नागपुर: इस वर्ष तूअर दाल की बम्पर पैदावार हुई है। पिछले वर्ष की तुलना में महाराष्ट्र के किसानों ने तीन गुना तूअर दाल का उत्पादन किया है। बावजूद इसके हमारे भूमिपुत्रों के चेहरे पर मुस्कराहट नहीं है, बल्कि उनके माथे पर चिंता की लकीरें हैं। इसकी दो मुख्य वजह हैं, पहली, महाराष्ट्र सरकार द्वारा तूअर दाल की खरीद में उदासीनता दिखाना और दूसरी वजह है तूअर दाल खरीदने के लिए निर्धारित न्यूनतम खरीद मूल्य का लगातार घिसरते जाना।
सरकार की पहल से हुई बम्पर पैदावार
पिछले साल इस समय खुदरा बाजार में तूअर दाल डेढ़ सौ से दो सौ रुपए प्रति किलो बिक रही थी। उस समय जानकारों ने कहा था कि पैदावार कम होने से तूअर दाल की कीमतें आसमान छू रही हैं। तब महाराष्ट्र की फड़णवीस सरकार ने तूअर दाल उपजाने के लिए राज्य के किसानों को कई तरह से प्रेरित किया। इसमें एक तरीका था तूअर दाल की न्यूनतम खरीद कीमत को 5050 रुपए प्रति क्विंटल करना। इस मूल्य में 4625 रुपए प्रति क्विंटल न्यूनतम खरीद कीमत थी और 424 रुपए प्रति क्विंटल बोनस जोड़ा गया था। यही नहीं पूरे विश्व में वर्ष 2016 को तूअर दाल वर्ष घोषित किया गया था।
इस वर्ष तीन गुना पैदावार
वर्ष 2015-2016 में महाराष्ट्र में कुल 12. 37 लाख हेक्टेयर जमीन पर कुल 4.44 लाख टन तूअर दाल की पैदावार हुयी थी। लेकिन वर्ष 2016-2017 में राज्य की 15. 33 लाख हेक्टेयर जमीन पर कुल 11. 71 लाख टन तूअर दाल की पैदावार हुयी है। अपने आप में यह एक रिकॉर्ड भी है।
कीमतों की घिसरन और किसानों की बढ़ती चिंताएं
हालाँकि 5050 रुपए प्रति क्विंटल की दर से सरकार को किसानों से तूअर दाल की खरीद करनी है, लेकिन मराठवाड़ा के कई शहरों जैसे, लातूर, वाशिम, परभणी आदि जिलों में तो सरकारी खरीद 3700 रुपए प्रति क्विंटल की दर से होने की ख़बरें आ रही हैं। सरकारी दर से इतनी कम कीमत में तूअर दाल खरीदी के पीछे तय है व्यापारियों की कोई चाल छिपी हुई है। क्योंकि जहाँ भी कम कीमत में दाल खरीदी की जा रही है, वहाँ की कृषि उपज बाजार समितियां बस हाथ पर हाथ धरे तमाशा देख रही हैं। किसानों की चिंता इस वजह से ही ज्यादा है, क्योंकि कृषि उपज बाजार समितियां तो सरकार की नीतियों का ही अनुपालन करती हैं, तो क्या महाराष्ट्र की फड़णवीस सरकार तूअर दाल उपजाने वाले किसानों के साथ छल कर रही है? किसानों को खरीद की न्यूनतम कीमत कुछ और बता रही है और समितियों द्वारा कमतर कीमत पर खरीद कराकर किसानों पर दबाव बना रही है?
निजी व्यापारियों की लार टपक रही है
कृषि उपज बाजार समितियों के किसान विरोधी रवैये से निजी दाल व्यापारियों की बाछें खिली हुई हैं। उन्हें लग रहा है कि वे किसान से कम से कम मूल्य में दाल खरीदेंगे और स्टॉककर बाद में बाजार में फिर से मनमानी कीमत में आम ग्राहकों को बेचेंगे।
सरकार को किसानों का बचाव करना चाहिए
विदर्भ के कई किसान हैं जिन्होंने कपास और सोयाबीन की अपनी पारंपरिक खेती को छोड़कर इस वर्ष तूअर दाल की खेती की है। बम्पर पैदावार से ये किसान उत्साहित हुए लेकिन बाजार में समुचित मूल्य नहीं मिलने की खबर से उनमें से कई किसान हताश और अवसाद में है। विदर्भ पहले ही किसान आत्महत्या का दंश झेल रहा है और अब दाल उत्पादक किसानों की हताशा से संवेदनशील लोगों के मन में तरह-तरह की आशंकाएं उठ रही है। प्रबुद्ध जनों की मांग है कि सरकार को इस मामले में दखल देते हुए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तूअर दाल उपजाने वाले किसानों को उनके बम्पर उपज के अनुरुप संतोषप्रद कीमत मिल सके।
नागरिकों से अपील
नागरिकों को भी इस सम्बन्ध में राज्य सरकार पर सोशल मीडिया के जरिए दबाव बनाना चाहिए। ताकि हमारे भूमिपुत्रों को उनके श्रम की सही कीमत मिले और किसान और आम नागरिक व्यापारियों के शोषण से बचे रह सकें।