नागपुर: शहर के जनप्रतिनिधियों में दूरदर्शिता का अभाव दिख रहा हैं, साथ ही पुणे,मुम्बई आदि शहरों के जनप्रतिनिधि सा प्रशासन पर प्रभाव भी नहीं की खंब ठोक बोल दिए तो काम हो जायेगा। उक्त शहरों में घाटे में महानगरपालिका शहर बस परिवहन का संचलन कर रही हैं। लेकिन बात नागपुर की आते ही जनप्रतिनिधि सह प्रशासन के हाथ पांव फूल जाते हैं। सत्तापक्ष के सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री और केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री के मध्य आपसी शिष्टाचार से लबरेज आपसी तनातनी की वजह से आपली बस सेवा लड़खड़ा गई हैं।
क्यूंकि शहर में अधिकांश प्रकल्प गडकरी के मनमाफिक शुरू हैं और इन प्रकल्पों के लिए निधि मुख्यमंत्री को राज्य सरकार के खजाने से देने पड़ रहे।इसलिए गडकरी के प्रकल्प अधर में रहे,मुख्यमंत्री अन्य शहर के मनपा की तरह नागपुर मनपा पर मेहरबान नहीं हैं।मुख्यमंत्री नागपुर से ज्यादा नाशिक पर मेहरबान हैं, वहां मासिक जीएसटी का अनुदान नागपुर से डेढ़ गुणा से अधिक हैं।
आज दोपहर और कल शाम की होने वाली बैठक का सकारात्मक परिणाम तब होंगा, जब सभी तीनों बस संचालकों को बकाया राशि का 25% राशि तत्काल दे दिया जाने का निर्णय हो। अन्यथा सिर्फ बातों का बाजार रहा तो 1 अगस्त की शाम से लाल बसों का संचलन बंद हो जायेगा। क्योंकि इन्हें ईंधन उधारी देने वालों ने मना कर दिया,बकाया चुकाने के निर्देश दिया। साथ ही बैंक वालों ने बकाया कुछ क़िस्त चुकाने के निर्देश दिया,वर्ना कार्रवाई की चेतावनी दी हैं।
आपली बस से रोजाना 1.25 से 1.50 लाख आम नागरिक सह विद्यार्थी सफर करते हैं। इसके सफल संचलन के लिए राज्य सरकार के पास ६0 करोड़ नहीं होना सिर्फ और सिर्फ राजनीति से प्रेरित हैं।
बंद ग्रीन बस करना था…..
शहर में दौड़ रही लाल बस में कुछ मार्गो को छोड़ दिया जाए तो बसें ओवरफ्लो दौड़ रही हैं।वहीं ग्रीन बस प्रत्येक फेरी में 2 से 4 यात्रियों को लेकर ही एक छोड़ से दूसरे छोड़ तक आवाजाही कर रही। दोनो के ईंधन में ग्रीन बस का ईंधन काफी महंगा हैं। इससे रोजाना प्रति फेरी बड़ा नुकसान हो रहा,बावजूद इसके 36 लाल बस अचानक बंद करने का आदेश मनपा परिवहन व्यवस्थापक ने दिया जाना समझ से परे हैं। दरअसल ग्रीन बस के संचलन में बाधा लाने का मतलब गडकरी के गुस्से का शिकार होना। क्यूंकि गडकरी पेट्रोल-डीज़ल के पर्यायी ईंधन को प्राथमिकता दे रहे हैं। इसलिए मनपा प्रशासन 25 ग्रीन बस को निरंतर घाटे पर दौड़ा रही।
घाटे में परिवहन व्यवस्था
राज्य सह देश मे जहां जहां मनपा या राज्य सरकार परिवहन व्यवस्था संभाले हुए हैं, अमूमन सभी के सभी घाटे में हैं। महाराष्ट्र के मुम्बई,पुणे सह अन्य शहरों के मनपा द्वारा संचालित परिवहन सेवा घाटे में हैं लेकिन वहाँ के बसों को बंद करने की कोई हिमाकत नहीं करता क्योंकि वहां के जनप्रतिनिधि नागपुर के जनप्रतिनिधि से कहीं ताकतवर,अव्वल और संगठित हैं। इसलिए मुख्यमंत्री का शहर होने के बावजूद नागपुर की मनपा कड़की में हैं और कब तक रहेंगी बताया नहीं जा सकता हैं। घाटे के लिए मनपा प्रशासन ने डिम्ट्स और अपरिपक्व परिवहन व्यवस्थापक की क्लास कभी नहीं ली,इसके बजाय नियमित पीठ थपथपाते रहे,क्योंकि इन दोनों की मनपा में एंट्री जुगाड़ से हुई हैं। डिम्ट्स ने आजतक करार के शर्तो को पूरी नहीं की, इस ओर किसी ने झांका नही,सिर्फ परिवहन व्यवस्थापक के आदेशों का पालन कर दर माह डिम्ट्स का बिल थामकर बिल निकालते रहे। सभापति के आधा दर्जन आदेश पर डिम्ट्स ने आजतक कर्मचारियों का परेड नहीं करवाया।
रोजाना की चोरी रोकना जरूरी
मनपा के आपली बस में चोरी के लिए कंडक्टर महज बदनाम हैं, लेकिन बड़ी चोरी करेंसी चेस्ट पर होने की जानकारी इन्हीं में से एक नए नाम न बताने के शर्त पर दी। इस चोरी की राशि का लेख जोखा सह सबूत रोजाना ट्रांसफर के वक़्त मिटा दिया जाता हैं।क्योंकि रोजाना प्रत्येक शिफ्ट के खत्म होने पर करेंसी चेस्ट पर मनी डाटा ट्रांसफर के वक़्त मनपा परिवहन विभाग का कोई नहीं होता हैं। डिम्ट्स के निगरानी में मनी डाटा ट्रांसफर होता हैं, इस चोरी की राशि के मनपा में दो बड़े लाभार्थी हैं, जो अक्सर उन तक लाभ पहुंचाने वालों के लिए ढाल बने नज़र आ जाएंगे।
प्रोफेशनल ट्रांसपोर्ट मैनेजर-मैनेजमेंट की जरूरत
घाटा से उबरने के लिए मनपा को प्रोफेशनल ट्रांसपोर्ट मैनेजर और उसके अधिनस्त प्रोफेशनल मैनजमेंट का अधिकार ही कामयाब हो सकता है। पुणे सह देश में निजी समूहों के लिए परिवहन व्यवस्था संभालने वाले समूहों का अध्ययन कर प्रोफेशनल अंदाज में शहर बस परिवहन का संचलन करने से टाइमिंग और इनकम पर बड़ा सकारात्मक फर्क नज़र आएंगे। सरकारी परिवहन विभाग के सेवनिवृतों से मनपा परिवहन व्यवस्था सुधारी नहीं जा सकती,जिसके ताजा उदाहरण वर्तमान में देखने को मिल रहा हैं।