मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को बलात्कार और तेजाब हमला पीड़ित महिलाओं को मुआवजा देने में हो रही देरी के लिए कड़ी फटकार लगाई है। हाई कोर्ट ने कहा कि इन मामलों में लाल फीताशाही और प्रक्रिया संबंधी तकनीकियों को कम करना चाहिए। न्यायमूर्ति आर एम बोर्डे और न्यायमूर्ति आर जी केतकर की खंडपीड ने उस वक्त नाराजगी जतायी जब पता चला कि वर्ष 2012 में तेजाब हमले की शिकार एक लड़की को अबतक मुआवजा नहीं दिया गया है। उसे चिकित्सकीय खर्च के लिये राज्य सरकार की मनोधैर्य योजना के तहत अधिकृत राशि भी नहीं मिली है।
बता दें कि मनोधैर्य योजना के तहत बलात्कार और तेजाब हमला पीड़ित महिलाओं को 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाता है। इसके अलावा उनका चिकित्सकीय खर्च भी सरकार वहन करती है। योजना में पीड़ित महिलाओं की काउंसलिंग और व्यायवसायिक प्रशिक्षण उपलब्ध कराने का भी प्रावधान है।
सरकारी वकील नेहा भिडे ने पीठ को बताया कि याचिकाकर्ता के चिकित्सकीय खर्च के लिये चार लाख रुपये की राशि रखी गयी थी। भिडे ने कहा, ‘हालांकि यह राशि उसे नहीं दी जा सकी, क्योंकि पीडति अस्पताल का बिल जमा नहीं कर पायी थी। उसने (पीडति) बाद में बिल जमा कराया। अब हम पीडति का बयान दर्ज करने के लिये उसका पता नहीं लगा पा रहे हैं। ‘
सरकारी वकील की दलील पर नाराज अदालत ने यह जानना चाहा कि आखिर पीड़ित महिला का बयान दर्ज कराने की आवश्यकता क्यों है, जबकि वह पहले ही सभी बिल जमा करा चुकी है। अदालत ने कहा कि सरकार को यह रकम सीधे संबंधित अस्पताल को भेज देनी चाहिए। पीठ ने यह भी कहा कि योजना के तहत पीड़ित महिला को चिकित्सकीय खर्च के अलावा मुआवजा मिलना चाहिए।
कड़ी नाराजगी जाहिर करते हुए न्यायमूर्ति बोर्डे ने कहा, ‘क्या सरकार को नौकरशाही और प्रक्रिया संबंधी तकनीकीयों को कम नहीं करना चाहिए और पीड़िता की मदद करनी चाहिए? आप (सरकार) बेहद संवेदनहीन हैं। इस खास मामले में याचिकाकर्ता को शारीरिक यातना तो झेलनी ही पडी़ और अब मुआवजे के लिये वह तीन साल से अदालत के चक्कर काट रही है।’