नई दिल्ली: पूर्व वित्त मंत्री और वरिष्ठ बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा ने मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की बखिया उधेड़ दी। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस में लिखे एक लेख के जरिए अर्थव्यवस्था के मौजूदा हालात पर गहरी नाराजगी जाहिर की। सिन्हा ने कहा कि ताजा हालात का अंदाजा लगाकर इससे निपटना बहुत मुश्किल काम नहीं था, लेकिन जेटली के कंधों पर इतनी जिम्मेदारियां दे गईं कि उनसे इतनी उम्मीद लगाना भी बेमानी है। आइए जानते हैं वे 11 बड़ी बातें जिनके आधार पर यशवंत सिन्हा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली को आड़े हाथों लिया.
- 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने दो करीबियों जसवंत सिंह और प्रमोद महाजन को कैबिनेट में शामिल नहीं किया था क्योंकि दोनों चुनाव में हार गए थे। लेकिन अमृतसर से चुनाव हार जाने के बाद भी अरुण जेटली को वित्त मंत्री बनाया गया।
- जेटली उदारवादी युग के बाद सबसे ज्यादा भाग्यशाली वित्त मंत्री हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमत बेहद कमजोर होने से उनके पास लाखों करोड़ रुपये आ गए। इसका सही से इस्तेमाल किया जाना चाहिए था। इसमें कोई संदेह नहीं कि अटके पड़े प्रॉजेक्ट्स और बैंकों के नॉन-परफॉर्मिंग ऐसेट्स जैसी विरासत में मिलीं समस्याएं हैं जिनसे बेहतर तरीके से निपटा जा सकता है। लेकिन, तेल का फायदा यूं ही जाया हो गया और विरासत में मिली समस्याओं को न केवल कायम रखी गईं बल्कि और भी खराब हो गईं।
- इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था की तस्वीर देखिए। प्राइवेट इन्वेस्टमेंट दो दशकों के निम्नतम स्तर पर है। औद्योगिक उत्पादन ध्वस्त हो गया, कृषि क्षेत्र संकट में है, बड़ी संख्या में रोजगार देनेवाले निर्माण उद्योग में भी सुस्ती छाई हुई है। बाकी के सर्विस सेक्टर भी अनिश्चितता के दौर से गुजर रहा है। निर्यात काफी घट गया है। अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्र संकट के दौर से गुजर रहे हैं।
- नोटबंदी एक बड़ी आर्थिक आपदा साबित हुई है। जीएसटी पर न तो अच्छे से विचार हुआ और न ही ठीक से लागू किया गया। इस कारण जीएसटी ने कारोबार जगत में उथल-पुथल मचा दी है। लाखों लोगों की नौकरियां चली गईं और श्रम बाजार का रुख करनेवालों के लिए नौकरियों के नए अवसर भी नहीं बन रहे हैं।
- तिमाही दर तिमाही अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर घट रही है और चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में यह 5.7 प्रतिशत पर आ गिरी है जो तीन सालों में सबसे कम है।
- सरकार के प्रवक्ताओं का कहना है कि नोटबंदी अर्थव्यवस्था की सुस्ती के लिए जिम्मेदार नहीं है। वे सही बोल रहे हैं। इकॉनमी बहुत पहले से ही सुस्त हो पड़ रही थी। नोटबंदी ने आग में घी का काम किया।
- हां, यह भी ध्यान रखिए कि मौजूदा सरकार ने 2015 में जीडीपी के आकलन की पद्धति बदल दी। इस कारण पहले सालाना आधार पर 200 बेसिस पॉइंट का ग्रोथ रेट दर्ज किया गया। इसलिए पुरानी आकलन पद्धति के आधार पर 5.7 प्रतिशत का ग्रोथ रेट वास्तव में 3.7 प्रतिशत या इससे भी कम है।
- इस गिरावट की वजहों को जानना बहुत कठिन नहीं है और न ही ये अचानक पैदा हुई हैं। इन्हें वक्त-वक्त पर बढ़ने दिया गया जिसकी वजह से मौजूदा संकट खड़ा हुआ है। इनका पहले से अंदाजा लगाकर सही कदम उठाना कठिन नहीं था, लेकिन इसके लिए वक्त के साथ-साथ दिमाग का गंभीर इस्तेमाल, मुद्दे की समझ और फिर इससे निपटने के लिए एक गेम प्लान पर काम करने की जरूरत थी। जिस व्यक्ति पर कई अतिरिक्त जिम्मेदारियां हों, उनसे इतना ज्यादा उम्मीद लगाना भी बेमानी है और अब परिणाम सबके सामने है।
- इस साल मॉनसून भी बहुत अच्छा नहीं रहा है। इससे ग्रामीण इलाकों में मुश्किलें और बढ़ेंगी। कुछ राज्य सरकारों ने किसानों को एक पैसे से लेकर कुछ रुपये तक की ‘बड़ी’ ऋण माफी दी है।
- देश की 40 दिग्गज कंपनियां दिवालिया कानून का सामना कर रही हैं। कई और कंपनियों के साथ यही हो सकता है। लघु एवं मध्यम उद्योग मुश्किल में हैं। जीएसटी के तहत टैक्स कलेक्शन 95000 रुपये हुआ। इसमें से व्यापारी 65000 करोड़ रुपये की मांग इनपुट टैक्स क्रेडिट के रूप में कर रहे हैं। कई कंपनियों के पास कैश नहीं आ रहे। खासकर लघु एवं मध्यम सेक्टर की कंपनियां इस मुश्किल से गुजर रही हैं।
- हम विपक्ष में रहते हुए रेड राज का विरोध करते रहे और आज यह रोजमर्रा की बात हो गई है। नोटबंदी के बाद सीबीआई, ईडी आदि को लाखों मामलों की जांच का जिम्मा दिया गया है। इससे लोगों में डर का माहौल है।