Published On : Sat, Jul 22nd, 2017

दो साल बाद भी नहीं शुरू हुआ डागा अस्पताल में ‘गर्भजल परिक्षण केंद्र’


नागपुर: 
राज्य सरकार की ओर से लोगों के स्वास्थ को लेकर बाते और घोषणाएं तो काफी होती हैं, लेकिन इन घोषणाओं में से कितनों पर अमल किया जाता है इसके गंभीरता से मूल्यांकन की ओर ध्यान नहीं दिया जाता. कोई भी सरकार इसके लिए अपनी जवाबदेही नहीं समझती और ना ही इससे सम्बंधित अधिकारी अपनी जिम्मेदारी निभाने को तैयार होते हैं. महाराष्ट्र राज्य सिकल सेल नियंत्रण का अभियान चलाने का दावा करती है. लेकिन पूरे राज्य में सिकलसेल पीड़ित गर्भवति महिलाओं के लिए गर्भजल परिक्षण केंद्र ही नहीं है. गर्भजल परिक्षण केंद्र नहीं होने के कारण गरीब सिकलसेल पीड़ित दम्पतियों के लिए यह परिक्षण करवाना काफी मुश्किल हो गया है. तो वहीं शहर के निजी अस्पतालों में इस परिक्षण का खर्च करीब 12 हजार रुपए तक आता है. जो की इन गरीब पीड़ितों के लिए संभव नहीं है.

राज्य सरकार को केंद्र सरकार की ओर से नागपुर के डागा महिला रुग्णालय में गर्भजल परीक्षण केंद्र शुरू करने के लिए 11 फरवरी 2015 को 60 लाख रुपए दिए गए थे. यह केंद्र शुरू करने के लिए स्वास्थ्य विभाग आयुक्त द्वारा पत्र भी दिया गया था. लेकिन 2 साल बाद भी यह परिक्षण केंद्र शुरू नहीं हो पाया है. इस योजना का अनुमानित खर्च 75.69 लाख रुपए था. जिसमें से 11.69 लाख रुपए डागा अस्पताल को दिया गया है. जिससे की वो गर्भजल परिक्षण से सम्बंधित छोटे उपकरण खरीद सके. शेष 64 लाख रुपए के उपकरण राज्य स्तर पर लेने का निर्णय लिया गया था. लेकिन 2 साल बाद भी यह उपकरण राज्य सरकार नहीं खरीद सकी है. जिसके कारण डागा अस्पताल में यह गर्भजल परिक्षण केंद्र की शुरुआत ही नहीं हो सकी है.

राज्य सरकार और स्वास्थ सेवा आयुक्त के रवैय्ये के कारण आज भी नागपुर शहर गर्भजल परिक्षण केंद्र से वंचित है. नागपुर जिले में कई ऐसी महिलाएं हैं जिन्हें इस परिक्षण की जरुरत होती है. लेकिन जब नागपुर शहर में ही यह उपकरण नहीं है तो ग्रामीण इलाकों में इस व्यवस्था का अंदाजा भर लगाया जा सकता है. जिसके कारण कई महिलाएं इस परिक्षण से भी वंचित हो जाती हैं. इसके लिए पूरी तरह से राज्य सरकार और स्वास्थ मंत्रालय को जिम्मेदार माना जा रहा है.

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गर्भजल परीक्षण सिकलसेल से पीड़ित दम्पति के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है. इस परीक्षण के बाद महिलाओं और डॉक्टर को जानकारी मिलती है कि माता पिता की बिमारी कहीं बच्चे को तो नहीं. लेकिन परीक्षण नहीं होने से अब सिकलसेल से पीड़ित दम्पति इस परिक्षण से वंचित है. आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार पिछले पांच वर्षों में शहर के डागा अस्पताल में 325 सिकलसेल पीड़ित दम्पतियों का मार्गदर्शन किया गया है. जिसमें से 200 लाभार्थीयों का गर्भजल परिक्षण नहीं हो पाया है.

सिकलसेल सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के अध्य्क्ष संपत रामटेके ने बताया कि राज्य सरकार के पास इस परिक्षण के लिए कोई भी यंत्रणा नहीं है. राज्य सरकार जब सिकलसेल के लिए कई योजना चलाती है तो उनके पास गर्भजल परिक्षण केंद्र होना चाहिए था. उन्होंने बताया कि मेडिकल अस्पताल में 2012 में इसकी जांच होती थी. लेकिन 5 वर्षों से यह केंद्र बंद है. जिसके कारण परेशानियां और बढ़ चुकी हैं. रामटेके ने बताया कि इस परिक्षण केंद्र को शुरू करने के लिए राज्य सरकार के सचिव को कई बार पत्र लिखे गए हैं. लेकिन उन्होंने कभी इस मामले को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई है.

तो वहीं इस बारे में डागा अस्पताल की डीन सीमा पार्वेकर से संपर्क करने पर उन्होंने टालमटोल रवैया अपनाया. उन्होंने पहले तो यहां ऐसे किसी प्रशिक्षण केंद्र के शुरू होने की बात नहीं कही. साथ ही उन्होंने खुद के अवकाश पर होने की बात कहते हुए इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं होने की बात कही. तीसरा जवाब उन्होंने दिया कि मेयो अस्पताल में यह परिक्षण होता है.

इससे यह समझा जा सकता है कि जिस अस्पताल में यह परिक्षण केंद्र बनना है वहां की डीन ही इस विषय को लेकर गंभीर नहीं है. ज़ाहिर है ऐसे में मुंबई में बैठे उच्च अधिकारियों तक यह समस्या कैसे पहुंचेगी यह बड़ा सवाल है.

—शमानंद तायडे

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