Published On : Fri, Jul 8th, 2022
By Nagpur Today Nagpur News

केला में निकल रहे काली मिर्च जैसे बीज

– बेलिशॉप स्थित प्राचीन शिवमन्दिर में लगे है पेड़
– बीजे देख सभी को हुआ आश्चर्य

नागपुर। केला वर्तमान मे सदा बहार फल हो गया है। इसे गरीबों का फल भी कहा जाता है। पूजा में भी केले को ही भगवान को प्रमुखता से चढ़ाया जाता है। अब मौसम केला का चल रहा है। छिलका उतारिए और स्वाद लीजिए। लेकिन यहां जिक्र ऐसे केला का हो रहा है जिसका छिलका उतारते ही आप चौंक पड़ेंगे। पपीते की तरह इसमें काली मिर्च जैसे बीज दिखाई दे रहे हैं। इनका स्वाद फालसे जैसा है। केले की यह बाग बेलिशॉप रेलवे कॉलोनी स्थित प्राचीन श्री शिवमन्दिर में लगी है। पेड़ में लगे गुच्छे का कोई भी केला तोड़ कर काटिए उसमें काली मिर्च जैसे एक दो नहीं तो एक केले में करीब 25 से 30 बीज मिलेंगे। हमें तो आज तक यहीं पता था की केले में बीज नही होते।

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आज मंदिर परिसर में लगे केले के पेड़ो में लगे केले पेड़ पर ही पके होने से वहा के सदस्य डॉ. प्रवीण डबली, पी. सत्याराव, प्रकाशराव (गुंडुराव) ने उसे तोड़ कर खाना चाहा तो जैसे ही उसे खाने के लिए छीला गया तो उसमे कालीमिर्च जैसे बीज दिखाई दिए।

डॉ. प्रवीण डबली ने बताया की केले को पूरी तरह से खोला गया व उसमे के बीज बाहर निकालकर देखे गए तो वह काली मिर्च की तरह दिखाई दे रहे थे। जिसे देख सभी आश्चर्य में पड़ गए। किसी ने भी इसे पहले ऐसा केला नही देखा था जिसमे बीज हो। किसी ने भी उसे नही खाया। कई क्षेत्र के बुजुर्गो से इस संबंध में पूछा गया तो उन्होंने भी ऐसा केला पहली बार देखने की बात कही। केले की लंबाई मात्र 2 इंच है।

डॉ. प्रवीण डबली ने आगे बताया की आयुर्वेद के डॉक्टर समिधा चेंडके से ia संबंध में जानना चाहा तो उन्होंने भी इस तरह किसी भी केले का उल्लेख आयुर्वेद में नही होने की बात कही। जिससे जिज्ञासा और बढ़ गई।

डबली ने बताया की कोरोना काल में मंदिर परिसर में बगीचा बनाया गया तब किसी दक्षिण भारतीय परिवार ने यह पेड़ यह लाकर यह लगाया था। जिससे आज उसके कई पेड़ बन गए है। वैसे केले के पेड़ एक साल में फल देते है। लेकिन इन पेड़ो में दो ढाई साल होने पर भी फल नहीं आए तो ये पेड़ में पेड़ होने की बात कही गई लेकिन तीन माह पहले उसमे फल दिखाई दिए। आज वो फल पक गए। तभी इसका पता चला।

एक पेड़ में एक बार ही फल आते हैं। इसी बीच उसकी पुत्ती से बगल में 6 माह में स्वत: दूसरे पेड़ तैयार होने लगते हैं। इसलिए पहला और बाद में तैयार हो रहे कुछ पौधों को खत्म कर दिया जाता है। ताकि एक पेड़ को पनपने का भरपूर अवसर मिले। इस अनोखी प्रजाति के पेड़ पर पीढ़ी दर पीढ़ी आने वाले केले ऐसे ही तैयार होंगे।

कृषि विज्ञान क्षेत्र के एक जानकार बताते हैं कि केले में बीज जेनेटिक (आनुवांशिकता) समस्या का नतीजा है। दक्षिण भारत में ऐसी प्रजाति के पेड़ हैं। दूसरा कारण टिश्यू कल्चर का पौधा भी हो सकता है। जिसमें अच्छी प्रजाति का जंगली प्रजाति से संपर्क कराने से तकनीकी खराबी आयी। इससे उसमे केला जैसा स्वाद नहीं होगा। बिहार के हजारी केला में भूरे रंग के टमाटर जैसे बीज होते हैं। उत्तर प्रदेश में हरी छाल के केला को अच्छा माना जाता है।

केले का दवाई में उपयोग

एक बुजुर्ग ने इस केले के दवाई उपयोग के संबंध में बताया। उन्होंने कहा की इस केले को ऐसे लोगो को खिलाया जाता है जिन्हे संतान नहीं होती। पुरानें जानकार लोग ऐसा बताते है। वैसे इसका कोई प्रमाण नहीं है। इसमें कितना तथ्य है यह तो संबंधित वैज्ञानिक ही बता सकते है।

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