इनदिनों प्रायः हर दिन घटित हो रही सनसनीखेज घटनाओं के बीच एक और असहज़ सनसनी।दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव का आरोप कि मुख्यमंत्री केजरीवाल की उपस्थिति में, योजनाबद्ध तरीके से षडयंत्र रच, आप विधायकों ने उनके साथ बदसलूकी की, उनकी पिटाई की।मामला पुलिस तक पहुंचा, दो विधायक गिरफ्तार किए गए।दिल्ली सरकार ने कहा,’मारपीट की कोई घटना नहीं हुई।’दूसरी ओर, सचिवालय में एक मंत्री के साथ सैकड़ों कर्मचारी मारपीट करते हैं, पुलिस में शिकायत होती है।कोई कार्रवाई नहीं होती।
विशाल लोकतांत्रिक भारत की राजधानी की ये घटनाएं हमारी पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था की कार्य पद्धति पर असहज़ सवाल खड़ी कर रही हैं। बड़ा सवाल कि क्या हम कायदे-कानूनों से अलग अराजक व्यवस्था को जन्म दे रहे हैं? क्या प्रशासन और पुलिस सत्ता की गुलाम बन कर रह जाएंगी? क्या न्याय-व्यवस्था ध्वस्त हो सत्ताधारियों के हाथों की कठपुतली बन जाएंगी? और ये कि तब लोकतंत्र का स्वरूप-चरित्र कैसा होगा?
दिल्ली की घटना कोई साधारण राजनीतिक या प्रशासनिक त्रुटियां युक्त घटना नहीं है।इससे उठ रहे तमाम उपर्युक्त सवाल सीधे-सीधे लोकतंत्र के पायों पर प्रहार कर रहे हैं।संतोषपूर्ण निराकरण नहीं हुआ, वह भी तत्काल, तो ये पाये ही धराशायी हो जाएंगे।देश इसे बर्दाश्त नहीं करेगा।
घटना विशेष पर गौर करें। शासकीय व्यवस्था को लेकर आप विचलित हो जाएंगे। सोमवार, 19फरवरी की विलंब रात्रि मुख्यमंत्री केजरीवाल के बुलावे पर मुख्य सचिव मुख्यमंत्री आवास पहुंचते हैं। मुख्यमंत्री आवास पर लगे सीसीटीवी कैमरे में दर्ज टाइमिंग के अनुसार मुख्य सचिव रात्रि लगभग 11.25 बजे मुख्यमंत्री आवास पहुंचे। थोड़ी देर बाद,सीसीटीवी फुटेज के अनुसार रात्रि लगभग 11.31 मिनट पर मुख्य सचिव मुख्यमंत्री आवास से बाहर निकले।पोर्च से टहलते हुए, एक विधायक के साथ वे आराम से बातचीत करते, हाथ में फ़ाइल लिए गेट की ओर बढ़ते दिख रहे हैं। उनकी गाड़ी पीछे-पीछे आती दिख रही है। सुरक्षा कर्मी भी दिख रहे हैं। गेट पर पहुंच, गाड़ी में बैठ मुख्य सचिव वापस चले जाते हैं। अर्थात मुख्यमंत्री आवास में केजरीवाल और विधायकों के साथ मुख्य सचिव करीब 5 मिनट रहे। 1 मिनट उनके अंदर जाने और बाहर गेट तक जाने में लगे होंगे, उसे घटा कर।
दूसरे दिन, मंगलवार 20 फरवरी को मुख्य सचिव आरोप लगाते हैं कि मुख्यमंत्री आवास पर मुख्यमंत्री की मौजूदगी में, विधायकों ने उनके साथ बदसलूकी की, मारपीट की। मुख्यमंत्री और आप पार्टी ने मुख्य सचिव के साथ ऐसी किसी भी घटना से पूरी तरह इनकार किया है।मुख्य सचिव ने पुलिस में विधायकों के खिलाफ मामला दर्ज कराया।ताबड़तोड़ आईएएस अधिकारी एसोसिएशन ने मुख्य सचिव की कथित पिटाई की भर्त्सना करते हुए न केवल असहयोग आंदोलन की घोषणा कर डाली, मुख्यमंत्री से माफी की मांग भी कर डाली।यही नहीं, सचिवालय में सैकड़ों कर्मचारियों ने हंगामा करते हुए केजरीवाल के एक मंत्री की पिटाई भी कर दी।इसके साक्ष्य के रूप में सीसीटीवी फुटेज मौजूद हैं।
तीसरे दिन,21फरवरी बुधवार को दिल्ली पुलिस2विधायकों को गिरफ्तार कर लेती है। एक सरकारी अस्पताल की मेडिकल रिपोर्ट सामने लाई जाती है जिसके अनुसार मुख्य सचिव के साथ मारपीट हुई।लेकिन मंत्री के साथ मारपीट करने वालों के खिलाफ, साक्ष्य मौजूद रहने के बावजूद, पुलिस कार्रवाई नहीं करती।
अब सवाल कि जब मुख्य सचिव लगभग 5 मिनट ही मुख्यमंत्री के साथ अंदर रहे, तब इतनी देर में चर्चा, गरमागरम बहस, बदसलूकी और मारपीट की घटना को अंजाम कैसे दे दिया गया?मुख्यमंत्री आवास से एक विधायक के साथ हाथ में फ़ाइल लेे बाहर निकलते हुए, मुख्य सचिव बिल्कुल सामान्य कैसे दिख रहे थेजैसा कि सीसीटीवी फुटेज दर्शा रहा है? कहीं से भी ऐसा नहीं लग रहा कि उनके साथ किसी प्रकार की मारपीट अथवा बदसलूकी हुई हो! जब मारपीट की घटना हुई तो उसी समय पुलिस को रिपोर्ट क्यों नहीं की?और सबसे अहम सवाल कि लगभग 13 घंटे विलंब के बाद पुलिस में जो शिकायत की उसमें उन्होंने कथित मारपीट का समय रात्रि 12 बजे के बाद बताया है, जबकि सीसीटीवी में वे रात्रि 11.31 बजे ही मुख्यमंत्री आवास से बाहर निकलते दिख रहे हैं? पुलिस कार्रवाई भी संदिग्ध दिख रही है। पुलिस ने मुख्य सचिव की शिकायत पर ताबड़तोड़ एफआईआर दर्ज कर ली, विधायकों के खिलाफ आपराधिक धारायें लगा दीं बगैर मेडिकल जांच के! जबकि ऐसे मामलों में जहाँ चोट पहुंचाने के आरोप हों पुलिस पहले मेडिकल जांच कर रिपोर्ट लेती है जिसके आधार पर आपराधिक धारायें तय कर लगाई जाती हैं। ध्यान रहे, मुख्य सचिव की मेडिकल जांच एफआईआर दर्ज करने ,आपराधिक धारायें लगाने के बाद कराई गई जो तीसरे दिन बुधवार21फरवरी को सतह पर आई।क्या ये पक्षपात पूर्ण, पूर्ववग्रही कार्रवाई नहीं हुई?उत्तर हाँ में ही होगा।
अहम सवाल यह भी है कि सचिवालय में मंत्री के साथ हुई मारपीट की घटना पर, जिसके प्रमाण मौजूद हैं, गवाह मौजूद हैं, पुलिस ने तत्काल, मुख्य सचिव की रिपोर्ट की तरह कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? जबकि मुख्यमंत्री की शिकायत का न तो कोई साक्ष्य है और न ही कोई गवाह!
सर्वाधिक शर्मनाक, आपत्तिजनक हरकत आईएएस अधिकारियों ने बगैर किसी प्रमाण के मुख्य सचिव का साथ दे कर की है। घोर अनुशासनहीनता प्रदर्शित की है इन्होंने।
एलजी तो केंद्र के इशारे पर पहले से ही केजरीवाल की दिल्ली सरकार को अस्थिर करने की कोशिशें करते रहे हैं। अपमानित करते रहे हैं। अड़ंगे लगाते रहे हैं। अब आईएएस अधिकारियों को केजरीवाल के खिलाफ कर केंद्र सरकार घोर असंवैधानिक कृत्य की अपराधी बन गई है।अराजकता केजरीवाल नहीं, केन्द्र सरकार फैला रही है।ये हर दृष्टि से लोकतंत्र और संविधान विरोधी आचरण हैं।
केंद्र सरकार औऱ सत्ताधारी दल ये तथ्य भूल गया प्रतीत हो रहा है कि ऐसे नकारात्मक कदम प्रतिउत्पादक सिद्ध होते हैं।