नागपुर: मिहान के विकास को लेकर भले ही कितने दावे किये जा रहे हो लेकिन हकीकत यह है की नई कंपनियों के निवेश के मामले में इस वर्ष मिहान पीछे ही रहा है। इसका सबसे बड़ा असर नोटबंदी को माना जा रहा है। डिमॉनीटाइजेशन के फैसले के बाद बड़ी कंपनियों द्वारा नए प्रोजेक्ट पर निवेश को ब्रेक लगा है। अगर मिहान में बीते तीन वर्षो में हुए निवेश पर ध्यान दे तो पहले दो वर्षो में जहाँ बीस कंपनिया आयी वही इस वर्ष महज पांच कंपनियों ने अपना निवेश किया है जो भी छोटी कंपनिया है।
मिहान को संचालित करने वाली एजेंसी एमएडीसी निवेशकों को आकर्षित करने में नाकामियाब ही साबित हुई है। वही दूसरी तरफ कंपनियों के न आने की बड़ी वजह एसेईज़ेड की जमीन का रेट बढ़ना भी है। पहले जहाँ एक एकड़ जमीन की कीमत 60 लाख रूपए थी उसे अब बढाकर 70 लाख प्रति एकड़ कर दिया गया है। जमीन के रेट बढ़ने का प्रमुख कारण बाबा रामदेव को कंपनी पतंजलि को सब्सिडी रेट में जमीन उपलब्ध करना है।
60 लाख प्रति एकड़ कीमत की जमीन को पतंजलि को साढ़े पच्चीस लाख प्रति एकड़ में उपलब्ध कराया गया। इसके पीछे तर्क दिया गया की जो जमीन उपलब्ध कराई गयी है वह अविकसित है। जबकि सरकार के इसी फैसले के बाद रिवर्स क्रॉस सब्सिडी के बोझ को कम करने के लिए नए निवेशकों के लिए जमीन की कीमत 10 लाख प्रति एकड़ से बढ़ा दी गयी। 10 सितंबर 2016 को हुए भूमिपूजन के बाद भी अब तक पतंजलि का प्रोडक्शन चालू नहीं हो पाया है। करार के मुताबिक 18 महीने के भीतर कंपनी को अपना प्रोडक्शन शुरू करना बंधनकारक है।