Published On : Sat, Aug 26th, 2023
By Nagpur Today Nagpur News

चंद्रमा पर भारत, एक दुख भी

एस.एन. विनोद

भारतीय चंद्रयान को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर इसरो में कार्यरत भारतीय वैज्ञानिकों ने उतार कर न केवल इतिहास रचा, बल्कि वैश्विक विज्ञान के क्षेत्र में भारत को विशिष्ट स्थान दिला दिया. यह ठीक है कि अमेरिका, रूस और चीन बहुत पहले चंद्रमा पर पहुंच चुके हैं, लेकिन भारत पहला देश बना जो दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचा. प्रत्येक भारतीय अपने वैज्ञानिकों की इस सफलता पर गौरवान्वित है. भारत को भिखारियों का देश बताने वाले पश्चिमी राष्ट्र भी भारतीय वैज्ञानिकों की इस उपलब्धि को स्वीकार्य कर रहे हैं. और तो और हमारे दुश्मन देश पाकिस्तान के आम नागरिक भी भारत की इस सफलता पर हर्षित देखे गए. कुंठाग्रस्त पाकिस्तानी शासकों की छोड़िए, बंदी पाकिस्तानी मीडिया को छोड़िए, पाकिस्तानी अवाम खुले दिल से चंद्रयान-3 की सफलता पर आह्वलाद प्रकट करता देखा गया. भारत के अंदर भी राजनीति से इतर हर पक्ष ने बांहें फैला खुले दिल से इसरो और उसके वैज्ञानिकों को सिर आंखों पर बिठाया.

उल्लेख करना जरूरी है कि इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, Indian Space Research Organisation) की कल्पना देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने की थी और कल्पना को साकार करते हुए विज्ञान के क्षेत्र में भारत को विशिष्ट स्थान दिलाने हेतु इसकी स्थापना 23 फरवरी, 1962 को की थी. यद्यपि तब इसे इन्कोस्पार (भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति, The Indian National Committee for Space Research) के नाम से जाना जाता था. इसरो का गठन 15 अगस्त, 1969 को किया गया. इन्कोस्पार के पहले प्रमुख जाने माने वैज्ञानिक विक्रम साराभाई थे. इस कड़ी में संक्षेप में प्रमख अंतरिक्ष अभियान के बारे में बता दें कि भारत ने पहला रॉकेट तिरुवनंतपुरम में स्थापित थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन (TERLS) से 21 नवंबर, 1963 को प्रक्षेपित किया.

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देश के पहले उपग्रह आर्यभट्ट को 19 अप्रैल, 1975 को सोवियत संघ (अब रूस) के कॉस्मोस-3 एम लॉन्च वेहिकल से प्रक्षेपित किया गया था. सैटेलाइट लॉन्च वेहिकल-3 (SLV-3) भारत का पहला एक्सपेरिमेंटल सैटेलाइट लॉन्च वेहिकल था. इसे 18 जुलाई, 1980 को प्रक्षेपित किया गया था. SLV-3 ने ही रोहिणी को ऑर्बिट में स्थापित किया था. रोहिणी पोलर सैटेलाइट लॉन्च वेहिकल (PSLV) भारत का तीसरी पीढ़ी का लॉन्च वेहिकल है. इसी ने सफलतापूर्वक 2008 में चंद्रयान-1 और 2013 में मंगल ऑर्बिटर स्पेसक्राफ्ट को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया था. इसरो की सफलता की कड़ी में उसका जियोसिंक्रोनस सैटलाइट लॉन्च वेहिकल (GSLV) भी है. इसमें PSLV की तुलना में कक्षा में भारी पेलोड डालने की क्षमता है. चंद्रयान-1 भारत का पहला मून मिशन था. अक्टूबर 2008 में इसे प्रक्षेपित किया गया था. इसने चंद्रमा के चारों ओर 3,400 से अधिक चक्कर लगाए थे. 29 अगस्त, 2009 को स्पेसक्राफ्ट से संपर्क टूटने के बाद मिशन समाप्त हो गया था. 2019 में चंद्रयान-2 जब चंद्रमा की सतह पर उतरने ही वाला था कि लैंडर विक्रम से संपर्क टूट गया. और अब, चंद्रयान-3 की बड़ी कामयाबी दुनिया के सामने है.

बात करें चंद्रमा पर कदम रखने वाले तीन अन्य कामयाब देशों की, तो सोवियत यूनियन (अब रूस) का लूना-2 सबसे पहले सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में पहुंचने वाला यान बना था. हालांकि यह चंद्रमा की सतह तक पहुंचने में असफल रहा. इसके बाद 3 फरवरी, 1966 को सोवियत यूनियन के लूना-9 यान ने सफलतापूर्वक चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग की थी. हाल में रूस ने दक्षिणी ध्रुव पर अपना कदम रखने की कोशिश की थी, लेकिन नाकाम रहा. अमेरिका ने वर्ष 1968 में अपोलो-8 मिशन लॉन्च किया था. यह पहला मानव मिशन था, जो चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया था. इसके बाद 1969 में अपोलो-11 मिशन लॉन्च किया गया. इस मिशन के तहत नील आर्मस्ट्रांग चांद की सतह पर कदम रखने वाले पहले इंसान बने. तीसरे देश चीन ने चांग’ई 2 मिशन के तहत 1 दिसंबर, 2013 को चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने में कामियाबी हासिल की थी. इसके बाद वर्ष 2019 में चीन ने चांग’ई 4 मिशन के तहत उसने दोबारा चंद्रमा पर कदम रखा.

और अब भारी मन से अपनी बात…दुखद कि जब पूरा देश भारतीय वैज्ञानिकों की ऐतिहासिक उपलब्धि पर आह्लादित उनकी पूजा कर रहा था, जी हां; पूजा कर रहा था, तब दंडवत मीडिया का सहारा ले हमारे प्रधानमंत्री मोदी ने अपरोक्ष रूप से अवमानना कर दी. संभवत: अनजाने में, किन्तु पूरा देश तब हतप्रभ रह गया जब चंद्रयान-3 के चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने के बाद इसरो प्रमुख एस. सोमनाथ देश को जानकारी देने के लिए टेलीविजन पर आए. सोमनाथ कुछ शब्द बोले थे कि जोहान्सबर्ग (दक्षिण अफ्रीका) की यात्रा पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी टेलीविजन पर अवतरित हुए और देश से मुखातिब हो गए. हर शिक्षित व्यक्ति ने इसे वैज्ञानिकों का अपमान माना. प्रचार के भूखे, टेलीविजन पर हमेशा दिखने को आतुर प्रधानमंत्री मोदी वैज्ञानिकों के लिए अवसर विशेष के महत्व को भूल गए. वे भूल गए कि चंद्रयान-3 की सफलता पूर्णत: विज्ञान की सफलता है, राजनीति की नहीं. अपने वैज्ञानिकों की इस उपलब्धि, सफलता पर इस सफलता की पूरी जानकारी देश का हर नागरिक चाह रहा था. उनकी जिज्ञासा की पूर्ति वैज्ञानिक ही कर सकते थे, लेकिन दुखद रूप से वर्तमान कालखंड की छिछोरी राजनीति ने वैज्ञानिकों की जगह प्रधानमंत्री को सामने ला दिया. देश के प्रधानमंत्री को भी इस उपलब्धि पर देश के नागरिकों से रू-ब-रू होना ही चाहिए, किन्तु बेहतर होता खबरिया चैनल इसरो प्रमुख एस. सोमनाथ को उनकी बात पूरी करने का अवसर देते. उसके पश्चात प्रधानमंत्री सामने आते, किन्तु ऐसा नहीं हुआ. दंडवत मीडिया तो नहीं बताएगा सच्चाई कि पूरे देश में प्रधानमंत्री और खबरिया चैनलों के इस आचरण की भर्त्सना हो रही है. विज्ञान और वैज्ञानिकों को राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए. खुशी के इस प्रसंग में ऐसा हुआ, सिवाय उपरोक्त उस क्षण को छोड़कर.

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