आधा दर्जन विधायक लेकिन मंत्रिमंडल में स्थान नहीं
समाज में सक्रीय युवा नेतृत्व को तहरिज नहीं
लेकिन उत्तर प्रदेश में सत्ता के लिए समाज के प्रतिनिधि को बनाया प्रदेश प्रमुख
भाजपा का समाज के प्रति दोहरी नीति से समाज छुब्ध
नागपुर: सम्पूर्ण देश में ओबीसी समाज अंतर्गत माली समाज की जनसंख्या इतनी प्रभावी है कि राजनीति में अपना एक अलग स्थान रखती है। भाजपा इस समाज के सहारे उत्तर प्रदेश में जंग जितना चाहती है। तो इसी समाज को महाराष्ट्र में सत्ता रहते तवज्ज़ो न देना समाज के साथ दोहरी चाल समझ से परे है। राज्य में आगामी चुनावो में इसका गहरा असर देखने को मिल जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होंगी।
राज्य में माली समाज की अपनी एक प्रभावी जनसंख्या है। शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने इस समाज को तहरीज देते हुए समाज को मुख्यधारा में लाते हुए समय-समय पर प्रमुख पदों आदि पर बिठाया।
केंद्र व महाराष्ट्र राज्य में भाजपा की सरकार है। राज्य में दो दफे मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ। भाजपा में माली समाज के ५-६ विधायक रहने के बाद भी इस समाज से किसी भी विधायक को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया। जिससे सिर्फ भाजपा में काफी रोष है। इस रोष का असर सम्पूर्ण माली समाज पर पड़ा है. इतना ही नहीं इस समाज का नेतृत्वकर्ता नागपुर जिले से तो है ही, साथ में वह सम्पूर्ण राज्य में राज्य से सबसे प्रभावी भाजपा नेता नितिन गडकरी और देवेंद्र फडणवीस के गृह क्षेत्र से ताल्लुक रखता है। इसके अलावा वह सम्पूर्ण राज्य में माली समाज को एक सूत्र में बांधने में लीन है। ऐसे माली समाज व भाजपा में संगठन को मजबूती करने वाले भाजपाई युवा कार्यकर्ता को नज़रअंदाज करना भाजपा के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।
राज्य में माली समाज का सर्वदलीय प्रतिनिधित्व करने वाला एनसीपी नेता छगन भुजबल आज विवादों में घिर कर सलाखों के पीछे संघर्ष कर रहा है। वे एनसीपी में आने से पहले कट्टर शिवसैनिक थे। जहां स्वर्गीय बालासाहेब ठाकरे ने उनकी क्षमता को देख उन्हें अपने पलकों पर बिठाया था। एनसीपी ने भुजबल को प्रभावी मंत्री ही नहीं बल्कि माली समाज बहुल बिहार राज्य का पार्टी का प्रभारी बनाया। ताकि माली समाज को एकजुट कर एनसीपी का बिहार में प्रभाव बढ़ाये। वही कांग्रेस ने पिछले लोकसभा चुनाव में राजीव सातव को उम्मीदवारी देकर समाज के प्रति सम्मान की आस्था दिखाई थी। तो इसी समाज ने राजीव सातव को लोकसभा चुनाव जितवाकर अपने एकता का परिचय दिया। सबसे खास बात यह कि कांग्रेस को राज्य में २ ही सीटों पर सफलता मिली। जिसमे से एक सातव थे। अगर आज केंद्र में सत्ता होती तो सातव को निसंदेह कांग्रेस नेतृत्व मंत्रिमंडल में शामिल कर समाज का दिल जितने में कोई कसर नहीं छोड़ती।
उक्त घटनाक्रम से प्रभावित होकर भाजपा में माली समाज के विधायकों को उम्मीद थी कि भाजपा भी दल के तर्ज पर समाज के किसी एक विधायक को मंत्रिमंडल में स्थान की उम्मीद लगाए थे। लेकिन भाजपा नेतृत्व ने माली समाज के मंसूबे पर पानी फेर दिया। इतना ही नहीं समाज को यह भी उम्मीद थी कि समाज को एकजुटता में पिरोने के लिए दिनरात सक्रीय रहने वाला एवं गडकरी और फडणवीस के करीबी टेक्नो-सेवी नागपुर का एक भाजपाई नगरसेवक को भविष्य की राजनीतिक परिस्थिति में माली समाज को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए किसी महत्वपूर्ण पद पर आसीन करे। लेकिन ऐसा भी करने की कोशिश नहीं की जाने से राज्य में माली समाज काफी छुब्ध है। इस छुब्धता का असर आगामी चुनावों में पड़ा तो भाजपा के लिए काफी नुकसानदायक लम्हा ही होगा।
– राजीव रंजन कुशवाहा