नागपुर: सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत सभी बच्चों को शिक्षा का अधिकार देने की गारंटी सरकार की ओर से दी जाती है. इसके लिए विज्ञापन से लेकर जनजागृति भी करने की बात सरकार की ओर से की जाती है. लेकिन सरकारी स्कूलों में जाकर पता चलता है कि स्कूलों की हालत कितनी खराब हो चुकी है. नागपुर महानगर पालिका की गिट्टीखदान स्थित मराठी उच्च प्राथमिक शाला का हाल बेहाल है. स्कूल में अव्यवस्थाएं इतनी हैं कि देखकर सर्व शिक्षा अभियान का नारा बेमानी लगने लगता है. यह एक मराठी स्कूल है जो पहली से लेकर सातवीं तक है. जिसमें विद्यार्थियों की संख्या 126 है. तो वहीं इन विद्यार्थियों को पढ़ानेवाले शिक्षकों की संख्या 7 है. कुछ दिन पहले 6 ही शिक्षक थे. जिसके बाद स्कूल की ओर से मनपा में अतिरिक्त शिक्षक को भेजने की डिमांड की गई है. जिसके बाद स्कूल में शिक्षक को भेजा गया. मिशनरी या फिर क्रिस्चियन स्कूलों को क्रिसमस की दस दिनों की छुट्टियां दी जाती हैं. यह बात समझ में आती है. लेकिन इस बार मनपा ने प्राथमिक स्कूलों को भी करीब एक हफ्ते की क्रिसमस की छुट्टियां दी हैं. अब इसमें कौन से नियम के तहत यह छुट्टियां दी गई हैं, इसके बारे में केवल मनपा के उच्च अधिकारी ही बता सकते हैं. 1 जनवरी से मनपा की प्राथमिक स्कूलें खुलेंगी.
कितने शिक्षक होने चाहिए और कितने हैं
इस स्कूल में 126 विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए 7 शिक्षक हैं. राज्य सरकार के अनुसार 35 विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए एक शिक्षक होना चाहिए. जबकि यहां सात शिक्षक हैं. जो की इतना बुरा नहीं है. लेकिन बुरा यह है कि सभी विषयों को पढ़ाने के लिए एक एक शिक्षक को जिम्मेदारी दी गई है. एक ही शिक्षक इंग्लिश, गणित और हिंदी, मराठी समेत करीब 7 विषय को पढ़ाने की जिम्मेदारी दी गई है. अब एक शिक्षक अगर मराठी का है या फिर हिंदी का है तो वह बाकी के विषय विद्यार्थियों को कैसे पढ़ा पाएगा. यह सोचने के लिए न तो मनपा के पास समय है और न ही सरकार के पास. स्कूल में एक चपरासी है, एक चौकीदार है और एक सफाई कर्मी है. लेकिन सफाई कर्मी और चौकीदार परिसर में कहीं पर भी दिखाई नहीं दिए.
स्कूल परिसर में अव्यवस्थाओं की भरमार
स्कूल परिसर में भले ही सुरक्षा दीवार है. लेकिन उस कंपाउंड का कोई भी फायदा नहीं है. स्कूल के कंपाउंड के अंदर आसपास के लोग आकर अपने कार्यक्रम करते हैं. जिसके लिए वह किसी से भी अनुमति नहीं लेते हैं. क्योकि इसके लिए परिसर के ही नगरसेवक इनको बढ़ावा देते हैं. कंपाउंड के अंदर ही बड़े बड़े पाइप रखे गए हैं, जिसके कारण विद्यार्थियों को आने जाने में काफी परेशानी होती है. आस पास का परिसर झोपड़पट्टी होने के कारण यहां पर गुंडागर्दी भी काफी देखने को मिली. स्कूल के गेट की सलाख तोड़ी गई है, जिससे की अंदर घुसा जा सके. साथ ही इसके स्कूल के दूसरे गेट के कंपाउंड के पास ही नीचे से कंपाउंड को तोड़ा गया है. जिससे की अंदर किसी भी समय घुसा जा सके. पास ही लोगों की ओर से कचरा भी डाला गया है. प्रिंसिपल का कहना है कि यहां के लोगों को अगर कुछ कहा जाए तो झगड़ने आ जाते हैं. जिसके कारण इन्हे भी अव्यवस्थाओं के बाद भी यहां पढ़ाने को मजबूर होना पड़ रहा है. सामने ही गटर है उसमे से भी गंदगी बाहर बहती रहती है. जिससे विद्यार्थियों को भी स्वास्थ का खतरा बना रहता है.
स्कूल में कहां के बच्चे ज्यादा आते हैं
जाहिर है कि इन मनपा की स्कूलों में आईएएस, उच्च अधिकारियों के या फिर नगरसेवकों के बच्चे तो नहीं पढ़ते. जो भी बच्चे पढ़ते हैं वह ज्यादातर परिसर के गरीब तबके के ही बच्चे पढ़ने आते हैं. लेकिन अव्यवस्थाओं के बाद भी बच्चे पढ़ने आते हैं.
पहले दिए बाद में लेकर गए कंप्यूटर
पहले मनपा की ओर से इस स्कूल में करीब 5 कंप्यूटर दिए गए थे. और कुछ कंप्यूटर विद्यार्थियों को प्रशिक्षण के लिए शिक्षक भी भेजे गए थे. कंप्यूटर आने के कारण शिक्षकों को भी फॉर्म भरने की दिक्कत नहीं होती थी. इन कंप्यूटरों का उपयोग स्कूल के बच्चे भी करते थे. लेकिन अब मनपा की ओर से कंप्यूटर भी वापस लिए जा चुके है. अब स्कूल में एक भी कंप्यूटर नहीं है. शिक्षकों को और यहाँ तक की प्रिंसिपल को भी स्कूल से संबंधित काम करवाने के लिए नेट कैफ़े जाना पड़ता है. यह अव्यवस्थाएं साबित करती है कि भारत में डिजिटिलायझेशन की बात तो होती है पर सच्चाई कुछ और ही है.
क्या है विद्यार्थियों की सुरक्षा के उपाय
जिस स्कूल में इतनी अव्यवस्थाएं हो वहां विद्यार्थियों की सुरक्षा की बात करना जरूरी नहीं रह जाता। लेकिन फिर भी जानकारी देते हुए बताते है कि यूजीसी कहे या फिर सीबीएसई, उसके बाद शिक्षा उपसंचालक और शिक्षांधिकारी सभी की ओर से स्कूलों को विद्यार्थियों की सुरक्षा से संबंधित दिशा निर्देश जारी किए गए हैं. इससे यह माना जा सकता है कि यह दिशा निर्देश केवल निजी स्कूलों के लिए या फिर सीबीएसई के स्कूलों के विद्यार्थियों की सुरक्षा के लिए ही थे. इसमें बताया गया था कि स्कूल के भीतर और बाहर कैमरे होने चाहिए, स्कूल में बाहरी प्रवेश करनेवाले लोगों के लिए उनका नाम रजिस्टर में लिखवाना जरूरी था. लेकिन इस गिट्टीखदान की मनपा स्कूल में विद्यार्थियों की शिक्षा के साथ साथ उनकी सुरक्षा को भी खतरे में डालने का काम मनपा कर रही है. इस स्कूल में न तो कैमरे है और न ही सुरक्षा के लिए पर्याप्त सुरक्षा रक्षक. अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि सरकार किन विद्यार्थियों की और स्कूलों की सुरक्षा को महत्व देती है.
मुख्याध्यापिका का क्या है कहना
स्कूल की प्रिंसिपल सुनीता पहापड़कर ने बताया कि स्कूल की हालत दूसरी मनपा की स्कूलों के मुकाबले बेहतर है. स्कूल में पढ़नेवाले बच्चों को हम रोजाना घर से बुलाकर लाते हैं. बच्चे स्कूल में पढ़ने आना नहीं चाहते हैं, लेकिन फिर शिक्षकों का प्रयास होता है कि स्कूल में विद्यार्थियों की संख्या बढ़े. उनका कहना है कि स्कूल में आस पास के लोग कंपाउंड के अंदर ही कोई भी कार्यक्रम करते हैं. जिसकी अनुमति भी वह मनपा से नहीं लेते हैं. गेट की सलाख तोड़ दी गई है. ताकि आसानी से अंदर आ जा सके. उन्होंने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए बताया कि छुट्टी होने के बावजूद भी उन्हें स्कूल में आना पड़ता है और दिन भर बैठना पड़ता है. करीब दस स्कूलों का कामकाज इस स्कूल से किया जाता है. जिसके कारण दूसरी स्कूलों के पुराने विद्यार्थी टीसी मांगने के लिए आते हैं और दिनभर परेशान करते हैं. जिसके कारण कई बार विद्यार्थियों को पढ़ाने में दिक्कत होती हैं. उनका कहना है कि मनपा के शिक्षकों को पढ़ाई को छोड़ अन्य काम दिए जाते हैं. जिससे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है.