नागपुर : इस बार के महानगर पालिका चुनाव में मतदाताओं को रिझाने के लिए टेक्नोलॉजी यानी आधुनिक तकनीक का सहारा हर उम्मीदवार ले रहा है।चुनाव के मौके पर तकनीकी व्यवसाय करने वालों की खूब चाँदी कट रही है। उम्मीदवारों को इलेक्ट्रॉनिक मतदाता सूची उपलब्ध कराने से लेकर सोशल मीडिया के जरिए उनके प्रचार के काम से कई कंपनियां लाभान्वित हो रही हैं। राज्य चुनाव आयोग ने मनपा उमीदवारों के चुनावी खर्च की सीमा तय की है, लेकिन उस खर्च में तकनीक के जरिए किए जा रहे प्रचार को शामिल नहीं किया गया है, जिससे मतदाताओं में तकनीक के जरिए प्रचार का रुझान बढ़ रहा है, क्योंकि तकनीक के जरिए चुनाव प्रचार यानी हींग लगे न फिटकरी और रंग चोखा!
मतदाता सूची के लिए ‘एप्प’
कई कंपनियां हैं, जो उम्मीदवारों को इलेक्ट्रॉनिक मतदाता सूची उपलब्ध करा रही हैं। इलेक्ट्रॉनिक मतदाता सूची यानी मोबाइल पर मतदाता सूची।क्योंकि अब खुद चुनाव आयोग ने ही मतदाता सूची के लिए अपना ‘एप्प’ जारी कर दिया है, इसलिए इलेक्ट्रॉनिक मतदाता सूची की मांग में जरा कमी आ गयी है। मांग में कमी होने की वजह से इनके कीमत में भी भारी गिरावट दर्ज की गयी है। पहले जहाँ एक वार्ड की इलेक्ट्रॉनिक मतदाता सूची के लिए उम्मीदवार को साठ हजार रूपए तक खर्च करने पड़ते थे, वही सूची अब पंद्रह से बीस हजार रूपए में उपलब्ध हो जा रही है, लेकिन फिर भी इसके खरीददार अब हैं ही नहीं, क्योंकि उम्मीदवार सरकारी एप्प ‘ट्रू वोटर’ के जरिए लगभग मुफ्त में ही मतदाता सूची डाउनलोड कर ले रहे हैं।
वाट्सएप और फेसबुक के जरिए प्रचार
कुछ ऐसी भी कंपनियां हैं जो उम्मीदवार से एकमुश्त फीस लेकर उनके क्षेत्र के मतदाताओं के बीच में उनके काम और नाम का खूब प्रचार करती है। ये प्रचार वाट्सएप और फेसबुक के जरिए होता है। इसमें कंपनी उम्मीदवार का एक प्रोफाइल बनाकर मतदाताओं को रिझाने का प्रयास करती है। सूत्र बताते हैं कि प्रभावी ढंग से प्रचार करने वाली कंपनियों की फीस प्रति उम्मीदवार कई लाख रूपए तक होती है।
ऑडियो-वीडियो के जरिए
ऑडियो यानी लाउडस्पीकर के जरिए प्रचार का तरीका तो काफी पुराना है। जगह-जगह लाउडस्पीकर या डीजे सिस्टम घुमाकर उम्मीदवार का प्रचार किया जाता है। ऑडियो प्रचार में उम्मीदवार अथवा उसकी पार्टी के पक्ष में गाने, भाषण, संवाद आदि रोचक ढंग से मतदाताओं को सुनाए जाते हैं ताकि उनका मत पाया जा सके। इधर तकनीकी विकास के चलते ऑडियो के साथ वीडियो प्रचार भी चुनाव का हिस्सा हो गया है। चौपहिया गाड़ियों में बड़ी-बड़ी एलसीडी टीवी लगाकर लोकलुभावन तरीके से उम्मीदवार का प्रचार किया जाता है।
अख़बारों में विज्ञापन
हालाँकि प्रचार का यह तरीका जरा पुराना ही है लेकिन अत्याधुनिक तकनीक की वजह से अख़बारों में विज्ञापन अब अधिक आकर्षक ढंग से प्रस्तुत किया जाता है।
चुनाव आयोग की भूमिका
उम्मीदवारों के प्रचार के इन वैकल्पिक तरीकों पर चुनाव आयोग की निगरानी अभी नहीं के बराबर है। चुनाव आयोग ने चुनाव खर्च के लिए जो नियम बनाए हैं वह बैनर, पोस्टर, पैम्फलेट, बिल्ले और अख़बारों के विज्ञापन और लाउडस्पीकर के जरिए प्रचार पर ही लागू होते हैं। सोशल मीडिया के जरिए प्रचार फ़िलहाल चुनाव आयोग की नियमावली में शामिल नहीं है। चुनाव आयोग सोशल मीडिया के जरिए प्रचार को एक रणनीतिक योजना की ही तरह ही देखता है और इसीलिए रणनीति पर किए जाने वाले खर्च को प्रचार खर्च के तौर पर नहीं देखता है। बहरहाल चुनाव आयोग की चाहिए जो भी भूमिका हो यह तय है कि उम्मीदवारों को तकनीक के सहारे लुभाना रास आ रहा है, यह बहसतलब विषय हो सकता है कि मतदाताओं को उम्मीदवारों का तकनीक के जरिए उनके जीवन में घुसपैठ पसंद आ रहा है या नहीं?