नई दिल्ली: कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच चल रहे कावेरी नदी जल विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को फैसला सुना दिया। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अमिताव रॉय और ए.एम. खानविलकर की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि नदी पर कोई राज्य का दावा नहीं कर सकता है। कोर्ट ने तमिलनाडु के हिस्से का पानी घटाकर 177.25 टीएमसी कर दिया है। इससे कर्नाटक को 14.75 टीएमसी पानी का फायदा मिला है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कर दिया कि कावेरी के जल में कर्नाटक का हिस्सा इस तथ्य को देखकर बढ़ाया जा रहा है कि बीते दिनों में बेंगलुरु में पीने के पानी की मांग बढ़ी है। साथ ही इंडस्ट्रियल इलाकों में भी पानी की खपत में इजाफा देखा गया है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला कर्नाटक के पक्ष में आने पर राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने खुशी जताई है। फैसले से पहले कर्नाटक में सुरक्षा-व्यवस्था चाक-चौबंद कर दी गई थी। कर्नाटक की राजधानी बंगलूरू और मैसूर में करीब 10 हजार जवानों को तैनात किया गया था। तमिलनाडु में भी सुरक्षा की व्यवस्था बेहद कड़ी है।
आपको बता दें कि कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल ने साल 2007 के फरवरी महीने में कावेरी ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती दी थी। कर्नाटक चाहता है कि तमिलनाडु के लिए नदी के जल का आवंटन कम किया जाए तो वहीं तमिलनाडु भी कर्नाटक के लिए ऐसा ही चाहता है। ट्रिब्यूनल ने विवाद का निपटारा करते हुए नदी के जल का आवंटन किया था। उनके अनुसार तमिलनाडु को 192 फीट टीएमसी पानी, कर्नाटक को 270 टीएमसी फीट पानी, केरल को 30 टीएमसी और पुडुचेरी को 7 टीएमसी फीट पानी आवंटित किया जाने की बात कही थी।
सभी राज्यों का कहना था कि उन्हें उनकी जरूरत के अनुसार कम पानी मिलता है। अंतिम सुनवाई में कर्नाटक ने कहा था कि 1894 और 1924 में मद्रास प्रेसीडेंसी के साथ जल समझौता किया गया था। 1956 में बने नए राज्य की स्थापना के बाद इस करार के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। कर्नाटक के मुताबिक तमिलनाडु को सिर्फ 132 फीट टीएमसी पानी आवंटित किया जाना चाहिए। कर्नाटक की इस दलील पर तमिलनाडु को एतराज है और दोनों राज्यों के बीच ठनी हुई थी।