2 अक्टूबर – हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती, उनके अवतरण का दिवस. महात्मा गांधी यानी बापू ने हमें सत्य और अहिंसा की राह ही नहीं दिखाई बल्कि स्वयं भी उस राह पर चलकर दिखाया. तभी दुनिया उन्हें महात्मा के रूप में जानती नहीं, बल्कि मानती भी है. सात वर्ष पूर्व इसी दिन यानी 2 अक्टूबर को हमने भी इसी अवधारणा के साथ कलम को सत्य और अहिंसा का माध्यम बनाया और इस तरह ‘नागपुर टुडे’ का जन्म हुआ. पारंपरिक संचार माध्यमों से अलग नागपुर टुडे, नागपुर मीडिया का डिजिटल चेहरा बनकर उभरा. हमारे साथियों ने इसे मेहनत से सींचा और आपके विश्वास ने इसे पनपने का अवसर दिया. आज वैसे तो नागपुर टुडे को सात वर्ष हो गए लेकिन यूं लगता है जैसे कल ही बात है.
दो युवा – कुमार नीलाभ और अभिषेक सिंह ने नागपुर के डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में कुछ कर गुजरने की चाहत लिए नागपुर टुडे की संकल्पना की और इसे मूर्त रूप दिया. हर सफर की तरह हमारा सफर भी उतार-चढ़ाव भरा रहा. रास्ते में मुश्किलें अलग-अलग रूपों में हमारे सामने आईं, और हमने हर तरह की मुश्किलों का सहजता से सामना किया. मन में एक ही विचार था – कुछ भी स्थायी नहीं है. वक्त बदला, मुश्किलों के बादल छटे, और हम भी वक्त रफ्तार से बढ़ते चले गए.
कहते हैं दुनिया में अस्तित्व बचाए रखने के लिए सभी को अपने-अपने हिस्से की लड़ाई लड़नी पड़ती है. हमने भी अपना संघर्ष किया. संघर्ष अब भी जारी है और जारी रहेगा.
नागपुर टुडे ने हर पहलू से सच को बिना किसी आवरण के अपने पाठकों के समक्ष रखा. विरोधियों ने हमें बिकाऊ, पक्षपाती, द्वेष की भावना से ग्रस्त, ब्लैकमेलर और न जाने कितने नामों से पुकारा. सच तो यह है कि नागपुर टु्डे के अस्तित्व में आने के बाद शहर की जो खबरों ‘सेटिंग’ की बलि चढ़कर, सुबह अखबार की सुर्खियां बनने से पहले ही रात के अंधेरे में गुम हो जाती थीं, अब वो न्यूज तत्काल प्रभाव से नागपुर टुडे पर प्रकाशित हो जाती हैं. ऐसा न जाने कितनी ही खबरों का गला घोंटा गया, जिसे नागपुर टुडे में जगह मिली।
नागपुर टुडे के बारे में दुष्प्रचार फैलाकर कुछ छुटभैया चमचों ने अपने आकाओं को बरगलाने का प्रयास किया, लेकिन सत्य की रोशनी में भला कोई भी झूठ कब तक छिपा रह सकता है.
हर वर्ग के पाठक ने जब नागपुर टुडे की खबरों की पड़ताल की तो जनता की अदालत का फैसला जीत गया।
पाठकों के नाम
आज मुझे ख़ुशी है कि नागपुर शहर में लोग ये मानते हैं कि जो न्यूज़ कोई नहीं डालता वह न्यूज़ नागपुर टुडे डालता है ” बिना डरे ” , यह सब संभव हुआ हमारी निष्पक्ष टीम के कारण।
नागपुर टुडे के बारे में हर तरह की बाते होती है, हमरी टीम मुझे हमेशा बोलती है की हम जवाब क्यों नहीं देते मै बोलता बोलने दो लेकिन आज मै कुछ बिंदुओ पर रौशनी डालना सहता हूँ :
— नागपुर टुडे के आने के पहले सिर्फ प्रिंट मीडिया हुआ करता था. अगर शहर मे कोई बड़ी घटना हुई जैसे कि इनकम टैक्स रेड , क्राइम और अन्य जिसमें रसूखदारों और पैसे वाले लोगों का नाम आता था तब उन लोगो के पास रात के २ बजे तक समय रहता था अपने न्यूज़ की “सेटिंग “ कर के रुकवाने का. नागपुर टुडे आने के बाद यह बंद हो गया क्योंकि घटना के तुरंत बाद नागपुर टुडे मे वह न्यूज़ फ़्लैश हो जाती है और अखबार के मालिक भी पढ़ लेते हैं. सो स्वाभविक है वह न्यूज़ अगले दिन के अखबार में आएगी ही अन्यथा आपको अखबार मालिक को ज़वाब देना हो गा। कहने का अर्थ यह है कि यही लोग जिनकी दुकानदारी बंद हुई है नागपुर टुडे के लिए बुरा बोलते हैं।
— नागपुर टुडे अपने आरंभिक समय से कुछ सालो तक इंग्लिश न्यूज़ पोर्टल था. बाद में हमने हिंदी और मराठी मे न्यूज़ भी देना प्रारंभ किया क्योंकि बहुत सारी न्यूज़ जो इंग्लिश मे होती थी, विशेष तौर पर पोलिटिकल न्यूज़ उसका मतलब गलत निकाल के लोगो के कान मे डाला जाता था। इस वजय से काफी लोगो ने हमसे नाराजगी बना के रखी. जब आमना सामना होता ऐसे लोगों से तब हो बात बात मे पूछते तो हमे हैरानी होती कि जो न्यूज़ हमने डाला नहीं उस न्यूज़ के लिए सवाल क्यों. तब हमने निर्णय लिया कि न्यूज़ को हिंदी और मराठी ( मातृभाषा ) में भी प्रकाशित किया जाए जो हमारे लिए काफी मददगार साबित हुई।
अंत में मैं अपनी टीम खास कर के सुनीता मुदलियार ,राजीव रंजन कुशवाहा , रविकांत कांबले , अनिल जी रोटकर का ख़ास आभारी हूँ जो नागपुर टुडे के इस सफर मे पहले दिन से साथ रहे और हमेशा मार्गदर्शन किया.
आप सभी के सहयोग की अपेक्षा. ..
…. कुमार नीलाभ