नागपुर: सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस की सुनवाई कर रहे सीबीआई जज बीएच लोया की मौत से जुड़े कुछ नये तथ्यों के छपने के बाद राजनीतिक माहौल गर्म हो गया है। पिछले सप्ताह कारवां पत्रिका में छपी इस स्टोरी में पत्रिका ने जज बृजमोहन लोया की बहन और उनके पिता से बात करके ये दावा किया है कि जस्टिस लोया की मौत संदेहों के घेरे में है और इस मौत को कवर-अप करने की कोशिश की गई है।
दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, कांग्रेस, सीपीएम और दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व जज एपी शाह ने इस मामले की जांच की मांग की है।
रिकॉर्ड के मुताबिक 48 साल के सीबीआई जज लोया की मौत 1 दिसंबर 2014 को नागपुर में हार्ट अटैक से हुई। इससे पहले जस्टिस लोया अपने साथी जज स्वपना जोशी की बेटी की शादी में शामिल हुए थे। स्वपना जोशी अब बॉम्बे हाई कोर्ट में जज हैं। पत्रिका कारवां में रिपोर्ट छपने के बाद इंडियन एक्सप्रेस ने पूरी घटना को रिकंस्ट्रक्ट किया। इसके लिए अस्पताल के रिकॉर्ड्स खंगाले गये, चश्मदीदों से नागपुर, लातूर और मुंबई में बात की गई। जज लोया के परिवार वालों की भी राय ली गई। इसके अलावा बीएच लोया का इलाज करने वाले डॉक्टरों, पुलिस अधिकारियों से बात की गई। इंडियन एक्सप्रेस ने बॉम्बे हाई कोर्ट के दो सीटिंग जजों से भी बात की जो उस अस्पताल में मौजूद थे जहां जस्टिस लोया की मौत हुई थी।
इंडियन एक्सप्रेस की इस जांच से पता चला है कि कारवां मैगजीन के दावे जैसे कि ‘ECG काम नहीं कर रहा था’, ‘परिवार से अपरिचित एक शख्स ने बॉडी को उठाया’, जज की मौत के बाद उनकी बॉडी को लावारिस हाल में छोड़ दिया गया और उनके पार्थिव शरीर को जज लोया के पैतृक गांव में बिना किसी एस्कॉर्ट के भेजा गया’, घटनास्थल पर मौजूद सबूतों से मैच नहीं करते, आधिकारिक रिकॉर्ड भी मैगजीन के इस दावे की पुष्टि नहीं करते। बता दें कि बॉम्बे हाईकोर्ट के दो जज, जस्टिस भूषण गवई, और जस्टिस सुनील शुक्रे जस्टिस लोया की मौत के बाद अस्पताल गये और उनकी बॉडी को ले जाने का इंतजाम करवाया। इन दोनों जजों ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि वहां कुछ भी ऐसा नहीं था जिससे की उनकी मौत के कारणों पर संदेह किया जा सके। बता दें कि जस्टिस लोया उस वक्त गुजरात के बहुचर्चित सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस की सुनवाई कर रहे थे। इस केस में अमित शाह एक आरोपी थे। बाद में अमित शाह को अदालत ने बरी कर दिया था। सीबीआई ने अमित शाह को बरी किये जाने के खिलाफ अबतक अपील नहीं किया है।
किन हालात में हुई जस्टिस लोया की मौत
30 नवंबर 2014 को जज स्वपना जोशी की बेटी की शादी के बाद जस्टिस लोया रवि भवन गेस्ट हाउस में ठहरे थे। ये गेस्ट हाउस नागपुर के सिविल लाइंस इलाके में स्थित है। इसी गेस्ट हाउस में लोया ने 1 दिसंबर को सुबह 4 बजे छाती में दर्द की शिकायत की। घटना के दिन को याद करते हुए जस्टिस भूषण गवई ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘लोया अपने साथी जज श्रीधर कुलकर्णी, श्रीराम मधुसूदन मोडक के साथ ठहरे हुए थे। सुबह चार बजे उन्हें कुछ तकलीफ महसूस हुई। स्थानीय जज विजयकुमार बर्दे और उस समय के हाईकोर्ट के नागपुर बेंच के डिप्टी रजिस्ट्रार रुपेश राठी उन्हें सबसे पहले दांडे अस्पताल ले गये। ये अस्पताल गेस्ट हाउस से 3 किलोमीटर दूर स्थित है। ये लोग दो कारों में अस्पताल पहुंचे।’ जस्टिस शुक्रे ने कहा कि जैसा कि कारवां रिपोर्ट में बताया गया है उन्हें एक ऑटो रिक्शा में ले जाने का सवाल ही नहीं था। जस्टिस शुक्रे के मुताबिक, ‘जस्टिस बर्दे ने उन्हें अपनी कार में बिठाकर, खुद कार चलाकर दांडे हॉस्पिटल ले गये।’
कारवां रिपोर्ट और जज की बहन ये सवाल उठाती हैं कि दांडे अस्पताल में जस्टिस लोया की ECG क्यों नहीं की गई। जबकि रिकॉर्ड बताते हैं कि दांडे अस्पताल में ECG की गई थी। इस ECG की एक कॉपी इंडियन एक्सप्रेस के पास भी है। जब दांडे अस्पताल के डायरेक्टर पिनाक दांडे से संपर्क किया गया तो उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘ उन्हें हमारे अस्पताल में सुबह 4.45 या 5 बजे के करीब लाया गया, हमारे अस्पताल में 24 घंटे चलने वाला ट्रामा सेंटर है, घटना के वक्त अस्पताल में एक मेडिकल ऑफिसर मौजूद थे जिन्होंने जज लोया को चेक किया। जब उनकी ECG की गई तब हमें महसूस हुआ कि उन्हें विशेष ह्रदय चिकित्सा की जरूरत है जो हमारे अस्पताल में मौजूद नहीं था, इसलिए हमने उन्हें एक बड़े अस्पताल में ले जाने की सलाह दी, इसके बाद वे उन्हें मेडिट्रिना अस्पताल ले गये।’
मेडिट्रिना अस्पताल के प्रबंध निदेशक ने इस मामले में बात करने से इनकार कर दिया। लेकिन अस्पताल से इंडियन एक्सप्रेस को मिले दस्तावेज के मुताबिक पता चलता है कि जब उन्हें इस अस्पताल में लाया गया तो उन्हें रेट्रोस्ट्रनल चेस्ट पेन हुआ था और वे बेहोश हो गये थे। इस अस्पताल में तुरंत उनका इलाज शुरू किया गया। उन्हें 200 J के कई डॉयरेक्ट शॉक दिये गये। प्रोटोकॉल के मुताबिक सीपीआर किया गया। लेकिन कई कोशिशों के बावजूद मरीज को होश नहीं आया। मेडिट्रिना अस्पताल में ही कई दूसरे जज पहुंचे। इंडियन एक्सप्रेस बातचीत में जस्टिस गवई ने कहा कि, ‘ मुझे हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार ने फोन किया मैं अपने साथी जज जस्टिस शुक्रे के साथ अस्पताल पहुंचा। कई दूसरे जज भी पहुंचे, जिसमें चीफ जस्टिस मोहन शाह भी शामिल थे लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका। इस मामले में ना तो उनकी मौत को लेकर कोई शक है और ना ही घटनाओं को लेकर।’