लगभग 1 हजार फीट के नीचे मिल रहा है पानी
नागपुर– दुनिया भर में भूजल सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाने वाला मीठे पानी का स्रोत हैं. आकड़ो के अनुसार वैश्विक रूप से लगभग 200 करोड़ लोग, अपनी दैनिक आवश्यकताओं और सिंचाई के लिए आज इस पर ही निर्भर हैं. अनुमान के अनुसार दुनिया की 20 फीसदी आबादी भूजल द्वारा सिंचित फसलों पर निर्भर है. तेजी से बढ़ रही आबादी की जरूरतों को पूरा करने और फसलों के उत्पादन में लगातार होती वृद्धि के चलते पहले से ही दबाव झेल रहे इन भंडारों पर दबाव और बढ़ता जा रहा हैं.
नागपुर शहर से सटे कई तहसीलों में भूजल स्तर काफी कम हो चुका है. कलमेश्वर, नरखेड़ काटोल समेत आसपास के कई गांवों में लगातार बोरिंग करने के कारण भूजल काफी कम हो गया है. इसके साथ ‘ नागपुर टूडे ‘ की टीम ने कलमेश्वर के पास स्थित और ऊप्परवाही गांवो का दौरा किया. जहांपर ज्यादातर परिसरों में लगभग 1000 फिट की बोर करने पर ही पानी मिलता है, हालांकि गर्मी के मौसम वो पानी भी नहीं मिल पाता है. कुछ किसानों से बात की गई तो उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि 2 लाख रुपए कम से कम एक बोर करने के लिए खर्च आता है, लेकिन सरकार की तरफ से जो सब्सिडी दी जाती है, उसमे काफी परेशानी होने के कारण हमें अपने पैसों से बोर करना पड़ता है. लिंगा गांव के आसपास ज्यादातर किसानों ने अपने खेतों में बोरिंग की है. लेकिन इसके बाद भी इन्हें खेतो के लिए उतना पानी नही मिल पा रहा है, जितने की फसलों को जरूरत है. इसलिए इन्हें मॉनसून की बारिश पर निर्भर रहना पड़ता है. यहां ज्यादातर किसान संतरे की खेती करते है, जिसके कारण इन्हें पानी की ज्यादा जरूरत होती हैं. कई जगहों पर भूजल का दोहन होने के कारण इसका स्तर अब परेशान करनेवाला बन गया है.
नागपुर का भूजल सर्वेक्षण विभाग हैं उदासिन
कुछ वर्ष पहले नागपुर के भूजल सर्वेक्षण विभाग की ओर से कुओ से बोर को रिचार्ज करने की मुहिम छेड़ी गई थीं. जिसके अंतर्गत कुएं से बोरिंग में एक पाइप जोड़ा गया था, मॉनसून में जब कुएं में पानी भरता था, तब इसका पानी पाइप के द्वारा बोर में उतरता था, इससे भूजल का स्तर बढ़ने की उम्मीद थी. लेकिन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की उदासीनता ने इस योजना पर पानी फेर दिया. कलमेश्वर से सटे गांवों में किसी भी जगह पर यह रिचार्जिंग की व्यवस्था नहीं दिखाई दी.
हम जिस तेजी और अनियंत्रित तरीके से भूजल का दोहन कर रहे हैं, उसके कारण यह भूजल स्रोत तेजी से खत्म होते जा रहे हैं. वहीं दूसरी ओर बारिश और नदियों द्वारा इन भूजल स्रोतों का पुनःभरण (रिचार्ज) नहीं हो पा रहा है. नासा द्वारा उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि दुनिया के 37 प्रमुख भूजल स्रोतों में से 13 का जलस्तर खतरे के निशान तक पहुंच चुका है. वहां भूजल के रिचार्ज होने की दर उसके दोहन की गति से काफी कम है. भूजल के गिरते स्तर की समस्या उन क्षेत्रों में और गंभीर होती जा रही है, जहां गहन कृषि की जाती है. साथ ही इसके चलते नदियों पर भी कृषि क्षेत्र के लिए जल आपूर्ति का दबाव दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है .आंकलन दर्शाता है कि 2050 तक दुनिया भर की नदियों, झीलों और वेटलैंड्स पर इसके व्यापक और गंभीर प्रभाव स्पष्ट दिखने लगेंगे .
इसको समझने के लिए शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने उस दर को मापने का प्रयास किया हैं जिसपर मौजूदा भूजल, नदियों और झीलों में मिल रहा हैं. जिसे धारा का प्रवाह कहते हैं. साथ ही उन्होंने इस बात का भी अध्ययन किया हैं कि खेती के लिए किये गए भूजल के दोहन ने इस प्रक्रिया को कैसे प्रभावित किया हैं. शोधकर्ताओं ने पाया कि लगभग 20 फीसदी नदी घाटियां पहले ही अपनी चरम सीमा तक पहुंच चुकी हैं, जहां जमीन से भूजल का दोहन, धारा की तुलना में कहीं अधिक हो गया हैं.
वैज्ञानिकों ने भविष्य में नदीधारा का प्रवाह कैसे कम हो जायेगा, इसका अनुमान लगाने के लिए जलवायु परिवर्तन के मॉडल का भी उपयोग किया हैं. जिसमें उन्होंने पाया कि दुनिया के 42 से 79 फीसदी भूजल के स्रोत 2050 तक खत्म हो जायेंगे. जिसके चलते वो अपने पारिस्थितिक तंत्र को बनाए रखने में असमर्थ हो जायेंगे. जर्मनी के फ्रीबर्ग विश्वविद्यालय में पर्यावरण और जल विज्ञान प्रणालियों के अध्यक्ष इंगे डी ग्राफ ने समझाया कि भविष्य में इसके क्या विनाशकारी प्रभाव हो सकते हैं.