नागपुर: पत्रकारिता और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स (Social Media Influencers) के बीच की जंग एक बार फिर से सुर्खियों में है। हाल ही में एक हिंदी अखबार में छपे लेख ने सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स के भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
सवाल तो सही है
लेकिन इसका जवाब उस लेख लिखने वाले पत्रकार को भी पता होगा
“जैसे ही पत्रकारों ने जनता की आवाज उठाना बंद कर दिया और सरकार के सामने चापलूसी करते हुए अपने अखबार को आत्मसमर्पण कर दिया, कड़वा है मगर सत्य है”
पत्रकारिता का असली स्वरूप तबसे बदल गया है, जब से पत्रकारों ने सरकार से सवाल पूछना बंद कर दिया।
सच्चे पत्रकारों को सवाल पूछने के कारण उनके संस्था से बाहर का रास्ता दिखाए जाने की घटनाओं ने इस स्थिति को और भी गंभीर बना दिया है। उदाहरण के तौर पर, नागपुर में एक पत्रकार ने NMC, NIT और सरकार की गलत योजनाओं के खिलाफ लिखना शुरू किया था। उसे ट्विटर (अब X) पर सक्रिय रहने और सवाल उठाने के कारण कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। यह पत्रकार यूट्यूबर या सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर नहीं बल्कि एक सच्चे पत्रकार हैं जिन्होंने तकनीक का सही उपयोग किया है।
सवाल है कि सोशल मीडिया और यूट्यूब के माध्यम से जनता की आवाज उठाना गलत कैसे हो सकता है?
जब पब्लिक सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर या यूट्यूबर से जुड़ती है जो उनकी आवाज उठाता है, तो इसमें क्या समस्या है?
क्या पत्रकार वही होता है जो डिग्री लेकर आता है? देश के प्रमुख पत्रकारों ने कोई डिग्री नहीं ली है और पत्रकारिता एक आंदोलन होती है, जिसमें डिग्री की आवश्यकता नहीं होती।
हालांकि सभी सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स पत्रकार नहीं हो सकते। नागपुर में कई सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स पैसे के लिए खराब सामग्री को भी अच्छा बताकर बेच देते हैं, जिससे इनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठते हैं।
प्रेस कॉन्फ्रेंस और इवेंट्स का आयोजन करने वालो को यह सोचने की जरूरत है कि पत्रकार को बुलाना है या सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स को। सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर हाइप क्रिएट करके एक बार प्रभाव डाल सकते हैं, लेकिन पत्रकार सच्चाई को जनता तक पहुंचाते हैं।
पत्रकारों को यह समझना होगा कि सोशल मीडिया का युग है और जनता सब देख रही है। अगर पत्रकार गलत को गलत बोलना शुरू नहीं करेंगे तो उनके सामने आने वाले दिन कठिन हो सकते हैं। उदाहरण अगर नागपुर की कॉलोनी में सीमेंट रोड और गटर के गलत निर्माण के खिलाफ आवाज उठाई गई होती, तो आज सड़कें सही होतीं और पानी की निकासी का भी सही प्रबंधन होता। पत्रकारों की चुप्पी ने लोगों को अन्य माध्यम की ओर देखने पर मजबूर किया है।
अखबार का प्रभाव कल भी था, आज भी है और हमेशा रहेगा। सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स के आगमन से इस प्रभाव में कोई बदलाव नहीं आएगा, लेकिन एक सच्चे पत्रकार की आवाज का फर्क पड़ सकता है।