नागपुर– जो धर्म जन्म से एक को श्रेष्ठ और दुसरे को नीच बताये वह धर्म नही गुलाम बनाने रखने का षडयंत्र हैं. ऐसे बाबासाहेब हमेशा कहा करते थे, डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर का संपूर्ण जीवन दमन,शोषण और अन्याय के विरुद्ध अविरत क्रांती की शौर्यगाथा हैं. जिन्होंने पत्थर को ईश्वर समझने वाली हिंदू संस्कृती मे लापता हुए मानवतावाद तथा पददलितो के अधिकार को बहाल किया . आत्मज्ञान, आत्मप्रतिष्ठा तथा समता के लिए संघर्ष, वंचित रहे समाज को जनजागृती का संदेश इस अस्पृश्य भारत को दिया . बाबासाहेब का पूरा जीवन स्वतंत्रता, समानता, भाईचारा, न्याय के प्रचार-प्रसार के लिए संघर्ष मे बिता . वर्ष 1916 मे लिखा हुआ ‘जातिनिर्मूलन’ से लेकर 1956 के ‘ बुद्ध और ऊनका धम्म ‘ ग्रंथ का सफर करते है . तो बाबासाहब रचित ग्रंथ के हर पंन्ने पर समानता, स्वतंत्रता, सहानुभूती, न्याय जैसे मूल्यों का समर्थन करते हुए दिखाई देते है .
उन्होने कभी रोटी के लिए संघर्ष नही किया, धर्म ,धर्मग्रंथ, पूरोहीतशाही, पुर्वजन्म , पुनर्जन्म, ईश्वर,स्वर्ग-नरक, पाप-पुण्य, मोक्ष, आत्मा ,परलोक, आदी वर्णव्यवस्था तथा जातिव्यवस्था को समर्थन करणे वाली संकल्पना के मुल आधार पर ही प्रहार किया है . उन्होने इस देश मे जाती ,धर्म तथा वेदो की दांभिकता के विरुद्ध शंख फुका वह ऐसा समाज चाहते थे, जिसमे वर्ण और जाती का आधार नही बल्कि समानता, स्वतंत्रता, सहानुभूती, तथा मानवीय गरिमा सर्वपरी हो, और समाज मे जन्म, वंश और लिंग के आधार पर किसी प्रकार के भेदभाव की गुंजाईश न हो.
उन्होंने समाजवादी समाज की संरचना को अपने जीवन का मिशन बना लिया था . समतावादी समाज के निर्माण की प्रतिबद्धता के कारण बाबासाहब ने विभिन्न धर्म की सामाजिक धार्मिक व्यवस्था का अध्ययन व तुलनात्मक चिंतन-मनन किया . बाबासाहाब 20 वी सदी के ऐसे महान योद्धा थे. जिन्होंने अपने बुद्धिमत्ता की भावना से हिंदू कट्टरपंथी हिंदू धुरीनो को बुद्धिवाद से ललकारा . समाज मे शोषित अपेक्षित वंचित समुदाय को सामाजिक न्याय तथा स्वतंत्रता दिलाने के लिए, मानव मुक्ती के लिए, उन्होंने संघर्ष किया. मनुस्मृती दहन, महाड सत्याग्रह,काळाराम मंदिर प्रवेश,पुणे का पार्वती मंदिर सत्याग्रह, पुणे करार ,धर्मांतरण की घोषणा, स्वतंत्र मजूर पक्ष की स्थापना, सायमन कमिशन का हक और अधिकार के लिए हुऐ ज्ञापनपत्र ये सभी घटना, घटना-प्रसंग मानव मुक्ती के लिए उनके संघर्ष थे.
जनप्रबोधन के लिए मूकनायक, जनता, समता, बहिष्कृत भारत ,ऐसी पत्रकारिता काही प्रयोग किया . अपने भाषण व लेखन द्वारा निरंतर जागृती की, दलितों, अछुतो , अस्पृश्य समूह को सामाजिक, राजनीतिक, अधिकार और स्वतंत्रता के प्रश्न कि और संपूर्ण देश का ध्यान आकर्षित किया . उपेक्षित, शोषित, वंचितों की आर्थिक गुलामी नष्ट कर समानता की नीव पर सामाजिक दर्जा प्रस्थापित करना ,सामाजिक स्वतंत्रता बहाल करना, विषमता नष्ट करना और शिक्षा को प्राथमिकता देना, उनके जीवन के प्रमुख अंग थे. बाबासाहेब आंबेडकर ने भारतीय समाज को भारतीय संविधान लोकतंत्र समाजवाद, समाजवादी धर्म और सामाजिक आर्थिक और धार्मिक न्याय व अधिकार दिया .
ऊन्होने समतावादी प्रबुद्ध भारत का सपना देखा था उसे पुरा करने के लिए उन्होंने अपनी जिंदगी के आखरी दम तक प्रयास किया. उन्होंने कहा था की ‘ मै शुरुवात से आखरी तक भारतीय रहूंगा “। ‘मैं राजनीती मे सुख भोगने नहीं बल्की अपने नीचे दबे भाईयो को अधिकार दिलाने आया हुं’। इतना बडा राष्ट्रप्रेम , राष्ट्रभक्ती ने ही बाबासाहाब को विश्वगुरू बना दिया . इसी लिए पुरे विश्व मे उन्हे ” नॉलेज ऑफ़ सिम्बॉल ” से जाना जाता है . यह भारत के लिए सन्मान की बात है .
डॉ. घपेश कुदां पुडलीकराव ढवळे ( पत्रकार, युवा साहीत्यकार)
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