नागपुर: दो वर्ष पूर्व राज्य सरकार ने विविध विभागों द्वारा चलाई जाने वाली व्यक्तिगत लाभ की योजनाओं में होने वाले भ्रष्टाचार को रोकने और लाभार्थी तक सही मायने में उसका हक पहुंचाने के उद्देश्य से डीबीटी योजना लागू की थी. इस योजना के तहत लाभार्थियों के बैंक खातों में सीधे अनुदान की रकम जमा की जानी थी.
हाल यह है कि सीएम के गृह जिले में जिला परिषद के 4 विभागों द्वारा जो व्यक्तिगत लाभ की योजनाएं चलाई जाती हैं उसका लाभ लाभार्थियों तक नहीं पहुंच पा रहा है. हालात यह हैं कि पिछले वर्ष दो वर्षों से जिला परिषद के अधिकारी लॉबी बनाकर इस योजना को फेल करने पर तुले हुए हैं. दो दिन पूर्व अध्यक्ष के कक्ष में हुई अधिकारियों की खिंचाई में तो यही तथ्य सामने आया है.
जिप के कांग्रेसी वरिष्ठ सदस्य शिवकुमार यादव ने समाज कल्याण विभाग, महिला व बाल कल्याण विभाग, शिक्षा विभाग व कृषि विभाग द्वारा चलाई जा रही व्यक्तिगत लाभ की योजनाओं के लाभार्थियों को 31 मार्च की खरीदी के बिलों का अनुदान पंचायत समितियों में बीडीओज द्वारा नहीं दिये जाना का मामला अध्यक्ष के समक्ष उठाया था. उसके बाद जब अध्यक्ष ने सभी विभाग प्रमुखों को तलब कर जानकारी ली तो अधिकारियों के जवाब से यही सामने आया कि तात्कालीन विभाग प्रमुखों की घोर उदासीनता व अगंभीरता के कारण ही डीबीटी फेल हो गई. हालत यह है कि 17-18 करोड़ रुपयों का वितरण जिप द्वारा पंचायत समितियों को कर दिया गया है लेकिन औसतन केवल 10-15 फीसदी लाभार्थियों के बैंक खातों में ही अनुदान जमा हुआ है.
कृषि विभाग जीरो, समाज कल्याण में कट
जिप में सबसे महत्वपूर्ण विभाग कृषि विभाग है. इस विभाग द्वारा किसानों को विविध उपकरण, तालपत्री आदि वितरित करता है. जो भाजपा सरकार किसानों की आय दोगुना करने की योजना पर सिर-पैर एक करते हुए कार्य करने का प्रयास कर रही है वहीं जिला परिषद के कृषि विभाग ने किसानों को व्यक्तिगत लाभ की योजना के तहत डीबीटी में एक रुपया तक खर्च नहीं किया है. समाज कल्याण विभाग की एक अनोखी कहानी सामने आई है. पता चला कि 31 मार्च तक निधि खर्च की जानी थी और विभाग की ओर से 28 मार्च को वित्त व लेखाधिकारी से 5-6 करोड़ रुपयों के खर्च की अनुमति मांगी गई. 29 व 30 मार्च को सरकारी अवकाश था.
सवाल यह कि विभाग क्या 31 मार्च के एक ही दिन में इतने रूपये खर्च कर सकता था. वर्ष भर विभाग के अधिकारी क्या कर रहे थे. विभाग द्वारा साइकिल वितरण के लिए 80 लाख रुपये का नियोजन था जिसमें से 40 लाख रुपये कैफो ने उस वक्त दिया. विभाग की अधिकारी के अनुसार उस निधि से भी 54 फीसदी रकम पंचायत समितियों को वितरित कर दी गई. यानी 80 लाख रुपयों के अनुपात से देखा जाए तो केवल 25 फीसदी की डीबीटी ही हुई. यह दावा भी सवालों के घेरे में है.
बिल लेकर भटक रहे लाभार्थी
यादव ने बताया ग्रामीण इलाकों में पंचायत समितियों द्वारा सभी लाभार्थियों को पत्र भेजकर सूचना दे दी गई कि उनका प्रस्ताव मंजूर हो गया है. लाभार्थी ने मंजूरित साइकिल या अन्य सामग्री खरीद कर बिल पेश किया. मंजूरित सूची में शामिल कुछ लाभार्थियों ने 31 मार्च के बाद खरीदी की और जब उसका बिल पेश किया जा रहा है तो बीडीओ द्वारा अनुदान की राशि देने से इंकार किया जा रहा है. जिले भर में ऐसे हजारों लाभार्थी भटक रहे हैं जिनका अपना पैसा फंस चुका है. इस पर अधिकारियों का कहना है कि 31 मार्च के बाद के बिल को मंजूर करने के लिए अब पुर्ननियोजन करना होगा.
यादव ने बताया कि मार्च महीने बीते 3 महीने हो गए लेकिन अब तक किसी विभाग ने पुर्ननियोजन का कार्य नहीं किया है. मतलब साफ है कि अधिकारी चाहते ही नहीं कि लाभार्थियों को उनके हक का लाभ मिले. अधिकारियों के इस मनमानीपूर्ण रवैये के कारण ग्रामीण जनप्रतिनिधियों को नागरिकों को जवाब देने में मुश्किलें हो रही हैं.
पदाधिकारियों की धमक नहीं
इस पूरे मामले में सबसे आश्चर्यजनक तो यह है कि अध्यक्ष सहित किसी भी सभापित को इस बात की जानकारी ही नहीं है कि पंचायत समिति स्तर पर लाभार्थियों को अनुदान की रकम देने से इंकार किया जा रहा है. खुद अध्यक्ष ने इस बात का खुलासा होने पर अपने कक्ष में सभी विभाग प्रमुखों को फटकार लगाई. शिक्षा विभाग व महिला व बाल कल्याण विभाग में भी 10-12 फीसदी लाभार्थियों की ही डीबीटी हुई है. अधिकारियों ने अपने नये होने का बहाना बनाकर पल्ला झाड़ लिया है. शिक्षाधिकारी, समाज कल्याण अधिकारी, कैफो और खुद जिला परिषद सीईओ भी नये-नये आए हैं.
नये विभाग प्रमुखों ने सफाई दी कि वे एक-दो दिनों में पूरे मामले की जानकारी लेकर ही जवाब दे पाएंगे. समाज कल्याण अधिकारी का कहना है कि 8-10 दिनों में पिछले वर्ष के लाभार्थियों का पुर्ननियोजन कर उनका अनुदान बैंक खातों में जमा करवा दिया जाएगा. विपक्ष ने आरोप लगाया है कि गली से लेकर दिल्ली तक भाजपा की सरकार है और सीएम के गृहजिले में जिला परिषद में भी भाजपा की सत्ता है लेकिन पदाधिकारियों में धमक ही नहीं है. उन्हें अधिकारी बेवकूफ बनाते चले आ रहे हैं और वे खुद भी गंभीरता से ध्यान नहीं दे रहे हैं जिसका दुष्परिणाम जिले के ग्रामीण नागरिकों को भुगतना पड़ रहा है.