नागपुर. नगर विकास विभाग से प्रधान सचिव द्वारा टाऊन प्लानर के रूप में अमरावती कार्यालय में कार्यरत वीरेन्द्र डाफे को अकोला के कार्यालय में स्थानांतरित करने के आदेश जारी किए गए. 19 जुलाई 2023 को जारी इस आदेश को महाराष्ट्र प्रशासनिक न्यायाधिकरण के समक्ष अपील दायर की गई. जिस पर सुनवाई के बाद मैट की ओर से 2 फरवरी 2024 को याचिका खारिज कर दी. जिसे चुनौती देते हुए अब हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई. याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि स्थानांतरण का आदेश बिना किसी कारण के बरकरार नहीं रखा जा सकता है.
मुख्यमंत्री द्वारा तबादले की स्वीकृति को ध्यान में रखते हुए, ऐसा कोई कारण नहीं कि तबादले का आदेश बरकरार रखा जाए. दोनों पक्षों की लंबी दलिलों के बाद हाई कोर्ट ने न केवल मैट के 2 फरवरी 2024 के आदेश को रद्द कर दिया, बल्की नगर विकास विभाग के प्रधान सचिव की ओर से 19 जुलाई 2023 को जारी तबादले के आदेश को भी खारिज कर दिया. याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता ने न्यायाधिकरण के समक्ष स्थानांतरण पर प्रश्न उठाया है, जो उसकी अंतिम पोस्टिंग के एक वर्ष और ग्यारह महीने की अवधि के भीतर किया गया था, वह भी स्थानीय विधायक की सिफारिशों पर किया गया.
याचिकाकर्ता के अनुसार यह स्थानांतरण रिट याचिका संख्या 8987/2018 में दर्ज डिवीजन बेंच के निर्देशों के विपरीत है. जिसका निर्णय 12 दिसंबर, 2018 को बालासाहेब विट्ठलराव तिडके बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य के मामले में मुख्य पीठ ने लिया था. स्थानीय विधायक के कहने पर याचिकाकर्ता के स्थानांतरण की सिफारिश का अनुमान राज्य सरकार को भेजे गए मुद्दों से लगाया जा सकता है.
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि अमरावती में पहले से ही पद रिक्त है. जिसमें तुषार नंद नाम के किसी अन्य व्यक्ति को समायोजित किया गया था. चूंकि पहले से ही रिक्त पद मौजूद हैं, इसलिए याचिकाकर्ता का स्थानांतरण किए बिना उक्त रिक्त पद पर प्रतिवादी संजय नाकोड को समायोजित किया जा सकता था. जबकि याचिकाकर्ता ने कार्यकाल भी पूरा नहीं किया है.
प्रतिवादियों ने दुर्भावनापूर्ण आधार पर याचिकाकर्ता का तबादला किया है. दोनों पक्षों की दलिलों के बाद कोर्ट ने कहा कि इसमें तबादले के कारण के बारे में एक भी शब्द नहीं कहा गया है. इसके अलावा तबादलों को लेकर कानून और नियम तय है. फिर भी कोई भी कारण नहीं बताया गया है कि उक्त अधिकारों का प्रयोग किसी विशेष तरीके से क्यों किया जा रहा है. विशेष रूप से तब जब 2005 के अधिनियम की धारा 4(4)(ii) में लिखित रूप में कारणों को दर्ज करना अनिवार्य है.