नागपुर: शहर में बड़े पोले के दूसरे दिन अर्थात छोटे पोले के दिन नेहरू चौक से काली मारबत निकलती है. इस ऐतिहासिक और पारंपरिक उत्सव को देखने के लिए शहर के साथ दूर दराज से भी हजारों की संख्या में नागरिक पहुंचते हैं. काली मारबत की परंपरा करीब 136 वर्ष पुरानी है. काली मारबत की शुरुआत वर्ष 1881 से हुई थी.
आज भी इस उत्सव की लोग हर साल राह देखते हैं. काली मारबत उत्सव समिति के सदस्य विनोद गुप्ता (लालाजी ) का कहना है कि भोसले राजवंश की बकाबाई ने विद्रोह कर अंग्रेजों का साथ दिया था इसी विद्रोह के विरोध में इसकी शुरुआत हुई थी . समिति की ओर से इसको बनाने का कार्य चल रहा है. काली मारबत बड़ी होती है इसे बांस, कागज, सुतली की मदद से बनाया जाता है. 22 तारीख को धूमधाम से इसे परिसर में घुमाया जाएगा. इसके बाद नाईक तालाब में इसका विसर्जन होगा. काली मारबत बनाने के पीछे कई लोग दंतकथा भगवान श्री कृष्ण द्वारा पूतना राक्षस के वध को भी मानते हैं.
इसी तरह तऱ्हाने तेली समाज द्वारा पिछले 133 वर्षों से पीली मारबत की प्रतिमा तैयार की जाती है. आजादी की लड़ाई के दौरान लोगों को जागरुक करने के उद्देश्य से भी इसकी शुरुआत की गई थी. इसको बनाने की शुरुआत भी एक महीने पहले से ही की जाती है. इसका धार्मिक महत्व होने के कारण इसकी पूजा भी की जाती है और जुलूस निकाला जाता है. दोनों ही मारबतों को बनाने का कार्य जोर शोर से चल रहा है.
इस जुलूस में हजारों की तादाद में लोग शामिल होते हैं. तो वहीं इसे देखने के लिए भी लाखों की संख्या में लोग मौजूद रहते हैं. इस दौरान कई तरह के स्लोगन भी दिखाई देते हैं. जिसमे गरीबी, भ्रस्टाचार, बिमारी, देश का या शहर के कोई बड़े प्रमुख मुद्दे को केंद्रित किया जाता है. पुलिस विभाग की ओर से भी इस दिन सुरक्षा के तगड़े इंतेजाम किए जाते हैं। ब्रिटिशकालीन होने के बावजूद इस परंपरा को आज तक नागरिकों के सहयोग से समितों द्वारा चलाया जा रहा है जिससे यह परंपरा आज भी बदस्तूर मनाई जाती है.