Published On : Mon, Apr 2nd, 2018

कनक पर न सत्तापक्ष और न प्रशासन का जोर – सफेदपोश के छत्रछाया में मनमानी कर उद्देश्यपूर्ति में बाधक बना

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Kanak Resource Management

Representational Pic

नागपुर: शहर को कचरा मुक्त शहर बनाने के उद्देश्य से भले ही घरों से कचरा उठाने मनपा की ओर से कनक कम्पनी की नियुक्ति की गई हो, लेकिन एक ओर जहां बस्तियों की सफाई को लेकर कई पार्षद सदन के भीतर परेशानी बयान कर चुके हैं. वहीं सफाई के लिए कर्मचारी भी त्रस्त होने की जानकारी सूत्रों ने दी है. कर्मचारियों की ओर से बताया गया कि कामगारों को न्यूनतम वेतन के आधार पर महंगाई भत्ता दिया जाना चाहिए था. प्रत्येक कर्मचारी को 4,500 रु. के अनुसार 1,500 कर्मचारियों के लिए यह आंकड़ा 67 लाख के करीब होता है, लेकिन कर्मचारियों की इस त्रासदी की ओर प्रशासन का ध्यान नहीं है. कर्मचारियों को केवल कम्पनी के भरोसे छोड़ा गया है, जबकि नियमों के अनुसार ठेका पूरा कराने की जिम्मेदारी मनपा की भी है. कनक को तैनातगी का उद्देश्य सफल नहीं हो रहा, कनक प्रबंधन वजनदार कचरा, मलबा उठा-उठाकर सिर्फ मनपा खजाने को चुना लगा रहा.

कनक के कर्मचारियों की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार महानगरपालिका न्यूनतम वेजेस एक्ट-1948 और बोनस एक्ट-1965 तथा कांस्ट्रेक्ट लेबर एक्ट-1970 के साथ ही राज्य सरकार के विभिन्न सरकारी आदेशों के अनुसार कामगारों को महंगाई भत्ता और दिवाली में बोनस का आवंटन किया जाना चाहिए था. लेकिन आश्चर्य यह है कि जनवरी 2018 से सुधारित महंगाई भत्ता नहीं दिया गया, जिसका अलग से 20 लाख है. कामगारों को वित्तीय वर्ष 2016-17 में दिवाली बोनस कम दिया गया. 1500 कर्मचारियों को 8,000 रु. बोनस के रूप में यह आंकड़ा 1.20 करोड़ होता है. विशेषत: अप्रैल 2017 में ही लगभग 800 कर्मचारियों ने व्यक्तिगत रूप में सुविधाएं उपलब्ध नहीं होने की शिकायतें की थीं. एक वर्ष बाद फरवरी 2018 में किसी तरह से संज्ञान तो लिया गया, लेकिन दिखावे के लिए कुछ ही कर्मचारियों को सामान वितरित किया गया.

सूत्रों के अनुसार कनक रिसोर्सेस कम्पनी में कार्यरत सफाई कर्मचारियों की ओर से मांगों को लेकर कई बार मनपा में आंदोलन किया गया, जिसके बाद उन्हें नियमों के अनुसार देय राशि आवंटित करने के लिए कम्पनी को निर्देश देने का आश्वासन तो दिया गया, लेकिन कर्मचारियों को उनका अधिकार प्राप्त नहीं हुआ है. माना जाता है कि जब भी मनपा की ओर से कर्मचारियों को भुगतान के लिए कहा जाता है, कम्पनी उनका मनपा पर बकाया होने का हवाला देकर उस समय मामले को टाल देती है. हर समय इसी तरह का दबाव बनाया जाता है, जिससे आर्थिक संकट में फंसे प्रशासन की ओर से भी कम्पनी पर कारगर कार्रवाई नहीं हो पाती है.

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कनक प्रबंधन व्यवसायिक प्रतिष्ठानों के कचरे संकलन में ज्यादा रुचि दिखाता है, क्यूंकि उन्हें वे प्रतिष्ठान भी मासिक भुगतान करते हैं.

उल्लेखनीय यह है कि कनक प्रबंधन का यह भी कहना है कि गर हमें अगले वर्ष ठेका देने से बेदखल किया तो न्यायालय की शरण में जाकर मनपा की पोल खोलेंगे।

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