नागपुर: अयोध्या में जिस जगह राम जन्म भूमि है वहां पहले कभी प्राचीन बौध्द स्तूप हुआ करता था. कालांतर में यहां मंदिर और मस्जिद बन गए. लेकिन इनसे पहले यहां बौध्दों का अधिकार होने का दावा डॉ. बाबासाहब आंबेडकर स्मारक समिति के अध्यक्ष भदंत नागार्जुन सुरई ससाई ने बुधवार को रविभवन में आयोजित पत्रपरिषद के दौरान किया. उन्होंने कहा कि अनेक संशोधकों ने वहां बौद्धों का अस्तित्व होने का दावा किया है. पुरातत्व विभाग द्वारा किए गए उत्खनन में बौध्दकालीन अवशेष मिलने की पुष्टी भी हुई है. लेकिन इन सबूतों को लगातार केंद्र और राज्य सरकार ने उपेक्षित रखा.
इस विवादित स्थल के अधिकार को लेकर 23 मार्च से युक्तिवाद शुरू होनेवाला है. लेकिन इससे पहले बौध्दकालीन अस्तित्वों के सुरई ससाई के दावों से मामले को नया रंग मिल सकता है. उन्होंन बताया कि अयोध्या जिसे साकेत नगरी के नाम से पहचाना जाता था, में भगवान गौतम बुध्द के चरण पड़े हैं. अश्वघोष खुद को साकेतपुत्र मानते थे. यहां सम्राट अशोक ने 200 फीट उंचा स्तंभ तैयार किया था. यही नहीं विशाखा ने भी यहां बुध्द विहार तैयार कराया था. उन्होंने इसी तरह के अन्य ऐतिहासिक और पुरातात्विक सबूतों का हवाला भी दिया. उन्होंने आरोप लगाया कि इन साक्ष्यों को जानबूझकर दबा के रखा गया. इनकी तरफ केंद्र और राज्य सरकार के साथ सुप्रीम कोर्ट भी अनदेखी ना करने की मांग उन्होंने की. इस अवसर पर भाई लोखंडे ने भी अपने विचार व्यक्त किए. पत्रपरिषद के दौरान साथ में प्रा. रणजीत मेश्राम, ई.मो.नारनवरे, प्रा. रत्नाकर मेश्राम, दादाकांत धनविजय, मिलिंद पखाले, विलास पाटिल, नरेश वहाणे आदि प्रमुखता से उपस्थित थे.