- आर्थिक संकट को बताया रोड़ा
- सालाना 100 करोड़ का नुकसान झेलने को लाचार
- नागपुर टुडे की पड़ताल में असल कारण उजागर
नागपुर: नागपुर महानगर पालिका द्वारा संचालित सिटी बस सेवा सालाना 100 करोड़ का नुकसान झेलने को अभिशप्त है और इस वजह से पर्यावरण के अनुकूल ग्रीन बसों को सड़क पर दौड़ाने में असमर्थ नजर आ रही है। मुहावरों की भाषा में कहें तो मनपा ग्रीन बस चलाने के नाम पर लाल-पीली हो रही है। विगत नौ साल से मनपा शहर बस सेवाएं संचालित कर रही है, हालाँकि नागरिक शहर बस सेवा से बुरी तरह हलाकान रहे लेकिन आर्थिक नुकसान मनपा को इधर एक साल से ही उठाना पड़ रहा है।
सर्वविदित है कि नागपुर महानगर पालिका में विकास योजनाओं के नाम पर अग्रिम कतार के राजनेताओं के पसंदीदा कंपनियों में विविध कामों का बंदरबांट होता आया है। मनपा पदाधिकारियों और प्रशासनिक अधिकारियों के समक्ष उन परियोजनाओं को लागू करने के अलावा कोई चारा नहीं रहता है। ग्रीन बस का संचालन भी इसी तरह की एक परियोजना है। ग्रीन बसें इथेनॉल पर चलती हैं और फ़िलहाल इस ईधन के बहुत महंगे होने से पूरी परियोजना ही मनपा के लिए सिरदर्द साबित हो रही है।
स्वीडिश कंपनी स्कानिया कमर्शियल व्हीकल्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने संतरानगरी में मनपा और केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के साथ मिलकर अगस्त 2014 में इथेनॉल से चलने वाली एक बस शुरू की और फिर मार्च 2015 में 55 ग्रीन बसें चलाने की पेशकश के साथ मनपा के दरवाजे पर खड़ी हो गई। न तो मनपा के पदाधिकारियों के इस बारे में कुछ मालूम था और न ही अधिकारियों को किसी तरह के के शासकीय निर्देश इस सम्बन्ध में प्राप्त हुए थे।
स्कानिया कंपनी की 55 ग्रीन बसें चलाने की घोषणा के छह महीने बाद महानगर पालिका ने केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के पास 55 ग्रीन बसें खरीदने और चलाने के लिए निधि की मांग की, लेकिन केंद्र ने मनपा की मांग को यह कहकर नकार दिया कि ग्रीन बसें चलाने की अनुमति उसे ही दी जा सकती है, जो पांच साल से 250 इस तरह की बसें चलाने का अनुभवी हो। मजेदार बात यह है कि केंद्र की पांच साल और ढाई सौ बसों वाली शर्त को पूरा करने में भारत की कोई कंपनी सक्षम नहीं थी, फिर भी गत अगस्त महीने में स्कानिया ने ही स्वतः बस चलाने वाली कंपनी का चयन कर लिया।
इसी महीने की 6 तारीख यानी 6 दिसम्बर 2016 को भव्य कार्यक्रम के जरिये ग्रीन बस सेवा को नागपुर के नागरिकों के लिए शुरू कर दिया दिया गया। इतना ही नहीं मनपा ने ग्रीन बस चलाने वाली कंपनी को छूट दी कि वह चाहे तो किसी और से भी इस सेवा को पूरा करा सकता है, जबकि ‘लाल’ सिटी बसें संचालित करने वाली कंपनी वंश निमय इंफ्राप्रोजेक्टस लिमिटेड को इस तरह की किसी भी छूट से वंचित रखा गया।
महानगर पालिका यहीं नहीं रुकी, ग्रीन बसें चलाने वाली कंपनी को यह भी छूट दी गई कि वह सिर्फ बस चलाए टिकट काटने का झंझट उनका काम नहीं, यही नहीं यह भी पाया गया कि जिस कंपनी को इथेनॉल आपूर्ति का जिम्मा दिया गया, उसने कई लाख रूपए के इथेनॉल की आपूर्ति सिर्फ एक बस के लिए ही कर दी।
सुनने में आया है कि अब नागपुर शहर की सड़कों पर बायो-गैस से चलने वाली बसें दौड़ेंगी। स्कानिया कंपनी को तो भांडेवाड़ी में बायो-गैस के उत्पादन के लिए परमिट भी जारी कर दिया गया है। क्या आपके लिए यह अनुमान लगा पाना मुमकिन नहीं कि बायो-गैस से चलने वाली किसकी बसें दौड़ेगी नागपुर की सड़कों पर?