नागपुर : संकल्पी हिंसा का त्याग करें, संकल्पी हिंसा नहीं करे यह उदबोधन प्रज्ञायोगी आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी गुरूदेव ने भगवान महावीर जन्म कल्याणक महोत्सव पर श्री. धर्मराजश्री तपोभूमि दिगंबर जैन ट्रस्ट और धर्मतीर्थ विकास समिति द्वारा आयोजित ऑनलाइन धर्मसभा में दिया.
गुरुदेव ने कहा शोषण से, अत्याचार से धन हमें नहीं कमाना चाहिए. महावीर के अनुयायी हैं तो मानवता का पाठ पढ़ाये. आचरण से अहिंसा को अपनाए. जो मूक प्राणी हैं उन्हें संकल्पपूर्वक ना मारे. महावीर के अनुयायी अणुव्रती श्रावक हैं. झूठ ना बोले, झूठ बोलने से किसी प्राणी के प्राण ना चले जाएं तो आप महावीर के अनुयायी हैं. जो प्रत्येक नारी को माता समान देखता हैं वह महावीर का अनुयायी हैं. जो संकल्पी हिंसा त्याग करता हैं वह महावीर का अनुयायी हैं. हिंसा और झूठ को त्याग कर देना चाहिए. किसी का दिल ना दुखाये. किसी का धन ना हड़पे.
जितनी तुम्हारे पास आवश्यकता हैं उतना रखकर बचे हुए त्याग कर देना चाहिए. सच्चे जैन होना हैं तो विचारों में अनेकांतवाद हो. जो मेरा सत्य हैं इस प्रकार हट ना पकड़े. विचारों में अनेकांतवाद और शब्दों में स्यादवाद होना चाहिए और जीवन में अपरिग्रहवाद होना चाहिए तो आप महावीर के अनुयायी हो सकते हैं. हर धर्म संस्कृति में तीर्थ मिल जायेंगे लेकिन जैनों के पास तीर्थ के साथ तीर्थंकर हैं. हमारा सौभाग्य हैं हमें तीर्थंकर मिले हैं, जिन्होंने तीरने का मार्ग बताया. महावीर के जन्म के समय धरती तीर्थ बन गई.
महावीर के जन्म के समय हर माह 14 करोड़ रत्नों की वर्षा होती थी ऐसी 15 माह हुई. महावीर स्वामी जन्मवतार से इस धरती पर शांति की लहर छाई. स्वर्ग, नरक में एक मिनट के लिए शांति आ जाती हैं. शांति पाने के लिए अशांति के कारणों को हटाना होगा. राग को जीते, क्रोध को जीते, मान को जीते, माया को जीते, क्रोधो पर विजय पाएं तो महावीर बन सकता हैं. धर्म के लिए खाना, धर्म के लिए पीना, धर्म के लिए विचार करना, धर्म करते ही समाधिमरण करना वह महावीर का सच्चा अनुयायी हैं.