काटोल में मुश्किलें बढ़ीं, मैदान मारने के लिए लगा रहे एड़ी-चोटी का जोर
नागपुर। काटोल विधानसभा क्षेत्र में 20 उम्मीदवार मैदान में हैं और सभी मैदान मारने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं. भाजपा, शिवसेना, कांग्रेस और राकांपा के अलावा मनसे, शेकाप, भाकपा, बसपा, आंबेडकराइट पार्टी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, रिपाई (खो) के अलावा अनेक निर्दलीय उम्मीदवार भी इस क्षेत्र में किस्मत आजमा रहे हैं.
कार्यकर्ता, पदाधिकारियों में आपसी कलह
काटोल विधानसभा क्षेत्र में पिछले बीस सालों से राकांपा के अनिल देशमुख का ही राज रहा है, लेकिन युती टूटने से उनकी मुश्किले बढ़ गई हैं. इस बार चुनाव चौरंगी-पंचरंगी हो गया है. राकांपा कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों की आपसी कलह भी अनिल देशमुख को नुकसान पहुंचा सकती है. पिछले चुनाव में यानी 2009 के चुनाव में निर्दलीय चरणसिंह ठाकुर 35,000 वोट लेकर दूसरे नंबर पर रहे थे. लेकिन अब उनके भाजपा में शामिल होने से कांग्रेस और राकांपा के अनेक स्थानीय कार्यकर्ता भी उनके साथ चले गए हैं.
किसान भी नाराज
इस क्षेत्र में देशमुख के प्रति नाराजगी भी कुछ कम नहीं है. किसानों के लिए कुछ नहीं कर पाने को लेकर नाराजगी चरम पर है. युवाओं को रोजगार दिलाने के लिए उन्होंने कुछ खास काम नहीं किया है. पिछली दफा भाजपा-शिवसेना की युती के कारण सेना का उम्मीदवार राकांपा को सीधी टक्कर दे रहा था. कांग्रेस से गठबंधन का लाभ भी उन्हें मिलता ही था. लेकिन बदले हुए हालात में देशमुख की मुश्किलें भी बढ़ गई हैं. मुश्किलें तो सभी पार्टियों के सामने दिखाई दे रही हैं. हर कोई छोटे-बड़े कार्यकर्ताओं को अपनी ओर खींचने के लिए पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं. इस बीच, राकांपा के अनिल देशमुख, शिवसेना के राजू हरणे, भाजपा के आशीष देशमुख तीनों नरखेड़ तालुका के हैं. शेकाप के राहुल देशमुख, कांग्रेस के दिनेश ठाकरे काटोल तहसील के हैं.
भाई को छोड़ बेटे के लिए प्रयास
भाजपा के उम्मीदवार आशीष देशमुख कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष रणजीत देशमुख के पुत्र और अनिल देशमुख के भतीजे हैं. रणजीत देशमुख इस बार भाई के बजाय बेटे के लिए काम कर रहे हैं. दूसरी ओर कांग्रेस के दिनेश ठाकरे, शिवसेना के हरणे और शेकाप के राहुल देशमुख अनिल को नाकों चने चबवाने की स्थिति में हैं. ऐसे में यह तो वक्त ही बताएगा कि 15 अक्तूबर को क्या होगा, जब सभी उम्मीदवारों का भाग्य ईवीएम मशीनों में बंद हो जाएगा.