Published On : Fri, Sep 29th, 2017

फर्जी पावर ऑफ़ अटर्नी बनाकर चचेरे भाइयों ने ही बेच दिया आधा घर

Advertisement


नागपुर
: फर्जी पॉवर ऑफ़ अटर्नी बनाकर वास्तविक मालिकों की एनओसी और एनआईटी के एनओसी के बिना ही घर खरीदने और बेचने का मामला सामने आया है. इस मामले में हनुमान नगर के प्लाट नम्बर 108 में रहनेवाले पीड़ित पिछले तीन वर्षों से अजनी पुलिस स्टेशन के चक्कर लगा रहे हैं. लेकिन पुलिस ने इस पूरे मामले में कोई भी कार्रवाई नहीं की. जिसके बाद कुछ दिन पहले पुलिस विभाग द्वारा गठित एसआईटी में पीड़ित यह मामला लेकर गए थे. लेकिन एसआईटी द्वारा स्वयं इसकी जांच न करते हुए मामले को फिर से जांच के लिए अजनी पुलिस स्टेशन के पास ही भेज दिया गया. पीड़ित सुहास सुधाकर राव कुलकर्णी ने इस पूरे मामले पर प्रकाश डालते हुए बताया कि 1950 में उनके दादा आर.आर.कुलकर्णी ने यह जमींन एनआईटी द्वारा लीज पर ली थी. जिसका रजिस्ट्रेशन सिटी सर्वे और एनआईटी में आज भी मौजूद है. आर.आर.कुलकर्णी के 1978 में हुए निधन के बाद उन्होंने अपनी प्रॉपर्टी 7 पोतों के नाम से की थी. जिनके नाम सचिन कुलकर्णी, सतीश कुलकर्णी, सुनील कुलकर्णी, सुहास कुलकर्णी, संजय कुलकर्णी, विनय कुलकर्णी और विजय कुलकर्णी थे. लेकिन इनमें से कुछ व्यसक थे तो कुछ नाबालिक थे. जिसके कारण आर.आर. कुलकर्णी के पुत्रों मधुकर कुलकर्णी, शांताराम कुलकर्णी, सुधाकर कुलकर्णी और कमलाकर कुलकर्णी को बच्चे व्यसक होने तक इस प्रॉपर्टी की देखरेख करनी थी. सभी पोतों के व्यस्क होने के बाद उनके नाम से प्रॉपर्टी का पंजीयन एनआईटी और सिटी सर्वे में कर दिया गया था.

इस पूरे मामले में पीड़ित सुहास कुलकर्णी ने बताया कि 1993 में उनके दादा आर.आर. कुलकर्णी के चारों पुत्रों ने यह सोचा कि इस संपत्ति के मामले को लेकर कुछ विवाद न हो इसके लिए 10 रुपए के स्टैम्प पेपर पर आपसी समझौता पत्र कर लिया गया था. लेकिन नियमानुसार वह न तो नोटराईस था और न ही उसका रजिस्ट्रेशन किया गया था. साथ ही उस पर आर.आर. कुलकर्णी के असली हिस्सेदार के हस्ताक्षर भी नहीं थे. जिसके कारण वे इसे मानने के लिए क़ानूनी तौर पर बाध्य नहीं हैं. इस घर में सुहास कुलकर्णी ही अपने परिवार के साथ रहते हैं बाकी सभी इनके भाई अलग अलग जगहों पर रहते हैं.

सुहास ने अपने साथ हुए धोखाधड़ी के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि 2001 में उनके चाचा के लड़कों ने सुनील कुलकर्णी, सतीश कुलकर्णी और विनय कुलकर्णी जो कि मनोरुग्ण है, इन लोगों ने मकान का कुछ हिस्सा मदन अग्रवाल, उसके भाई संजय अग्रवाल और दीपक अग्रवाल को किराए पर दिया था. 2008 में फर्जी पावर ऑफ़ अटर्नी इनके भाई सुनील कुलकर्णी, सतीश कुलकर्णी और विनय कुलकर्णी ने आधी जगह मिलीभगत कर अग्रवाल परिवार को साढ़े आठ लाख रुपए में बेच दिया और उसका रजिस्ट्रेशन भी कर दिया. लेकिन इसकी जानकारी पीड़ित के साथ ही किसी भी वास्तविक हिस्सेदार को नहीं दी. जिसके बाद पीड़ित सुहास और उनके परिजनों को अग्रवाल परिवार की ओर से रोजाना गालीगलौज और विवाद किया जा रहा है. सुहास का कहना है कि जब उनके हस्ताक्षर ही पावर ऑफ़ अटर्नी में नहीं है तो उनके भाईयों ने इसे बेचा कैसे. जबकि उन्होंने एनआईटी से भी अनुमति नहीं ली. क्योंकि एनआईटी से उनके दादा ने यह जमींन लीज पर ली थी. एनआईटी ही इस जमीन की मूल मालिक है. उन्होंने बताया कि एनआईटी और सिटी सर्वे के अनुसार अभी भी यह किसी एक के हिस्से में नहीं है यह संयुक्त मालिकी की जगह है.

Gold Rate
Thursday 13 March 2025
Gold 24 KT 87,100 /-
Gold 22 KT 81,000 /-
Silver / Kg 99,100 /-
Platinum 44,000 /-
Recommended rate for Nagpur sarafa Making charges minimum 13% and above

पीड़ित सुहास ने अपने पास मौजूद दस्तावेजों के आधार पर बताया कि किसी भी दूसरे वास्तविक हिस्सेदारों के हस्ताक्षर नहीं लिए गए. पीड़ित का कहना है कि पिछले तीन सालों से वे अजनी पुलिस स्टेशन के चक्कर लगा रहे हैं. लेकिन उन्होंने अब तक इस मामले में कोई भी ठोस कार्रवाई नहीं की है. उनका यह कहना है कि जब वे एसआईटी के पास सभी कागजात लेकर गए तो उन्होंने लोकल पुलिस स्टेशन के पास मामला जांच के लिए भेजा है. यानी फिर मामला अजनी पुलिस स्टेशन में आया है. जबकि इस पूरे मामले में जांच और कार्रवाई के अधिकार एसआईटी के पास ही है.

Advertisement
Advertisement