चिंतित महावितरण ने शुरू की जांच-पड़ताल
कृषिपंपों को बिजली कनेक्शन के नाम पर बड़ी गड़बड़ी की आशंका
(जिला सवांददाता / जयंत निमगडे )
गडचिरोली
यह बात अब महावितरण के समझ से भी बाहर की हो गई है. उसे समझ नहीं आ रहा है कि पिछले 5 सालों में 10 लाख से भी अधिक कृषि पंपों को बिजली का कनेक्शन देने के बावजूद अभी भी 1 लाख 67 हजार कृषि पंपों को बिजली का कनेक्शन देना बाकी कैसे है? महावितरण की खोज ने मामले को सुलझाने की बजाय और उलझा दिया है. खोज में पता चला कि अनेक कृषि पंपों को कनेक्श्न तो दे दिया गया, मगर कागज पर उन्हें प्रलंबित दिखाया गया. आखिर क्यों ? महावितरण ने अब इसी का जवाब खोजने की कवायद शुरू की है. तमाम प्रलंबित आवेदनों की जांच-पड़ताल की जा रही है, ताकि सच का पता लगाया जा सके. यह जांच मुख्यालय के स्तर पर हो रही है.
अकोला जिले में दो अफसर सहित तीन निलंबित
मामला गंभीर है, इसलिए मुख्यालय के माथे पर भी बल पड़े हैं. कहीं इस तरह से झूठे आंकड़े देकर ठेकेदारों से मिलीभगत कर कोई बड़ी गड़बड़ी तो नहीं की जा रही है? कहा जा रहा है कि जांच में दोषी पाए वाले हर व्यक्ति पर कड़ी कार्रवाई होगी, चाहे फिर वह कोई भी हो. वैसे कार्रवाई शुरू भी हो चुकी है. खबर है कि कृषि पंप कनेक्शनों को प्रलंबित रखने और अवैध बिजली कनेक्शन देने के मामले में महावितरण ने अकोला जिले के बार्शीटाकली उपविभाग के सहायक अभियंता, कनिष्ठ अभियंता व एक लिपिक के खिलाफ मामला दर्ज कर उन्हें निलंबित कर दिया है. सूत्रों के अनुसार ऐसी कार्रवाई पूरे राज्य में की जाने वाली है.
437 प्रलंबित आवेदनों की जांच
दरअसल, महावितरण ने पिछले 5 सालों में 10 लाख से भी अधिक कृषि पंपों को बिजली का कनेक्शन दिया है. बावजूद इसके अभी भी 1 लाख 67 हजार कृषि पंपों के कनेक्शन आवेदन प्रलंबित हैं. महावितरण ने इसकी सचाई का पता लगाने के लिए एक़ दल मुख्यालय से भेजा कि क्या सचमुच में इतने आवेदन प्रलंबित हैं. जांच में अनियमितता का खुलासा हुआ. मुख्यालय के दल ने राज्य भर के 437 प्रलंबित आवेदनों की जांच की. उसे 72 ऐसे कनेक्शन मिले, जो चालू थे और जिनके बिल भी निकल रहे थे. 80 कनेक्शनों को अब तक बिल नहीं दिया गया था. 42 कनेक्शन दिए जा चुके थे. नांदेड परिमंडल में जांचे गए 26 प्रलंबित कनेक्शनों में से 15 कनेक्शन दिए जा चुके हैं, जबकि बाकी के 10 कनेक्शन देने का काम अंतिम चरण में है. नागपुर परिमंडल में भी प्रलंबित 32 कनेक्शनों में से 30 दिए जा चुके थे.
कहीं कोई खिचड़ी तो नहीं पक रही
दल की जांच का निष्कर्ष यह निकला कि प्रलंबित कनेक्शनों में से 45 से 50 प्रतिशत कनेक्शन दिए जा चुके हैं. अब इसमें लाख टके का सवाल यही है कि क्या कारण है कि कनेक्शन देने के बावजूद इन्हें प्रलंबित दिखाया जा रहा है? कहीं संबंधित अधिकारी व ठेकेदारों के बीच कोई खिचड़ी तो नहीं पक रही, जिसे मिल-बांटकर खाने की योजना हो? इसी आशंका के चलते महावितरण ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाया है. देखना होगा, इसका हल क्या निकलता है?