नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद मुंबई की निचली अदालत द्वारा आरोपी को जमानत नहीं देने पर शीर्ष अदालत ने आश्चर्य जताया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि क्या मजिस्ट्रेट कोर्ट उससे भी ऊपर है? बृहस्पतिवार को न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष अजीबोगरीब स्थिति उत्पन्न हो गई। उस आरोपी के वकील ने बताया कि ट्रायल कोर्ट ने यह कहते हुए उनके मुवक्किल को जमानत देने से इनकार कर दिया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश में जमानत की राशि दर्ज नहीं थी। इस पर पीठ ने कहा, ‘शीर्ष अदालत ने आरोपी को जमानत दी। क्या एडिशनल चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट (एसीएमएम) हमसे ऊपर हैं। क्या एसीएमएम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट की अपीलीय अदालत है? हमने जमानत देने का आदेश दिया और मजिस्ट्रेट कह रहे कि सुप्रीम कोर्ट को नहीं पता कि जमानत कैसे दी जाती है।’
क्या मजिस्ट्रेट कोर्ट हमसे ऊपर है : सुप्रीम कोर्ट
पीठ ने कहा कि एसीएमएम का यह कहना कि शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में जमानत राशि का जिक्र नहीं किया, ये न्यायसंगत नहीं है। पीठ ने कहा कि एसीएमएम को यह समझना चाहिए कि जब सुप्रीम कोर्ट ने किसी आरोपी को जमानत पर छोड़ने का आदेश दिया है और उसमें जमानत राशि का जिक्र नहीं है, ऐसे में ट्रायल कोर्ट जमानत राशि निर्धारित करे।
17 मई को न्यायमूर्ति रोहिंग्टन एफ नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने धोखाधड़ी और आपराधिक षड्यंत्र के एक आरोपी को यह कहते हुए जमानत दी थी कि वह जांच में सहयोग करेगा।