विकास एवं नियमन) संशोधन अधिनियम में संशोधन किया गया था।यह व्यवस्था सार्वजनिक और निजी खदानों के लिए होगी। सरकार ने खदानों से कोयले की 50 प्रतिशत बिक्री के लिए गत दिनों नियमों में संशोधन किया है।इससे 50 करोड़‌ मेट्रीक टन सालाना व्यस्त समय की वाले 100 से अधिक कैप्टिव और लिग्नाईट ब्लाकों को फायदा होगा। कोयला संकट से जूझ रहे बिजली संयंत्रों में UP पावर जनरेशन कंपनी,बिहार के पावर प्लांट, झारखण्ड पावर प्लांटों, छत्तीसगढ़ पावर कंपनियों पं बंगाल के पावर प्लांटों उड़ीसा के पावर प्लांट,और गुजरात के प्लांटों का समावेश है।

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