Published On : Tue, Nov 5th, 2019

दरअसल विधानसभा में फडणवीस जीता तो भाजपा हारी

नागपुर : भाजपा ने लोकसभा २०१४ में जिस भी तरह किला फ़तेह कर केंद्र में सत्ता हासिल की,उसी जोश में राज्य में अकेले विधानसभा चुनाव लड़ी और १२२ विधायकों को चुन कर लाई.अबकी बार राज्य में सेना के साथ मिलकर चुनाव लड़ी तो भाजपा १०५ पर सिमट गई.आज इस आंकड़े के साथ सरकार बनाने के लिए बेचैन हैं.वजह साफ़ हैं कि इस चुनाव में निवर्तमान मुख्यमंत्री फडणवीस ने अपने मनमर्जी से टिकटों का वितरण किया। नतीजा निष्ठवानों को दरकिनार कर पक्ष के अंदर-बाहर अपनों को चुनावकर लाने के फेर में पक्ष तो हार गई लेकिन फडणवीस जीत गए.

फडणवीस निसंदेह उन राजयोग वाले जनप्रतिनिधि हैं,जिन्हें समय से पहले हर कुछ मिला जो कि उंगलियों पर गिनने लायक हैं.२०१४ में मुख्यमंत्री बनने के बाद मुख्यमंत्री पद के दावेदार तावड़े,खड़से,मुंडे का एक-एक कर मामला सामने लाने में इनके ही पक्ष के लोग फडणवीस पर उंगलियां उठाते रहे.

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क्यूंकि केंद्र का ‘लव-कुश’ का इनको आशीर्वाद प्राप्त था इसलिए वर्ष २०१९ के विधानसभा चुनाव आने के ठीक एक वर्ष पहले राज्य भाजपा के दूसरी पंक्ति के नेतृत्वकर्ता जो भविष्य में मुखयमंत्री पद की दावेदारी कर सकते हैं,उनकी टिकट ही कटवा दी.जिनकी नहीं कटवा पाए,उन्हें पराजित का मुँह दिखवा दिया। जिन दिग्गजों के टिकट कटे अधिकांश ओबीसी समुदाय के थे,इसलिए ओबीसी समुदाय या तो मतदान में हिस्सा नहीं लिया या फिर नोटा का उपयोग का अपना विरोध दर्ज किया।

इतना ही नहीं इस चुनाव में भाजपा के अलावा अन्य पक्षों के अपने कट्टर समर्थकों को विधानसभा पहुँचाने के लिए अपने ही पक्ष के दिग्गज उम्मीदवारों को घर बैठा दिया,यह संगीन आरोप हारे उम्मीदवारों का ही हैं.इसलिए इस विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्यक्ष रूप से सत्ता हासिल करने में हार गई लेकिन मुख्यमंत्री अपने कट्टर विरोधियों को घर बैठाने सह चहेतों को उनके मनसूबे पूर्ण करने में सहयोग करने मामले में जीत गए.क्यूंकि केंद्र के ‘लव-कुश’ फडणवीस के साथ खड़े हैं,इसलिए आज भी सरकार बने न बने पर आज भी दहाड़ मारने का एक भी मौका नहीं छोड़ रहे.

इस चुनाव में भाजपा के मूल युवा को भी उम्मीदवारी देने में तवज्जों नहीं दी गई.बल्कि बाहरी युवा को जाति आधार पर तवज्जों दी गई.इसलिए मूल भाजपाई भी वर्तमान नेतृत्वकर्ता से नाराज़ चल रहे.

उल्लेखनीय यह हैं कि भाजपा को पुनः सत्ता में आने के लिए यह तो सेना के समक्ष घुटने टेंकना पड़ेंगा या फिर अन्य पक्षों की भांति तोड़-फोड़ नित अपनाने के शिवाय कोई चारा नहीं। वहीं दूसरी ओर सेना या एनसीपी की भूमिका इन दिनों संदिग्ध हैं,अर्थात क्या उनकी कथनी व करनी में फर्क हैं ?

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