नागपुर : सत्तापक्ष और विपक्ष की प्रशासन पर कमजोर पड़ती पकड़ के कारण मनपा प्रशासन उदार के बजाय संकुचित होता जा रहा है. जिसका नतीजा शहर विकासकार्यों पर पड़ रहा है. किसी भी दल का नगरसेवक हो, उसे अपने प्रभाग के प्रस्तावों (फाइल) के पीछे- पीछे दौड़ना पड़ रहा है. जबकि केंद्र सरकार की कार्यप्रणाली की तर्ज पर अपने आप समयबद्ध कार्यक्रम के तहत प्रस्ताव आगे बढ़ना और त्रुटि पाए जाने पर तो तुरंत निवारण करना अनिवार्य है.
मनपा की कार्य रीति के तहत सम्बंधित ज़ोन का कनिष्ठ अभियंता प्रस्ताव तैयार करता है. इसलिए नगरसेवकों को पहले प्रस्ताव तैयार करने के लिए इनको खुश रखना पड़ रहा है. फिर उप अभियंता के समक्ष और फिर वार्ड अधिकारी के पास प्रस्ताव उनके मंजूरी के लिए जाती हैं. इनके नखरों को झेलने के बाद स्थाई समिति सभापति, महापौर, उपमहापौर से निधि उपलब्ध कराने का पत्र पाने के बाद सम्बंधित ज़ोन के कार्यकारी अभियंता के पास नगरसेवक या नगरसेवक के प्रतिनिधि को फाइल लेकर पहुँचना पड़ रहा है. सम्बंधित कोष में उपलब्ध निधि को ध्यान में रख उनके प्रस्ताव पर हस्ताक्षर होते हैं. यहाँ से निधि के प्रावधान के लिए सम्बंधित विभाग में प्रस्ताव का पंजीयन किया जाता है.
इसके बाद जनप्रतिनिधि या उनके प्रतिनिधि को पुनः एक बार फिर शुरू से लेकर अंत तक प्रस्ताव सभी सम्बंधित अधिकारियों के समक्ष भेज कर उनके हस्ताक्षर लिए जाते हैं. सब कुछ नियत समय पर होता रहा तो जनप्रतिनिधि या उनके प्रतिनिधि को २ से ३ सप्ताह खुद समय देना पड़ता है. इसलिए जनप्रतिनिधि एकसाथ ३-४ या जरूरतानुसार सभी प्रस्ताव को लेकर अधिकारियों से मुलाकात कर उनके हस्ताक्षर लेते हैं. जिन अधिकारी- जनप्रतिनिधि में आपसी समन्वय रहा तो समय भी बच जाता है वरना काम समय पर नहीं हो पाता.
इस कार्यकाल में स्थाई समिति सभापति के सिवा अन्य पदाधिकारी काफी संकीर्ण सोच के तहत निधि का वितरण कर रहे हैं. कोई सत्तापक्ष नेता का नाम लेकर टालमटोल का रवैय्या अपना रहा तो कोई सत्तापक्ष को दरकिनार कर निधि वितरण में लीन है. जानकारी मिली है कि कुछ पदाधिकारियों ने अब तक अपने प्रभाग के लिए अपने कोटे की लगभग आधी निधि हथिया ली है.
उक्त सभी प्रक्रिया के बाद ३ लाख से नीचे के विकासकार्य कोटेशन तो ३ लाख से ऊपर के कामों का टेंडर निकाला जाना नियम है. कोटेशन के तहत विकासकार्य का भी वर्क आर्डर निकाले जाने के बाद काम शुरू होता है. इसमें भी प्रशासन ने रोड़ा अटका रखा है. लेकिन उक्त मेहनत जनप्रतिनिधि द्वारा करने के बाद मनपा के प्रभारी आयुक्त ने अमूमन सभी प्रस्ताव को मंजूरी देकर टेंडर प्रक्रिया के तहत भेजने से रोक लगा रखी है. इसे शुरू करने के लिए पहले शहर शिवसेना ने और फिर मनपा में विपक्षनेता ने उन्हें चेतावनी तक दी है.
टेंडर प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद जब कार्यादेश जारी होता है तब पहली दफा जनप्रतिनिधि राहत भरी साँस लेता है.
जबकि उक्त सम्पूर्ण प्रक्रिया समयबध्द कार्यक्रम के तहत केंद्र सरकार की कार्यप्रणाली के तहत पारदर्शिता के साथ होते दिखना चाहिए. लेकिन खासकर पिछले एक दशक से जनप्रतिनिधियों को अपने अपने प्रस्ताव को लेकर घूमना,चक्कर लगाना और दौड़ना पड़ता हैं.जनप्रतिनधियों के इस नई शैली को अपनाने से मनपा निचे से लेकर ऊपर तक संकुचित हो गई और जिसमें प्रस्तावों के पीछे दौड़ लगाई,उसका काम समय पर हो रहा,शेष गस्त खा रहे.इसका जीता जगता उदहारण मनपा मुख्यालय के कक्षों में नज़र आ जाएगा. लगभग सभी विभागों में अपने अपने प्रस्ताव लिए जनप्रतिनिधि आय उनके नुमाइंदे टहलते नज़र आएंगे.
लेन-देन के बिना उक्त प्रक्रिया अपूर्ण
सत्तापक्ष और विपक्ष के दो वरिष्ठ नगरसेवक ने अपने अनुभव के बिना पर जानकारी दी कि कोटेशन का पत्र प्राप्ति से लेकर प्रस्ताव तैयार करने से लेकर वित्त विभाग से चेक लेने तथा स्थानीय जनप्रतिनिधि तक ठेकेदार को जेब ढीली करनी पड़ती है. लगभग काम का ३० से ४० प्रतिशत नकद में कमीशन देना पड़ता है. जहाँ तक टेंडर वाले प्रस्तावों का मामला हो, टेंडर अमूमन मूल दर से कम में ही फ़ाइनल होता है. इसके बाद नीचे से ऊपर तक स्थानीय जनप्रतिनिधि और निधि उपलब्ध करवाने वाले में लगभग २५% के आसपास कमीशन कार्यादेश जारी होने के पूर्व ठेकेदार कंपनी को देना पड़ता है.
निम्न दर्जे का काम
लगभग ३०% कमीशन वितरित कर ‘बिलो’ में रेट भरनेवाला काम के साथ न्याय नहीं कर पाता. क्यूंकि सभी को बाँटने के बाद २० से २३% कूद कमाने के चक्कर में मूल प्रस्ताव को मूर्त रूप देने के बजाय खानापूर्ति करने के अलावा कोई चारा नहीं बचता है. अर्थात काम पूर्ण होने के ६ माह बाद पुनः समस्या यथावत हो जाती है. फिर अगले साल इसी काम के लिए पुनः जनप्रतिनधि द्वारा उक्त मेहनत की जाती रही है.
आज की सूरत में मनपा की कड़की काफी बढ़ गई है. यह इतनी बढ़ गई कि अगले माह का वेतन देने के लिए सोचना पड़ रहा है. ऐसे में प्रभारी मनपायुक्त सर पटक रहे हैं कि या तो आयुक्त छुट्टी से लौट आए या फिर राज्य सरकार कोई विशेष मदद करे. अन्यथा सभी के सभी प्रस्ताव अगले वर्ष के लिए ट्रांसफर होने के शिवाय को राह नहीं दिख रहा.