नागपुर: केंद्रीय बजट में पर्यावरण सरंक्षण के लिए उचित निधि नहीं मिलने के कारण भारत द्वारा 2016 में किए गए पेरिस करार पर भी सरकार गंभीर नहीं दिखाई दे रही है. ऐसा प्रतीत हो रहा है. भारत उन प्रथम पांच देशों में आता है जो सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करता है. पेरिस करार में भारत द्वारा यह कहा गया था कि वे अपने कार्बन उत्सर्जन में कमी लाएंगे . जिसके बाद ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि पर्यावरण संरक्षण और अपारंपरिक ऊर्जा श्रोतों को बढ़ावा देने हेतु इस बजट में ज्यादा निधि का प्रावधान किया जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. कार्बन उत्सर्जन में तभी कमी आ पाएगी जब अपरम्पारिक ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा मिलेगा .
बजट में पर्यावरण को उसके अनुपात में निधि नहीं मिलने से शहर के जानेमाने पर्यावरणविद व ग्रीन विजिल संस्था के संस्थापक कौस्तुभ चटर्जी ने नाराजगी जताई है. उन्होंने बताया कि विकास के लिए औद्योगिकरण जरूरी है. लेकिन इससे प्रदूषण होगा ही. इसके लिए सरकार को चाहिए कि रिनिवल सोर्स ऑफ़ एनर्जी जैसे कि सौर ऊर्जा, वायु ऊर्जा, हाइड्रो एनर्जी एवं बायोमास ऊर्जा को बढ़ावा दे . इस बार इस बजट में एनवायरनमेंट प्रोटेक्शन मैनेजमेंट एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट के लिए केवल 235 करोड़ का प्रावधान किया गया है. जो की काफी कम है. इसमें से प्रदूषण रोकने के लिए 30 करोड़ रुपए, घातक पदार्थ व्यवस्थापन के लिए 15 करोड़ और क्लाइमेट चेंज . जिससे सारी दुनिया जूझ रही है उसके लिए केवल 40 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है. इसमें सबसे ज्यादा निधि देने की जरूरत क्लाइमेट चेंज को थी.
पर्यावरण को बचाना और उसका संरक्षण करना तभी संभव हो पाएगा जब ग्रामीण भाग से लेकर शहरी भाग के लोगों को भी पर्यावरण के महत्व की जानकारी होगी. इसके लिए उनमें जागरुकता लाने की जरूरत है. लेकिन पर्यावरण शिक्षा व जागरुकता के लिए सरकार ने केवल 67 करोड़ रुपए का ही प्रावधान किया है. जबकि इसके लिए भी ज्यादा निधि की जरूरत थी. इस बजट में केवल दो ही अच्छे काम दिखाई दे रहे है. नमामि गंगे के अंतर्गत 87 योजनाएं शुरू होंगी और 2 करोड़ सार्वजानिक शौचालय बनाये जाएंगे .
कौस्तुभ चटर्जी ने बताया कि पर्यावरण मंत्रालय, वन और जलवायु परिवर्तन ने मांग रखी है. घोषित की गई निधि काफी कम है. साथ ही इसके वाइल्डलाइफ को भी कुछ ख़ास इस बार नहीं मिला है. प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण व्यवस्था के संरक्षण हेतु केवल 80 करोड़ रुपए दिए गए है. इसमें जैवविविधता संरक्षण के लिए 14.5 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है. नदी संरक्षण के लिए 173 करोड़ रुपए दिए गए है. कुल मिलाकर वन्यजीवों के लिए 550 करोड़ रुपए दिए गए है. इनमें से टाइगर्स के लिए 350 करोड़, हाथियों के लिए 30 करोड़ और अन्यों के लिए 175 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है जो कि काफी कम है.