Published On : Fri, Apr 29th, 2022
By Nagpur Today Nagpur News

बिजली की मांगों में वृद्धि के बावजूद कोयला आयात में कटौती

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– लोडशेडिंग में बढ़ोतरी से मच सकता है हाहाकार

नागपुर -वर्ष 2020-2021 में देश में तापीय बिजली परियोजनाओं की संख्या 202 तक पहुंच गई है। उक्त समय अवधि में 2 लाख 9 हजार 990.50 मेगावाट बिजली का उत्पादन हुआ है। इस समय अवधि के दौरान कोयले के उपयोग से 232.5595 मिलियन टन राख का उत्पादन हुआ है। जिसमें से 214.9125 मिलियन टन यानी 92.41% राख का उपयोग हुआ है।

सरकार गुमराह कर रही है कि कोयले का पर्याप्त भंडार

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भारतीय रेलवे ने इस साल अब तक 3.09 करोड़ टन कोयले की ढुलाई की है,जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 2.40 करोड़ टन था.हालांकि, अपनी साख बचाने के लिए केंद्र सरकार डींगे हाँकते है कि हमारे पास पर्याप्‍त कोयला भंडार है.

कोयला की कमी से उपजा बिजली संकट

हालांकि देशभर के बिजली संयंत्र कोयले के कमी से जूझ रहे हैं. भारत में करीब 70 फीसदी बिजली का उत्पादन कोयले से चलने वाले संयंत्रों से ही होता है. देशभर के आधे बिजली संयंत्रों में कोयले का भंडार (Coal Stock) न के बराबर बचा है. इन संयंत्रों को ज्यादातर कोयले की आपूर्ति रेलवे की माल गाड़ियों (Goods Trains) से की जाती है. अगर भारतीय रेलवे (Indian Railways) के आंकड़ों पर गौर करें तो अलग ही कहानी सामने आती है. इस महीने रेलवे ने करीब 62 लाख टन कोयले की ढुलाई की है, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 57.7 लाख टन ही था.

रेलवे ने इस साल अब तक 3.09 करोड़ टन कोयले की ढुलाई की है, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 2.40 करोड़ टन था.रेलवे फिलहाल हर दिन 15.9 लाख टन कोयले की ढुलाई कर रहा है, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 14 लाख टन था.रेलवे के आंकड़ों के मुताबिक,रोजाना कोयले की ढुलाई में करीब 13 फीसदी बढ़ोतरी हुई है. फिर भी पावर प्लांट्स में कोयले की कमी के पीछे बड़ी वजह पावर कंपनियों की प्लानिंग में कमी हो सकती है. एक तरफ देश में अर्थव्यवस्था के विकास के साथ बिजली की मांग में बढ़ोतरी हुई है,लेकिन पावर कंपनियों ने इसे ध्यान में रखकर अपना स्‍टॉक नहीं बढ़ाया.वहीं, विदेशी कोयले की कीमत बढ़ने से आयात में भी कमी आई

बिजली कंपनियों को करना होगा कोयला भंडार

कोयला, बिजली और रेल मंत्रालय की लिंकेज कमेटी ने कोयले की कमी के संकट को देखते हुए पिछले महीने बैठक भी की थी. इसमें तय किया गया कि बिजली कंपनियों को दूरी आधारित भंडार बनाना होगा यानि जो प्लांट कोलफील्‍ड से जितनी दूर है, उन्हें उतना ज्‍यादा स्टॉक रखना होगा ताकि संकट के समय पहले से तैयार भंडार का इस्तेमाल किया जा सके. इसके अलावा कंपनियों को मौसम के हिसाब से भी स्टॉक बनाना होगा. मानसून के दौरान कोयले की खुदाई से जुड़ी समस्याओं को देखते हुए पहले से स्टॉक बढ़ाना होगा. साथ ही ज्यादा मांग वाले सीजन के लिहाज से भी स्टॉक तैयार करना होगा.

रेलवे को तैयारियों में अभी लग सकता है कुछ समय

भारतीय रेलवे ने इस बैठक के दौरान वादा किया था कि माल गाड़ियों या रैक की कमी नहीं होने दी जाएगी. रेलवे अपने कोल लोडिंग-अनलोडिंग टाइम को भी कम करेगा. साथ ही रेलवे कोयले की ढुलाई की अपनी क्षमता भी बढ़ाना पड़ेगा. हालांकि, इन सारी तैयारियों में अधिक समय लगेगा और तब तक कोशिश की जा रही है कि बिजली कंपनियों की जरूरतों को पूरा किया जा सके. हालांकि, इसका नुकसान दूरदराज के दूसरे छोटे-छोटे उद्योगों को उठाना पड़ सकता है. ईंट, ग्लास और अल्युमिनियम जैसे कई उद्योगों को कोयले की कमी के संकट से जूझना पड़ सकता है.

CEA की व्यथा मात्र 8 दिनों का कोयला स्टाक

केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) के मुताबिक 24 अक्टूबर 2021 को कोयले पर आधारित 101 बिजली संयंत्रों के पास 8 दिनों से भी कम का कोयला भंडार बच गया था. इन संयंत्रों की कुल बिजली उत्पादन क्षमता तकरीबन 121 मेगावाट (GW) है. 27 मेगावाट क्षमता वाले 22 प्लांटों के पास तो एक दिन से भी कम की ज़रूरत का कोयला स्टॉक शेष था. कोयले की किल्लत झेल रहे इन 101 प्लांटों में से वैसे संयंत्र भी शामिल थे जो कोयला खदानों के नजदीक स्थित हैं. कोयला खदानों के क़रीब के ऐसे ही दो प्लांटों के पास 5 दिन से भी कम की ज़रूरत का कोयला मौजूद था, जबकि तीन अन्य संयंत्रों के पास तो तीन दिन से भी कम का भंडार बचा था. कायदे के मुताबिक कोयला खदानों के नज़दीक स्थित इन संयंत्रों के पास 15 दिनों की ज़रूरत पूरा करने लायक कोयले का भंडार मौजूद होना जरूरी है. दूसरी ओर कोयला खदानों से दूर स्थित संयंत्रों में से 37 के पास 7 दिन की ज़रूरत से भी कम, जबकि 49 प्लांटों के पास 4 दिन से भी कम का भंडार बच गया था. नियमों के मुताबिक कोयला खदानों से दूर स्थित इन संयंत्रों के पास हर वक़्त 20-25 दिन की ज़रूरत का कोयला मौजूद होना चाहिए. कोयला खदानों से 1500 किमी से भी ज्यादा दूर स्थित प्लांटों में से 2 के पास 9 दिन से भी कम का कोयला भंडार मौजूद था. ऐसे ही 8 अन्य प्लांटों के पास तो 5 दिनों की ज़रूरत पूरी करने लायक कोयला भी नहीं बचा था. प्रचलित नियमों के अनुसार इन संयंत्रों के पास 30 दिनों की ज़रूरत पूरी करने वाला भंडार होना आवश्यक है. इन तमाम आंकड़ों से साफ़ है कि कोयला आधारित बिजली उत्पादन का 70 फ़ीसदी हिस्सा मुहैया कराने वाले संयंत्र 24 अक्टूबर 2021 को कोयले की किल्लत से जुड़ी गंभीर या बेहद गंभीर हालात का सामना कर रहे थे.

आंकड़ों से साफ़ है कि कोयला आधारित बिजली उत्पादन का 70 फ़ीसदी हिस्सा मुहैया कराने वाले संयंत्र 24 अक्टूबर 2021 को कोयले की किल्लत से जुड़ी गंभीर या बेहद गंभीर हालात का सामना कर रहे थे.

उल्लेखनीय यह है कि कोयले की किल्लत झेल रहे इन संयंत्रों ने इस संकट का ठीकरा उम्मीद से कम कोयले की आपूर्ति पर फोड़ा. शायद इसके पीछे की वजह मानसून के आने में देरी रही. तय समय के बाद आए मानसून के चलते कोयले के उत्पादन और ढुलाई पर असर पड़ा. बिजली संयंत्रों में कोयले का भंडार कम होने की एक अन्य वजह घरेलू कोयले की ऊंची मांग भी रही है. दरअसल सरकार की ‘आत्मनिर्भर’ नीति के चलते घरेलू कोयले की मांग बढ़ गई है. घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कारोबार होने वाले कोयले की खरीद-बिक्री की कीमतों का अंतर काफी ज्यादा हो गया. लिहाज़ा आमतौर पर आयातित कोयले पर निर्भर रहने वाले पावर प्लांटों से भी घरेलू कोयले की मांग में बढ़ोतरी दर्ज की जाने लगी. महामारी और लॉकडाउन के प्रभावों से बाहर आ रही अर्थव्यवस्था के दोबारा पटरी पर आने और उसके चलते उपभोक्ता मांग में हुई बढ़ोतरी भी कोयले के भंडार को लेकर पैदा हुई इस संकट के पीछे ज़िम्मेदार रहे. जुलाई 2021 में बिजली की अधिकतम मांग (peak demand) अपने अब तक के उच्चतम स्तर 200,570 मेगावाट (MW) तक पहुंच गई. कोविड से पहले के उच्चतम स्तर (182,533 MW) से ये तकरीबन 9 फीसदी ज्यादा है. बिजली की मांग में कोविड-19 की पहली लहर के बाद से लगातार बढ़ोतरी देखी जाती रही है. कोविड की दूसरी लहर के दौरान थोड़े समय के लिए इस मांग में गिरावट आई थी लेकिन उसके बाद दोबारा बिजली की मांग में तेज उछाल दर्ज की गई है.

महामारी और लॉकडाउन के प्रभावों से बाहर आ रही अर्थव्यवस्था के दोबारा पटरी पर आने और उसके चलते उपभोक्ता मांग में हुई बढ़ोतरी भी कोयले के भंडार को लेकर पैदा हुई इस संकट के पीछे ज़िम्मेदार रहे.

बिजली घरों में कोयला आपूर्ति से जुड़े संकट के पीछे एक और बड़ा ढांचागत मसला है. दरअसल पिछले कुछ समय से नवीकरणीय ऊर्जा (RE), खासतौर से सौर ऊर्जा को लेकर नासमझी भरा उत्साह देखने को मिल रहा है. कई लोगों को लगता है कि बिजली की लगातार बदलती और बढ़ती मांगों को पूरा करने में ये रामबाण साबित होगा. बहरहाल आंकड़े बताते हैं कि नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश के लिए दी जा रही तमाम सहूलियतों के बावजूद भारत में बिजली उत्पादन में कोयले से पैदा होने वाली बिजली का हिस्सा 1990 के बाद से कमोबेश 70 फीसदी के स्तर पर बरकरार है. नवीकरणीय ऊर्जा में हुई अभूतपूर्व बढ़ोतरी ने कोयले से बिजली की उत्पादन क्षमता में इज़ाफ़े की रफ़्तार को धीमा तो किया है पर उसे रोकने में अब भी कामयाबी नहीं पाई है. 2012 से 2021 के बीच नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता में बढ़ोतरी की दर औसतन 17 प्रतिशत रही है. दूसरी ओर इसी कालखंड में कोयले से बिजली उत्पादन क्षमता में इज़ाफ़े की दर करीब 7 फीसदी रही है. इसी अवधि में कोयले से बिजली उत्पादन में करीब 7 फीसदी जबकि नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन में तकरीबन 13 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. निश्चित रूप से नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों से पैदा होने वाली बिजली ने कोयला-आधारित बिजली उत्पादन संयंत्रों की जगह लेना शुरू कर दिया है. हालांकि नवीकरणीय संसाधनों से बिजली के उत्पादन और बिजली की अधिकतम मांग (peak demand) के बीच अब भी बहुत बड़ा अंतर है. नवीकरणीय संसाधनों से पैदा होने वाली बिजली की क्षमता को बढ़ाने के लिए अब भी ज़रूरत के मुताबिक काम नहीं हो सका है. लिहाज़ा कोयला से बिजली पैदा करने वाले संयंत्रों की उत्पादन क्षमता से जुड़ी ज़रूरत में अब भी कमी नहीं लाई जा सकी है. विस्तृत अध्ययनों के मुताबिक दुनिया के दूसरे क्षेत्रों में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र ने कोयले से बिजली निर्माण की क्षमता में जिस दर से गिरावट लाने में कामयाबी पाई है उसके मुकाबले भारत के नवीकरणीय ऊर्जा सेक्टर की सफलता का स्तर काफी नीचे है.

विस्तृत अध्ययनों के मुताबिक दुनिया के दूसरे क्षेत्रों में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र ने कोयले से बिजली निर्माण की क्षमता में जिस दर से गिरावट लाने में कामयाबी पाई है उसके मुकाबले भारत के नवीकरणीय ऊर्जा सेक्टर की सफलता का स्तर काफी नीचे है.

मौजूदा रणनीति के तहत कुल उत्पादित बिजली में सौर ऊर्जा को बहुत बड़ा हिस्सा देने पर ज़ोर दिया जा रहा है. इसमें कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के स्तर को हल्का करने की लागत कार्बन की सामाजिक लागत (SCC) से जुड़े अनुमानों से या तो ज्यादा या बराबर पाई गई है. अगर भारत तीव्र गति से शहरीकरण के रास्ते पर चल पड़े तो कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर और प्रभाव को हल्का करने की लागत में कमी आ सकती है. अगर भारत में राष्ट्रीय मांग का मिज़ाज दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों की मांग के समान हो जाए तो ये लागत कम हो सकती है. इसकी वजह ये है कि दिल्ली और मुंबई की मांग का स्वभाव हर लिहाज़ से नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन से संबंधित तमाम मिश्रणों और लक्ष्यों से बेहतर तरीके से मेल खाता है. ऐसे माहौल में नवीकरणीय ऊर्जा के ज़रिए पारंपरिक तौर पर ऊर्जा निर्माण से जुड़ी क्षमताओं में नए इज़ाफ़ों में कटौती लाई जा सकती है. साथ ही पारंपरिक ऊर्जा क्षमता के मौजूदा स्तर में कटौती की ज़रूरत भी काफ़ी कम रह जाएगी. हालांकि भविष्य की ऐसी किसी तस्वीर में बिजली की अधिकतम मांग (peak demand) के अपेक्षाकृत ऊंचे स्तर पर रहने का ही अनुमान है. इससे कोयले के ज़रिए बिजली पैदा करने की नई क्षमताओं में बढ़ोतरी की आवश्यकता बनी रहेगी. ये अजीब विडंबना है कि अगर भारत में बिजली की मांग में बढ़ोतरी की दर नीची रहती है तो भले ही कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन का स्तर नीचा हो लेकिन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को हल्का करने से जुड़ी लागत ज्यादा रहती है.

ये अजीब विडंबना है कि अगर भारत में बिजली की मांग में बढ़ोतरी की दर नीची रहती है तो भले ही कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन का स्तर नीचा हो लेकिन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को हल्का करने से जुड़ी लागत ज्यादा रहती है. इसकी वजह ये है कि इन हालातों में नवीकरणीय ऊर्जा के स्तर में ज़्यादा कटौती होती है.

इसकी वजह ये है कि इन हालातों में नवीकरणीय ऊर्जा के स्तर में ज़्यादा कटौती होती है. बहरहाल मांग के इस निचले स्तर पर भी बिजली की अधिकतम मांग को को पूरा करने के लिए कोयले और गैस से बिजली उत्पादन की नई क्षमताओं की ज़रूरत रहती है. इसकी वजह ये है कि पवन और सौर ऊर्जा स्रोतों की क्षमता निम्न-स्तर वाली होती है. निश्चित रूप से आज नीति-निर्माताओं और लोगों में वैचारिक स्तर पर सौर ऊर्जा को वरीयता दिए जाने की प्रवृत्ति है.

देश ने बिजली की मांग में वृद्धि के बावजूद घरेलू कोयला उत्पादन में पर्याप्त बढ़ोतरी दर्ज की है और कोयला आयात में कटौती करने का घिनौना षड्यंत्र खेला जा रहा है। अप्रैल 2021 से जनवरी 2022 के दौरान गैर कोकिंग कोयले के सभी ग्रेड के आयात में पिछले वित्त वर्ष की अवधि की तुलना में कमी आई। पिछले वित्त वर्ष में 163 मिलियन मीट्रिक टन गैर कोकिंग कोयले का आयात किया गया था जो इस अवधि में घटकर लगभग 125 मिलियन टन रह गया। इस श्रेणी के कोयले के आयात में यह 23 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।

इस वर्ष जनवरी तक घरेलू कोयला आधारित विद्युत उत्पादन पिछली अवधि की तुलना में आठ खरब यूनिट से अधिक हुआ है। पिछले वित्त वर्ष में इसी अवधि में सात खरब यूनिट से अधिक विद्युत उत्पादन हुआ था।

विद्युत मंत्रालय ने ये भी कहा कि अप्रैल 2021 से जनवरी 2022 की अवधि में आयातित कोयला आधारित विद्युत उत्पादन 55 प्रतिशत घटकर 35 अरब यूनिट से अधिक रहा। वित्त वर्ष 2020 की इसी अवधि के दौरान आयाति‍त कोयला आधारित विद्युत उत्पादन 78 अरब यूनिट था।

इस वर्ष जनवरी तक ऊर्जा क्षेत्र में प्रयोग में लाए जाने वाले गैर कोकिंग कोयले का आयात साठ दशमलव आठ सात प्रतिशत गिरकर 22 दशमलव सात तीन मिलियन टन रहा। पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि के दौरान 58 दशमलव शून्य नौ मिलियन टन का आयात हुआ था।

भारत विश्व में बिजली की खपत की दृष्टि से तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है। देश में विद्युत मांग हर वर्ष चार दशमलव सात प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। कोयले के आयात में कमी करने के लिए विद्युत मंत्रालय ने आत्मनिर्भर भारत के अंतर्गत कई बड़े सुधारों की पहल की है। मंत्रालय ने खान और खनिज (संशोधन) अधिनियम, 2021 के अन्तर्गत खनिज रियायत नियम, 1960 में संशोधन करते हुए कोयला खान के पट्टाधारी को संयंत्र की जरूरतों को पूरा करने के पश्चात कोयला या लिग्नाइट के कुल उत्पादन के 50 प्रतिशत तक की मात्रा के विक्रय करने की अनुमति दी है।

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