Published On : Mon, Mar 7th, 2022
By Nagpur Today Nagpur News

अवैध उत्खनन और क्रेशर माफियाओं की करतूतों से सरकार को करोड़ों की चपत

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खनिज संपदा और राजस्व विभाग की असमर्थतता का नतीजा भू-गर्भ का बिगड़ता संतुलन

नागपुर: जिले में अवैध खनन और क्रेशर माफियाओं की सक्रियता की वजह से पर्यावरण तथा भू-गर्भ संतुलन बिगडने का खतरा मंडरा रहा है? तत्संबंध में जिले के खनिज संपदा विभाग एवं राजस्व विभाग की गैर जिम्मेदाराना कार्यप्रणालियों की वजह से सरकार को करोड़ों की चपत लग रही है। वहीं अवैध खनन और क्रेशर माफियाओं के बुलंद हौसले अब प्रकृति पर हावी होने लगे हैं, नागपुर जिले के आसपास के जंगल गायब हो रहे हैं और कई पहाड़ समतल किए जा चुके हैं, सावनेर तहसील के नांदा उमरी परिसर में पर्यावरण संतुलन बिगडने की वजह से बीते छह साल से वहां सोन चिरैया,राष्ट्रीय पक्षी मोर और कोयल नहीं दिखाई दे रही है. कोराडी कामठी रोड पर स्थित सुरादेवी परिसर से रक्षा संपदा विभाग की पहाड़ियां गायब होने की वजह से वहां के तापमान को भी खनन प्रभावित कर रहा है.

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अवैध उत्खनन से नागपुर तहसील के आस-पास की पहाड़ियां लगातार गायब होती जा रही हैं. पत्थर मिट्टी और मुरुम का अवैध उत्खनन इतनी मात्रा में होता है कि इन माफियाओं ने पहाडों को ही समतल बना दिया है. अवैध खनन से शहर के आसपास का वन क्षेत्र तेजी से घट रहे है. इसका सीधा असर पर्यावरण पर दिखने लगा है, वातावरण में तेजी से बदलाव आ रहा है. साल दर साल न्यूनतम अधिकतम तापमान में बढ़ोतरी हो रही है. समय रहते इन खनन पर रोक नहीं लगी तो भविष्य में इसके बुरे प्रभाव देखने को मिल सकते हैं. वन विभाग और खनन विभाग इन माफियाओं पर लगातार कार्रवाई की मात्रा औपचारिकता पूरी करता है, लेकिन इसके बावजूद भी यह माफिया इतने हावी हैं, इनका खनन करना निरंतर जारी है.

अवैध खनन के चलते पहाड़ियां हुई गायब नागपुर जिले के उमरेड तहसील के पांचगांव से पिछले 10 सालों में करोड़ों रुपए की खनिज संपदा की चोरी हूई है तथा नागपुर तहसील के पिटेशुर परिसर की पहाड़ियां गायब होने से भी सरकार को करोड़ों रुपए की चपत लग चुकी है। वहां पर्यावरण संतुलन बिगडने की वजह से राष्ट्रीय पक्षी मोर, सोनचिरैया,कोयल, और अन्य वन्य जीव गायब हो चुके है? उसी तरह कुही,मौदा,कलमेश्वर,काटोल ,नरखेड, पारसिवनी,रामटेक,पवनी,देवलापार,मनसर, वाडी,हिंगणां,ऐसे क्षेत्र हैं, जहां से राष्ट्रीय पक्षी मोर, सोन चिरैया और कई प्रकार के जीव-जंतु रहते थे. लेकिन इस इलाके में माफिया भी लगातार सक्रिय हैं. यहां पर पत्थरों का अवैध खनन होने से पहाड़ियां गायब होती जा रही हैं. मिट्टी के साथ ही पेड़ पूरी तरह सफाचट हो गए हैं. इसका नतीजा है कि वन विभाग और खनिज विभाग में तालमेल न होने कारण इस अवैध उत्खनन पर रोक नहीं लग पा रही है.पहाड़ियां निगल रहा अवैध खनन जिले की एक दर्जन पहाड़ियों को माफियाओं ने गायब किया है।

नागपुर जिले के आस-पास वन क्षेत्र में एक दर्जन से अधिक पहाड़ियां हैं, जिसमें सरकार की तरफ से 2005 तक सरकारी लीज की परमिशन की थी. बाद मे लीज न होने के कारण माफिया अवैध उत्खनन कर रहे हैं. इस अवैध उत्खनन के चलते पहाड़ियां गायब होती जा रही हैं, नागपुर जिले के माहुरझरी और भरतवाडा में सफेद और काले पत्थर की पहाड़ियां थी, जहां पर यह माफिया खनन करते हैं.कामठी तहसील अंतर्गत खापापाटण, की पहाड़ियां गायब होने की कगार पर है। सावनेर तहसील के नांदा उमरी परिसर में करीबन 20 से अधिक काली गिट्टी क्रेसर लगे हैं, क्योंकि नांदा उमरी क्षेत्र में काली गिट्टी की पहाड़ियां हैं. यही वजह है कि यहां पर सरकार की परमिशन से पहाड़ों से पत्थर की खुदाई करते हैं फिर क्रेसरों के माध्यम से गिट्टी बनाई जाती है, ये गिट्टी नागपुर के विविध विभागों में निर्माण कार्यों के लिए यहां से सप्लाई की जाती है.रॉयल्टी के नाम पर दूसरी जगह से करते हैं अवैध खनन सरकार ने काली गिट्टी क्रेशर को संचालित करने के लिए परमिशन दी है, लेकिन खनन माफिया दूसरी जगह से सरकार के लिए इसका फायदा उठाकर अवैध उत्खनन करते हैं यही वजह है कि लगातार यहां पर सामाजिक वनीकरण क्षेत्र घटता जा रहा है, पहाड़ियां गायब होती जा रही हैं वन विभाग की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं करता है। मतलब वन विभाग अधिकारी के मुताबिक खनन माफियाओं के खिलाफ कोई कार्रवाईयां नही की जाती हैं,

अधिकारियों की घटिया सोच का नतीजा भु-गर्भ संतुलन का बिगड़ना
तत्संबंध में सिविल सेवा सर्विस पारंगत कलेक्टर दंडाधिकारियों का कर्त्तव्य है कि खनन माफियाओं पर तत्काल कार्रवाई करने। परंतु कलेक्टर के अधिनस्थ राजस्व दंडाधिकारियों और तहसीलदार टालमटोल रवैया अपनाए जा रहे है। अधिकारी आपस में कहते हैं कि आज नहीं तो कल पदोन्नति ताबादला के बाद यहां से बोरिया बिस्तर बांधकर अन्यत्र चले जाना है?”भांड में गयी जनता और अपना काम बनता” की कहावतें चरितार्थ हो रहीं हैं।

नतीजतन अवैध खनन की वजह से पृथ्वी तथा पर्यावरण का संतुलन विगडता ही जा रहा है।जिसका सीधा असर मानव जीवन पर पड रहा है। इतना ही नहीं प्रकृति दैवीय खनिजों का नुक़सान भी हो रहा है।इस संबंध में पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि वन अधिकार अधिनियम का अनुपालन सुनिश्चित किये बगैर माइनिंग इकोलॉजी के सह विकास का कोइ मतलब नहीं है।इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि किसी भी निर्माण या खनन गतिविधियों का एक दूरगामी और गहरा असर पर्यावरण और परिस्थितियों पर पड़ता है।इस संबंध में आल इंडिया सोसल आर्गनायजेशन के अध्यक्ष श्री टेकचंद सनोडिया शास्त्री ने राज्य और केंद्र सरकार से मांग की है कि तत्काल कार्रवाई की गई तो पृथ्वी और प्रर्यावरण संतुलन बनाया जा सकता है।अन्यथा भू-गर्भ संतुलन बिगडने से भयावह महामारी और भूकंप की तीव्रता बढ़ सकती है। वैज्ञानिकों के अनुसार काले पत्थरों की चट्टानों की तह में प्रचुर मात्रा में गंधक पाया जाता है।

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