नागपुर: दिल्ली से से गल्ली तक आगामी लोकसभा चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हो गई है. लगभग सभी पक्ष ने समय रहते लोकसभा चुनाव की तैयारियां तेज कर दी हां. जहाँ तक महाराष्ट्र का सवाल है यह भी तर्क-वितर्क जारी है कि लोकसभा-विधानसभा चुनाव एक साथ न करवाया जाए. ऐसे में राज्य में अस्तित्व में राजनैतिक पार्टियों को दोहरी मेहनत करनी पड़ रही है. इस क्रम में बसपा को गले लगाने के लिए कांग्रेस सह एनसीपी आतुर नज़र आ रही है.
देश में दलित मतदाताओं को रिझाने के लिए किसी भी राष्ट्रीय पक्ष में राष्ट्रीय स्तर का स्टार दलित नेता नहीं है. इसलिए कुछ दलों को छोड़ अन्य दल बसपा से हाथ मिलाने व उन्हें अपने कोटे से हिस्सा देने सह अपने कार्यक्षेत्र में जगह देने के लिए निमंत्रण दे चुके हैं.
अब बसपा असमंजस में है कि जीवन-भर कांग्रेस को कोसते रही, अब उनसे गले मिलने को जनता-जनार्दन हज़म कर पाएंगी कि नहीं! लोकसभा चुनाव हेतु उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की पहल पर समाजवादी पार्टी से हाथ मिलाने पर समझौता तय हो चुका है. कुल ८४ लोकसभा सीटों में से बसपा-सपा ७० सीटों पर और शेष १४ सीटों को प्रदेश के अन्य क्षेत्रीय दलों को स्थान देकर चुनावी जंग में उतरेंगी.
जहां इस गठबंधन को कांग्रेस सह भाजपा से भिड़ना होगा. ऐसी हालात में कांग्रेस से किस गणित को लेकर हाथ मिलाया जाए इस पर चिंतन-मनन जारी है. साथ ही बसपा का अन्य पर्यायी ऑफर पर भी समीक्षा शुरू है.
बसपा को महाराष्ट्र में दलित नेतृत्व के लिए एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने उनकी एनसीपी से हाथ मिलाने का ऑफर दिया. इसके पीछे की रणनीति यह भी हो सकती है कि महाराष्ट्र में दलित नेतृत्व करने वाली पार्टियां इतने गुटों में विभक्त हो गई कि उठने व मजबूत होने के पूर्व बिखर गई.
बसपा को साथ लेकर एनसीपी भी केंद्र में अपना कद ऊंचा उठाने की कोशिश में है. फ़िलहाल बसपा सम्पूर्ण देश से कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों को दिल्ली बुलाकर उनके-उनके क्षेत्र में राजनैतिक समीकरण सह बसपा की स्थिति पर समीक्षा कर रही है.
दूसरी ओर शुक्रवार को प्रकाश आंबेडकर ने कांग्रेस का समर्थन करते हुए आगामी लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र के कुल ४८ में से धनगर, माली, ओबीसी, छोटी ओबीसी, मुस्लिम, घुमंतु जनजाति समुदाय को २-२ सीट देने की मांग की है.