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हम यकीन से कहतें हैं की, जो भी उच्च श्रेणी एवं धनी लोग नागपुर में निवेश करना चाहते थे वो सभी एम्प्रेस सिटी में निवेश करना एक सुरक्षित और सटीक दांव मानते थे.
लेकिन एक दशक के बाद ये सपने अब चकनाचूर हो गए हैं. जिन 70 परिवारों ने यहाँ रहने की हिमाकत की है, उन्हें अपने पॉश मकान अब कैद की तरह प्रतीत होते होंगे. यंहा रहना आपको कतई रास नहीं आएगा. क्योंकि लेकिन आप अपने फ्लैट्स को बेच नहीं सकते, भाड़े पे नहीं चढ़ा सकते या छोड़के कहीं और भी नहीं जा सकते. इस तरह आपकी करोड़ों के निवेश पर देखते ही देखते पानी फिर जाएगा.
बच्चों की सुरक्षितता – सबसे अहम चिंता
यंहा पिछले 3-4 साल से निवासी, पूनम महादिया जो यंहा अपने पति, 2 बच्चे और सांस ससुर के साथ रहती हैं, कहती हैं की, “यंहा बगीचे में खुले तार, फ्यूज के बक्से, कांच के दरवाजे और पैन्स जो हवा के एक तेज झोंके के साथ कभी भी गिर सकते हैं, बिखरे पड़े हैं. ऐसे में कैसे मैं अपने 2 बेटों को खेलने बाहर भेजूं ?”
रोकड़े ज्वेलर्स की अनीता रोकड़े के मुताबिक “गार्डन भी कोई गार्डन नहीं बल्कि एक ज्यादा बढ़ी झाडी भर है. कुछ फौवारे और सड़ा हुआ एक स्विमिंग पूल केवल एक बकवास हैं. शैवाल चढ़ा यह पानी मच्छरों के पनपने के लिए आदर्श जगह बन गया है. कुछ बच्चे तो अभी से स्वाइन फ्लू और तत्सम बिमारियों के चपेट में आ गए हैं. मैं अपने बच्चों को घर की चार दीवारी में कैद नहीं रखना चाहती. लेकिन मैं उन्हें घर के बाहर भेजने से भी डरती हूं.”
यंहा तो सीसीटीवी कैमरे और सुरक्षारक्षक भी नहीं हैं.
कई एकड़ पर फैले हुए इस एम्प्रेस सिटी कॉम्प्लेक्स में करीब 550 से भी अधिक फ्लैट्स हैं फिर भी मात्र 3 सुरक्षा रक्षक हैं.
यहाँ मुख्य प्रवेशद्वार, एंट्रेंस लॉबी या बाकी किसी भी जगह पर कोई सीसीटीव्ही कैमरा नहीं है जब की ऐसे कॉलोनी में इसकी सबसे ज्यादा जरुरत होती है.
वायदा करने के बावजूद यहां मुख्य प्रवेशद्वार पर तैनात सुरक्षा रक्षक एवं निवासियों के बिच संभाषण के लिए इण्टरकॉम भी नहीं है.
शहर में दो बच्चो के किडनेपिंग केस के बाद और बिल्डर द्वारा अपने वायदे से मुकरने के बाद यहां के निवासियोंने खुद ही उक्त सुविधाओं का इंतजाम करने का मन बनाया.
शाम को जब बच्चे निचे खेलने जाते हैं तब अतिरिक्त सुरक्षा के तौर पर पालक बारी बारी से उन पर नजर रखते हैं.
निवासियों ने खुद के खर्चे पर गार्डन के एक कोने की सफाई करके बच्चों के खेलने के लिए झूले, फिसल-पट्टी और अन्य खेल सामग्री अपने खर्च से लगायी है. वो चाहते हैं की बच्चे इसी कोने में खेले कूदें, लेकिन बच्चे तो आखिर बच्चे हैं. वो कहाँ ये सब मानने वाले हैं.
ममता अग्रवाल कहती हैं, हमने सोचा था की हमारे बच्चों की परवरिश के लिए यह स्थान और वातावरण बेहतरीन हैं, लेकिन अब तो यह हाल है की हम अपने बच्चों को यहाँ सैर भी करने नहीं देते हैं.
लावारिस कुत्तों का कोहराम
बड़ी वंचना है की, जहाँ हमें बच्चों को खेलते हुए देखना चाहिए वहां एम्प्रेस सिटी कॉम्प्लेक्स में हमें इधर उधर लावारिस कुत्ते दिखाई देते हैं.
ये सब उस कचरे की वजह से है जो एम्प्रेस माल की दुकानों से इस अपार्टमेंट बिल्डिंग के सामने जमा करके रखा जाता है. इस कचरे में ज्यादातर बचा हुआ मांसाहारी खाना होता है. जिसकी गंध से आकर्षित होकर कुत्ते, बिल्ली और चूहें जो ऐसी ही जगह पे प्रजनन करते हैं, यहाँ खींचे चले आते हैं.
इन्ही कुत्तों द्व्रारा बच्चों पर हमले की, खरोचने की, काटने की यहाँ तक की मारने की वारदातें हम अक्सर सुनते हैं. एकेले कुत्ते से डर न भी लगे, लेकिन पूरा झुंड अगर हो तो उनसे डरना जरुरी है खास कर बच्चों को.
ये कुत्ते ज्यादातर शाम को आते हैं, अपना पेट भर लेते हैं, और इधर उधर भटकते हैं, फिर खाली जगह पर यहाँ तक के टाउनशिप के खाली फ्लैट्स को भी अपना रात का आशियाना बना लेते हैं.
फ्लैट मालिक संघटन के अध्यक्ष पवन जैन ने कहा की, उन्होंने कई बार बिल्डर के कर्मचारियों से कहा की खाली फ्लैट्स में ताले लगा दे लेकिन हमारी सुनता कौन है ?
संभवतः व्यावसायिक कारणों के लिए रखे ये पहले माले के खाली फ्लैट्स अब लावारिस कुत्तों, अनाथ और बेघर लोगों का आशियाना बन चुके हैं.
यहाँ शराब एवं तत्सम चीजों के चलन के सबूत हमेशा पाए जाते हैं, जो की बच्चों और औरतों के लिए खतरे की घंटी है.
आपको पिछले साल दिल्ली का केस याद होगा, जिसमे एक 5 साल की बच्ची को आपराधिक तत्वों द्वारा अघवा करके तीन दिन तक बलात्कार एवं उत्पीड़न किया गया था. उस बेचारी के माँ-बाप पुलिस के साथ उसे पुरे शहर में खोज रहे थे, जब की बाद में वो अपनेही घर से कुछ दुरी पर मृत अवस्था में पायी गयी थी.
फ्लैट में किसी कारण से कैद हो जाने के बाद एवं भूक के कारण अधूरे फ्लैट्स के दरवाजों या बालकनी से कूदकर एम्प्रेस में 2-3 कुत्तों की मौत हो चुकी है.
इमारत के दर्शनीय भाग पर इन फ्लैट्स के गैप और छेद आँखों को कांटो की भांति चुभते हैं. इन्हे देखके निवासियों को भी जरूर झटके लगते होंगे.
जब किसी भव्य कॉम्प्लेक्स के ज्यादातर फ्लैट्स बिन बेचे खाली पड़े रहते हैं, तब तो यह समझना मुश्किल नहीं है की, बिल्डर एवं निवासियों को सिमित राशि के चलते परिसर के रखरखाव में निवेश की समस्याएं तो आएंगी.
फ्लैट्स कम बिकने का मतलब है की, कम लोग ज्यादा बड़े और खाली परिसर के रखरखाव का खर्चा भी देंगे. यह स्पष्ट है की, प्रमोटर्स केएसएल इंडस्ट्रीज लिमिटेड एंड डेवलपर्स और 60 से 70 फ्लैट मालिक दोनों ही इस वित्तीय परेशानी से जुझ रहें है.
लेकिन अपनी मार्केटिंग और बिक्री क्षमता बढ़ाने हेतु ही सही बिल्डर द्वारा अपनी प्रॉपर्टी का खयाल किया जाना चाहिए था. जैसे की, मुख्य प्रवेशद्वारपर ज्यादा सुरक्षा-रक्षक रखे जाते, और परिसर का उचित रखरखाव करना आदि.
जैसा की महान दार्शनिक और राजनेता नेल्सन मंडेला ने कहा है, एक समाज की आत्मा और चरित्र का इससे अच्छा और उत्कट उदाहरण दूसरा नहीं हो सकता की, वो समाज अपने बच्चों से किस तरह से पेश आता है ?
क्या ये काफी नहीं ?
… सुनीता मुदलियार, कार्यकारी संपादक