नागपुर: इन दिनों राज्य की उपराजधानी नागपुर में शीतकालीन अधिवेशन शुरू है। अधिवेशन के दो दिन किसानों की कर्जमाफी के मुद्दे की भेंट चढ़ गए उम्मीद थी की बुधवार से विधानभवन में काम-काज होगा। उम्मीद के मुताबिक विधानसभा में कामकाज हुआ भी लेकिन उच्च सदन विधानपरिषद में कामकाज नहीं ही हो पाया। राज्य में सरकार द्वारा घोषित कर्जमाफी को लेकर सरकार-विपक्ष आमने सामने है दोनों के अपने अपने तर्क है।एक ओर जहाँ पक्ष-विपक्ष एक दूसरे पर सदन का कामकाज नहीं चलने देने का आरोप लगा रहे है तो वही दूसरी तरफ़ अब सरकार विपक्ष के ख़िलाफ़ राज्यपाल के पास शिकायत करने की तैयारी में है। बात भले ही थोड़ी अचंभित करने वाली लगे लेकिन है सच, सदन का कामकाज सुचारु चले इसकी जिम्मेदारी सरकार की भले होती हो लेकिन सरकार,सरकार न होकर विपक्ष से लड़ने के लिए विपक्ष के ही हथियार का सहारा ले रही है।
इतना ही नहीं बुधवार को जब विपक्षी दल के सदस्य सरकार के ख़िलाफ़ घोषणाबाजी करते हुए व्हेल में आ पहुँचे तो उन्हें काउंटर जवाब देने के लिए सत्तापक्ष के सदस्य भी व्हेल में पहुँचकर प्रदर्शन करने लगे। राष्ट्रवादी कांग्रेस के सदस्य सुनील तटकरे द्वारा कर्जमाफी पर दिए गए स्थगन प्रस्ताव को उपसभापति ने ख़ारिज कर दिया लेकिन उन्हें अपने मुद्दे पर बात रखने का मौका दिया गया। इस बात से सदन के नेता चंद्रकांत दादा पाटिल ने नाराजगी जताई उनका तर्क था की जब सदन के कामकाज में चर्चा किया जाना तय है तो रोज़-रोज स्थगन प्रस्ताव देने का मतलब सदन के समय की बर्बादी है। जबकि राज्यपाल ने अधिवेशन के कामकाज का जो प्रारूप तैयार किया है उसी के अनुसार कामकाज होना चाहिए।
संसदीय कार्यमंत्री गिरीश बापट ने विपक्ष पर जनसँख्या के आधार पर सरकार को दबाने की कोशिश का आरोप लगाया। दूसरी तरफ नेता प्रतिपक्ष धनंजय मुंडे ने सरकार को आड़े हाँथो लेते हुए इस तरह की हरक़त को किसानों के प्रश्नों को सदन में लाने न दिए जाने के पीछे सत्तापक्ष की चाल करार दिया।
पक्ष-विपक्ष के अपने तर्क है लेकिन बीते तीन दिनों से सदन का कामकाज बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। विपक्ष का काम भले ही सरकार का विरोध करना हो लेकिन उसका कर्तव्य अपनी तरफ से सदन की कार्यवाही को चलना है लेकिन सरकार भी मामले को सुलझाने की बजाए बढ़ाते ही दिखाई दे रही है।