नागपुर – दिगंबर जैन आर्ष परंपरा के प्रथमाचार्य आचार्यश्री शांतिसागरजी महाराज ने कठीण तपस्या व संयम धारण किया व चारित्र्य चक्रवर्ती बन उनका नाम इतिहास के पन्नो मे स्वर्ण अक्षर मे लिखा गया। यह उद्बोधन आचार्यश्री विशुद्धसागरजी गुरुदेव के शिष्य प्रशमसागरजी महाराज ने शांतिसागर महाराज के पुण्यतिथी के अवसर पर अपने उदबोधन मे श्री पार्श्वप्रभू दिगंबर जैन मोठे मंदिर के इंद्र भवन मे दिया।
आगे कहा की आचार्यश्री शांति सागर के जीवन काल मे कितने ही उपसर्ग आए पर उन्होने दृढता के साथ उस पर विजय पाया।उस कठीण काल मे एक व्यक्ती ने उनके गले मे मरा हुआ सर्प डाल दिया , उनके सारे शरीर पर चढ- कर उन्हे दाह पहुचाय, पर वह अपने सामायिक से किंचित भी विचलित नही हुए।सर्प ने तो उनके सामने आकर कई बार उपसर्ग किया ।उन्होने अपने भय को मानो जैसे भुला ही दिया था। शेर की बनी गुफा मे बैठकर वह सामाईक करते थे क्योंकि अपने धर्म कि सिख पर वह अडीग व अटल थे। उन्होने अपने जीवन मे तीन बार सिंहनिष्क्रिडीत व्रत किया। अपने पुरे जीवन मे उन्होने 9930 उपवास कीए। हमे भी अपने जीवन मे जितना हो सके संयम धारण करना चाहिए।
मुनिश्री अनुपमसागरजी महाराज ने अपने उदबोधन मे कहा कि, आज भी आचार्यश्री शांतिसागर जी के जीवनी से प्रेरणा लेकर अनेक मुनि पूर्ण संयम की और अग्रेसर हो रहे है। आचार्य शांतिसागर गुरुदेव ने अपने लौकिक जीवन की कन्या को छोडकर मुक्ती कन्या को वर लिया था। मोक्ष मार्ग पर अग्रसर हो मोक्ष पाना ही उनका अंतिम लक्ष था। आज ही के दिन मुनिश्री प्रणवसागर मुनिश्री सर्वार्थ सागर व मुनिश्री साम्यसागर इनको दीक्षा दिवस पर अनेक बधाई देते हुए श्रावक को मुनि सानिध्य में आकर अपना जीवन सार्थक करने का उपदेश दिया।
कार्यक्रम का सफल आयोजन लाडपुरा महिला मंडल की अध्यक्षा प्रिती जैन(पेंढारी) व सचिव दिप्ती लाड ने और श्री पार्श्वप्रभू दिगंबर मोठे मंदिर ने सहयोग किया।इस अवसरपर मंगलाचरण रश्मि देवलसी, सुप्रिया डोणगावकर, अश्विनी खंडारे, मिनल खंडारे, निकिता मुधोलकर,दुहिता मुधोलकर ने किया।
आचार्यश्री के जीवन पर आधारित एक सुंदर पोवाडा क्षमा देवलसी, वैशाली देवलसी, नैना आग्रेकर, वर्षा दर्यापूरकर, अभिलाषा गरीबे, वैशाली खेडकर, पल्लवी लाड, सुप्रिया डोणगावकर ने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन समता गहाणकरी व आभार प्रदर्शन अश्विनी खंडारे ने किया।